(Global मुद्दे) आरसीईपी: मुक्त व्यापार समझौता (RCEP: Free Trade Agreement)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): अशोक सज्जनहार (पूर्व राजदूत), संजय कपूर (वरिष्ठ पत्रकार)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, थाइलैंड में क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी यानी RCEP के सातवीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया। भारत की तरफ से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस आयोजन भाग लिया। बैठक में शामिल सभी देशों ने मुक्त व्यापार समझौते को लेकर जारी बातचीत को इसी साल पूरा करने पर अपनी सहमति जताई।
आपको बता दें कि पिछले कई सालों से इन देशों के बीच मुक्त व्यापार को लागू करने के लिए लगातार वार्ता चल रही है। औपचारिक रूप से आरसीईपी वार्ता को नवंबर 2012 में कंबोडिया में आयोजित आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू किया गया था। अब तक 27 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन सदस्य देश इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाये हैं कि किन-किन वस्तुओं पर आयात शुल्क खत्म किया जाएगा या उसमें उल्लेखनीय कटौती की जाएगी।
आरसीईपी क्या है?
आरसीईपी कुछ देशों को एक समूह है, जिसमें दस आसियान देश समेत आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
- इनके बीच में एक मुक्त व्यापार समझौता हो रहा है। जिसके बाद इन देशों के बीच बिना आयात शुल्क दिए व्यापार किया जा सकता है।
- इस मेगा मुक्त व्यापार समझौता में वस्तु, सेवाओं, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, प्रतिस्पर्धा और बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़े मुद्दे शामिल होंगे।
- आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल है।
कितना महत्वपूर्ण है आरसीईपी?
आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक समूह है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में क़रीब 50 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखता है। साल 2050 तक आरसीईपी के सदस्य देशों का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 250 ट्रिलियन अमरीकी डालर होने की संभावना है।
भारत को क्या फायदा है आरसीईपी से?
भागीदार देशों की तादाद और दायरे, दोनों ही पैमाने पर, आरसीईपी बेहद महत्त्वाकांक्षी योजना है।
- इससे भारत के वस्तु व्यापार में वृद्धि होगी।
- भारत को आसियान देशों का बाजार मिलेगा।
- समझौता होने के बाद चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से भारत में आने वाला निवेश भी बढ़ेगा।
- सेवा क्षेत्र में भारत के निर्यात में वृद्धि होगी।
- पूर्वोत्तर भारत के जरिए व्यापार में वृद्धि से पूर्वोत्तर के राज्यों के आर्थिक विकास में भी मदद मिलेगा। इसे एक रणनीतिक लाभ के तौर पर देखा जा सकता है।
क्या आरसीईपी से कुछ नुकसान भी है?
मौजूदा वक्त में, सेवा क्षेत्र के लिहाज से भारत की स्थिति काफी मजबूत है। लेकिन दिक्कत यह है कि आरसीईपी में वस्तुओं की तुलना में सेवाओं के व्यापार में ज्यादा छूट नहीं है। ऐसे में, भारत को इससे बहुत लाभ की उम्मीद नहीं है।
- दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ भी भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका
- इसमें बौद्धिक संपदा के कड़े नियम शामिल है। इसके चलते भारत का जेनेरिक दवा उद्योग प्रभावित हो सकता है।
- आयात शुल्क खत्म करने से भारत के कृषि आधारित उद्योगों, वाहन, दवा और स्टील के प्रभावित होने की आशंका
- चीनी सामान की ज़्यादा आपूर्ति से भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर प्रभावित हो सकता है।
- कई सालों से लगातार कई दौर की वार्ता के बावजूद यह समझौता आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
किसानों को है आरसीईपी पर आपत्ति
किसान नेताओं का कहना है कि आरसीईपी व्यापार समझौता, विश्व व्यापार संगठन से ज्यादा खतरनाक है। भारत आरसीईपी के तहत व्यापार करने वाली वस्तुओं पर शुल्क को 92% से घटा कर 80% करने के लिए दवाब बना रहा है, पर भारत बाद में ड्यूटी बढ़ा नहीं सकेगा। यह एक ऐसा प्रावधान है, जिससे भारत को अपने किसानों और उनकी आजीविका के संरक्षण खासी दिक्कत होगी।
साथ ही इससे डेयरी व्यवसाय को बड़ा नुकसान होगा। भारत का अधिकांश असंगठित डेयरी सेक्टर वर्तमान में 15 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करता है। आरसीईपी समझौता लागू होने के बाद न्यूजीलैंड आसानी से भारत में डेयरी उत्पाद सप्लाई करने लगेगा।
क्या आरसीईपी व्यापार घाटे का इलाज है?
मौजूदा वक्त में, भारत पहले से ही 17 अन्य मुक्त व्यापार समझौतों का हिस्सा है, लेकिन भारत जिन 17 एफटीए का पहले से हिस्सा है वे भारतीय उद्योग के लिहाज से बहुत फ़ायदेमंद नहीं साबित हुए हैं। ऐसे में, इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाला नया आरसीईपी बहुत फ़ायदेमंद ही होगा।
आरसीईपी के 16 वार्ताकारों में से केवल भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय क्षेत्रीय व्यापार समझौते (RTA) नहीं है। चीन के साथ आरटीए नहीं होने पर भी व्यापार घाटा अत्यधिक है, ऐसे में एक बात तो साफ है कि व्यापार घाटे की जड़ आरटीए नहीं है।
व्यापार में संरक्षणवादी मानसिकता कहाँ तक सही है?
लंबे समय से हमारी नीति दूसरे देश को अपनी बाजार से दूर रखने की है, जबकि वर्तमान में हमें अपने नीति को दूसरे बाजारों तक पहुंच पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारतीय उद्योगों को संरक्षण देने से ना केवल आयात और निर्यात में नुकसान होता है बल्कि हम वैश्विक बाजार में कम प्रतिस्पर्धी और कम गतिशील बन जाते हैं। चूँकि भारतीय उद्योग की हर जगह स्वागत और प्रतीक्षा की जा रही है, ऐसे में आरसीईपी से बाहर होना हमारे उद्योगों को नुकसान पहुँचा सकता है।
आगे की राह
मौजूदा वैश्विक हालातों में, जब विश्व व्यापार जैसी संगठन अपने पतन की ओर अग्रसर है, ऐसे में उद्योग संबंधी विवादों के निवारण के लिए आरसीपी एक बेहतर मंच साबित हो सकता है।
- हमें केवल कुछ उद्योगों की चिंता छोड़ समग्र उद्योगों पर ध्यान देना चाहिए तभी हमारे उत्पादों को बाजारों तक पहुंच मिलेगी।
- इन देशों में लोगों के मध्य People to people contact, आईसीटी इत्यादि के द्वारा संपर्क को बढ़ाना चाहिए। जिससे इन देशों में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ सके।
- भारत को आरसीपी वार्ता में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपनी चिंताओं को ध्यान में रखकर नीति निर्माण एवं समझौते की रूपरेखा को प्रभावित करने की कोशिश करना चाहिए।