(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 September 2020
इनर मंगोलिया चर्चा में क्यों
- मंगोलिया पूर्व और मध्य एशिया में एक लैंडलॉक देश हैं इसकी सीमाएं उत्तर में रूस, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में चीन से मिलती हैं। कभी-कभी इसे आउटर मंगोलिया के नाम से भी पुकारा जाता है।
- मंगोलिया की सीमा कज़ाखिस्तान से नहीं मिलती हैं लेकिन इसकी पश्चिमी सीमा कज़ाखिस्तान से केवल 38 किमी- दूर है।
- देश की राजधानी एवं बड़ा शहर उलानबाटोर है, जहां देश की लगभग 38 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
- मध्यकाल में यह देश विभिन्न घुमंतू साम्राज्यों द्वारा शासित होता था। सन् 1206 में चंगेज खान द्वारा मंगोल साम्राज्य की स्थापना की गई।
- चंगेज खान के पोते कुबलई खान ने युआन राजवंश की स्थापना की थी, और अपने साम्राज्य का विस्तार पूरे चीन में कर लिया था । 1368 के बाद यह राजवंश ढ़हने लगा और ग्रेटर मंगोलिया (इनर और आउटर मंगोलिया का सम्मिलित रूप) फिर कमजोर पड़ने लगा।
- 16वीं और 17वीं शताब्दी में मंगोलिया तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया।
- मंगोलिया के कमजोर पड़ने के बाद चीन मे कई साम्राज्य विकसित हुए। इसी में एक चीनी साम्राज्य चिंग राजवंश/साम्राज्य (Quing Dynasty) था। यह चीन का आखरी राजवंश था, जिसने चीन पर 1644 से 1912 तक राज्य किया।
- चिंग साम्राज्य ने मंगोलिया पर कब्जा कर लिया और प्रशासनिक सुविधा के लिए इसे आउटर एवं इनर मंगोलिया में विभाजित कर दिया।
- इस चिंग साम्राज्य की समाप्ति 1911 में एक चीनी क्रांति से हुई। इसके बाद चीन गणतांत्रिक प्रणाली की ओर बढ़ गया और चीन रिपब्लिक ऑफ चाइना के रूप में परिवर्तित हो गया।
- इस घटना के बाद मंगोलिया में भी आजादी की भावना जोर पकड़ने लगी।
- मंगोलिया की आजादी में रूस इसका सहयोग कर रहा था फलस्वरूप 1924 में मंगोलिया का कुछ हिस्सा आजाद हुआ, पूरा नहीं।
- रूस से सटा मंगोलिया (आउटर मंगोलिया) तो आजाद हो गया लेकिन चीन से लगा मंगोलिया (इनर मंगोलिया) चीन के कब्जे में ही रहा।
- वर्तमान समय में चीन में पांच स्वायत्त प्रांत हैं, जिसमें से एक प्रांत इनर मंगोलिया हैं यह चीन के कुल भाग का 12 प्रतिशत है लेकिन चीन के केवल 2 प्रतिशत लोग ही यहाँ रहते हैं।
- नये चीन (1911 के बाद) ने यहां हान समुदाय के लोगों को लाकर बसाना प्रारंभ कर दिया फलस्वरूप यहां के मूल मंगोलियन अल्पसंख्यक हो गये।
- 1949 में कम्यूनिस्ट क्रांति के बाद इनर मंगोलिया पर चीन ने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी।
- चीन ने अब तिब्बत और मंगोलिया को हमेशा के लिए हड़पने की नीति अपनाई जिसके लिए यहां के लोगों को सांस्कृतिक रूप से परिवर्तित करना चीन ने प्रारंभ किया।
- वर्ष 1966 में चीन ने कल्चरल रेवोल्यूशन प्रारंभ किया। यह कल्चरल रिवोल्यूशन माओ की नीतियों को थोपने का एक माध्यम था। माओ की कम्यूनिस्ट नीति, राजनीतिक, अर्थिक नीति को न मानने वाले लोगों को परिवर्तित करने का प्रयास इसमें किया गया। जो लोग इन नीतियों के हिसाब से फिट नहीं थे या जो अपनी अलग पहचान, जीवनशैली और सोच बनाये रखना चाहते थे उनके लिए चीन में कोई जगह नहीं थी।
- इस कल्चरल रिवोल्यूशन के दौरान कम्यूनिस्ट सत्ता के हाथों भीषण नरसंहार हुआ जिसमे करीब साढ़े चार करोड़ लोग मारे गये।
- इनर मंगोलिया भी इससे अछूता नहीं रहा और यहां भी कत्लेआम किया गया।
- यहां आजादी की मांग को चीन अलगाववाद की भावना के रूप में देखता था ओर सबसे बढ़कर वह कब्जा किये हुए क्षेत्र का एक इंच भी गंवाना नहीं चाहता था फलस्वरूप अलगावाद का बहाना लेकर यहां एक लाख से ज्यादा लोग मार दिये गये।
- चीन ने यहां एक चाल यहा चली कि इनर मंगोलिया के उन प्रतिष्ठित लोगों को मारना प्रारंभ किया जो भीड़ एकत्रित कर सकते थे। इसीकारण यहां कोई ऐसा नेतृत्व नहीं उभर पाया जो इनर मंगोलिया की बात अंतर्राष्ट्रीय रूप से मजबूत तरीके से उठा सके। जैसा कि दलाई लामा तिब्बत की बात उठाते है।
- यहां मंगोलों से जमीनें छीन ली गईं, माइनिंग के लिए उनके चारागाह समाप्त कर दिये गये, जिससे पशुपालन पर उनकी आत्मनिर्भरता समापत हो गई।
- ज्यादातर मंगाल बौद्ध थे, जिनसे जबरन उनका धर्म परिवर्तित करवा दिया गया। उनके मंदिर एवं मठ तोड़ दिये गये, प्राचीन साहित्य नष्ट कर दिया गया।
- आर्थिक और प्रशासनिक सभी प्रमुख पदों पर हान समुदाय का कब्जा है।
- एक चीन नागरिक लामजाब ने 20 साल तक घूम-घूम कर साक्षात्कार लिया और एक किताब लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि 1 लाख से अधिक लोग अलग सांस्कृतिक अलगाव के कारण मार दिया गया था।
- वर्तमान समय में चीन की सरकार मंगालों की बची-खुची पहचान को कुचलने का फैसला किया है। चीन ने फैसला यह लिया है कि अब इनर मंगोलिया के स्कूलों में मंगोलियन भाषा में नहीं पढ़ाया जायेगा। अर्थात वहां के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल के अध्यापक मंगोलियन भाषा की जगह मंडारिन भाषा इस्तेमाल करेंगे।
- स्वभाविक है कि यहां बात सिर्फ भाषा की नहीं बल्कि के पीछे छुपी सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने और स्कूली स्तर पर उस साहित्य को प्रवेश कराने की है जिसमें चीनी संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का प्रयास किया जायेगा और बच्चों उनकी अपनी मूल संस्कृति से दूर किया जायेगा।
- हजारों मंगोल समुदाय के लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आये हैं , इनका कहना है कि संस्कृति के नाम पर उनके पास केवल अपनी भाषा ही बची है यदि यह भी खत्म हो गया तो उनका बजूद ही समाप्त हो जायेगा।
- लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है ताकि बच्चों को सांस्कृतिक अलगाव से बचा सकें।
- सरकार ने मंगोलियन साइट्स, किताबें, सोशल साइट्स (बाइनू- मंगोलिया भाषा का एकमात्र सोशल मीडिया साइट) को बंद करवा दिया गया है।
- यहां के पुलिस अधिकारी भी इन आंदोलनों में शामिल हो रहे है। यह पिछले कई दश्कों में हुए बड़े प्रदर्शनों में शामिल हो गया है।
बांग्लादेश त्रिपुरा जलमार्ग
- त्रिपुरा उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित भारत का एक राज्य है। यह भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है, जिसका क्षेत्रफल 10,492 वर्ग किमी- है।
- इसके उत्तर, पश्चिम एवं दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम स्थित हैं।
- बंगाली और त्रिपुरी भाषा यहां की मुख्य भाषाएं हैं।
- मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र हैं पश्चिम व दक्षिणी त्रिपुरा कम ऊँचा और घाटीनुमा क्षेत्र है। दक्षिण का भाग कटा हुआ और घने जंगालों से ढ़का है।
- राज्य का आधा भाग जंगलों से ढ़का हुआ है, हालांकि खेती के लिए इनकी कटाई बड़े स्तर पर हुई हैं
- त्रिपुरा में बहने वाली प्रमुख नदियां- धलाई नदी, फेनी नदी, गुमटी नदी, होरा नदी, जूरी नदी, खोवाई नदी, लोंगाई नदी, मनु नदी, मुहुरी नदी, सुमली नदी एवं तितस नदी है।
- इस राज्य में औद्योगीकरण, नगरीकरण ज्यादा नहीं है, और न ही उचच जनसंख्या घनत्त्व, बावजूद इसके गंगा मिशन के तहत सबसे प्रदूषित नदियों की जो सूची बनाई गई है, उसमें 4 नदियां त्रिपुरा की है।
- यह चार नदियां मनु नदी, गुमटी नदी होरा नदी एवं वूढ़ीमां हैं।
- इनके प्रदूषण का प्रमुख कारण नदी अतिक्रमण, कचरा, सिवेज सिस्टम आदि हैं।
- हाल ही में त्रिपुरा ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए अपने सोनमुरा से बांग्लादेश के साथ अपने अंतर्देशीय जलमार्ग को खोल दिया है।
- बांग्लादेश में मुंशीगंज बंदरगाह से 50 MT सीमेंट के साथ एक बड़ी नाव 5 सितंबर को ट्रायल रन के हिस्से के रूप में सोनमुरा पहुंची।
- यह जलमार्ग अगरतला से 60 किमी- दूर सोनमुरा को बांगलादेश में चटगांव के डौंकंडी से जोड़ता है।
- इसके लिए गुमटी नदी को इंडो-बांग्ला प्रोटाकॉल मार्ग के रूप में मंजूरी दी गई है।
- गुमटी नदी त्रिपुरा के उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र में दुम्बुर से निकलती है।
- यह त्रिपुरा और बांग्लादेश से होकर बहने वाली नदी है।
- यह बांग्लादेश की महत्वपूर्ण नदी मेघला की सहायक मानी जाती है।
- त्रिपुरा के इस नदी परिवहन प्रणाली का संबंध भारत और बांग्लादेश के बीच हस्ताक्षरित ‘अंतर्देशीय जल पारगमन व्यापार प्रोटोकॉल’ से है। यह दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक व्यापार को बढ़ाने के लिए किया गया प्रोटोकॉल है।
- इस समझौते की एक बड़ी बात यह है कि इसके तहत किसी तीसरे देश में भी माल परिवहन की अनुमति है।
- इस प्रोटोकॉल की पहली बार 1972 में हस्ताक्षरित किया गया था तथा वर्ष 2015 में अंतिम बार 5 वर्ष के लिए नवीनीकृत किया गया था। वर्ष 2020 के बाद फिर से अनुमोदित करना होगा। हालांकि यदि किसी पक्ष ने इस पर आपप्ति प्रकट नहीं कि तो स्वचालित रूप से इसका नवीनीकरण हो जायेगा।
- यह जलमार्ग दोनों देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे त्रिपुरा की पहुंच बांग्लादेश के आशुगंज बंदरगाह तक हो जायेगी।
- त्रिपुरा हर साल लगभग 645 करोड़ रूपये का आयात बांग्लादेश से करता है जबकि निर्यात मात्र 30 करोड़ रूपये का। इस मार्ग से त्रिपुरा बांग्लादेश को ज्यादा सामान बेच सकेगा। हालांकि बांग्लादेश द्वारा लगाये जाने वाले आयात शुल्क को भी कम करवाना होगा क्योंकि बांग्लादेश भारी शुल्क आरोपित करता है।
- इस नदी मार्ग के साथ भी एक समास्या यह है कि यह पूरे साल चालू नहीं रह पायेगा, इसलिए त्रिपुरा को अन्य विकल्पों को भी मजबूत करना होगा।
- त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच 6 भूमि क्रॉसिंग भी है। जिस पर इस जल परिवहन का नकारात्मक प्रभाव न पड़े यह भी सुनिश्चित करना होगा।
- यह नदी उथली है, जिसमें अवसादन की भी समस्या है इसलिए इस पर हमेशा ध्यान देना होगा। इसी के साथ इसके किनारे नदी बंदरगाह एवं नौकाओं के लिए ड्रेजिंग करना भी अनिवार्य होगा।
- सामानों के आवाजाही को सुगम तरीके से सुनिश्चित करने के लिए स्थायी तर्मिनल, वेयर हाग्स एवं अन्य आधारभूत संरचनाओं का विकास करना होगा।
- नदी प्रदूषण की समस्या और नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को भी यहां पर ध्यान में रखने होगा।
- इन चुनौतियों के बीच राज्य के लिए अनेक संभावनायें भी हैं। कोलकता से गुवाहटी होकर अगरतला की दूरी 1650 किमी- है जबकि इस जलमार्ग से यह दूरी बहुत कम हो जायेगी तथा राज्य के वस्तुओं की आवाजाही पर लगने वाले खर्च में 25-30 प्रतिशत की कमी आयेगी।
- यह जलमार्ग त्रिपुरा, भारत एवं बांग्लादेश तथा अन्य पूर्वोंत्तर राज्यों के लिए महत्वपूर्ण कनेक्टविटी का आधार। इसके माध्यम से व्यापार, सांस्कृतिक आदान प्रदान, पर्यावरण हितैषी परिवहन, मत्स्यन एवं कृषि क्षेत्र में विकास का नया रास्ता खोलेगा।