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Blog / 18 Apr 2019

(आर्थिक मुद्दे) RBI की मौद्रिक नीति - महंगाई बनाम विकास (RBI Monetary Policy: Inflation vs Development)

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(आर्थिक मुद्दे) RBI की मौद्रिक नीति - महंगाई बनाम विकास (RBI Monetary Policy: Inflation vs Development)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): शिशिर सिन्हा, (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार, हिंदू बिजनेस लाइन), अरिहन जैन (वरिष्ठ सहायक संपादक , बिजनेस स्टैंडर्ड - हिंदी)

चर्चा में क्यों?

RBI की मौद्रिक नीति समिति यानी MPC ने 4 अप्रैल को चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा का ऐलान किया। इस समीक्षा के दौरान नीतिगत दरों में 25 आधार अंक यानी 0.25% की कटौती की गई है। चुनावी माहौल में RBI के इस फैसले का अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर के कयास लगाए जा रहे हैं।

क्या है मौद्रिक नीति?

भारतीय रिजर्व बैंक हर दूसरे महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है।

  • यह काम RBI की मौद्रिक नीति समिति करती है।
  • इस समीक्षा में अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए नीतिगत ब्याज दरें घटाने या बढ़ाने का फैसला लिया जाता है।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो मौद्रिक नीति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
  • वहीँ राजकोषीय नीति के ज़रिए सरकार समग्र मांग और अर्थव्यवस्था पर सरकारी खर्च और करों के असर को नियंत्रित किया जाता है।

क्या मक़सद होता है मौद्रिक नीति समीक्षा का?

  • मौद्रिक नीति से कई मकसद साधे जाते हैं।
  • इनमें महंगाई पर अंकुश, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना शामिल है।
  • इसके अलावा रोजगार के अवसर तैयार करना भी इसके लक्ष्यों में से एक है।
  • अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति के नियंत्रण के लिए बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो या ओपन मार्केट आपरेशन का सहारा लिया जाता है।
  • रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के जरिए कर्ज की लागत को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।

आसान, सख़्त और तटस्थ मौद्रिक नीति

सरल या आसान मौद्रिक नीति: नरम रुख रखने पर आरबीआई मौद्रिक नीति में प्रमुख ब्याज दरों को घटाता है। इससे अर्थव्यवस्था में पैसों की आपूर्ति बढ़ने का रास्ता खुल जाता है। बाजार में नकदी बढ़ने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। इसे सरल या आसान मौद्रिक नीति कहा जाता है।

सख़्त मौद्रिक नीति: जब केंद्रीय बैंक अपना रुख कठोर करता है तो ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है। इससे अर्थव्यवस्था में नकदी घट जाती है। इसका उत्पादन और खपत दोनों पर विपरीत असर होता है। इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटती है। इसे सख़्त मौद्रिक नीति कहा जाता है।

तटस्थ मौद्रिक नीति: जब मौद्रिक नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाता तो इसे तटस्थ नीति कहा जाता है।

मौद्रिक नीति समिति

मौद्रिक नीति समिति एक छह सदस्यीय समिति होती है जिसका गठन केंद्रीय सरकार द्वारा किया जाता है। इस समिति का गठन उर्जित पटेल कमिटी की सिफारिश के आधार किया गया था।

  • समिति की अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर करता है।
  • इसमें तीन सदस्य आरबीआई से होते हैं और तीन अन्य स्वतंत्र सदस्य भारत सरकार द्वारा चुने जाते हैं।
  • आरबीआई के तीन अधिकारीयों में एक गवर्नर, एक डिप्टी गवर्नर तथा एक अन्य अधिकारी शामिल होता है।
  • मौद्रिक नीति निर्धारण के लिए यह समिति साल में चार बार बैठक करती है और सर्वसम्मति से निर्णय लेती है।

मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रयुक्त प्रमुख शब्दावलियाँ

बैंक रेट: केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को दिए जाने वाले लोन पर जो ब्याज दर लगाया जाता है उसे बैंक दर कहते हैं। अमूमन ये लॉन्ग टर्म लोन होता है।

रेपो रेट: रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं। अमूमन ये शार्ट टर्म लोन होता है।

रिवर्स रेपो रेट: यह रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है।

कैश रिजर्व रेश्यो: देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो यानी सीआरआर या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

तरलता समायोजन सुविधा: तरलता समायोजन सुविधा यानी लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी के माध्यम से आरबीआई रेपो दर और रिवर्स रेपो दर आदि का निर्धारण करती है।

क्रय प्रबंधक का सूचकांक (पीएमआई): ये विनिर्माण क्षेत्र के आर्थिक हालत का एक संकेतक है। पीएमआई पांच प्रमुख संकेतकों पर निर्भर करता है: नए आदेश, इन्वेंट्री स्तर, उत्पादन, आपूर्तिकर्ता वितरण और रोजगार का माहौल।

इस बार की मौद्रिक नीति में किन पहलूओं पर ग़ौर किया गया?

इस बार की मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान समिति ने कई पहलूओं पर ग़ौर किया है जिनमे से कुछ अहम् हैं -

नकदी की स्थिति: मुद्रास्फीति जो कि पिछले सात महीने में निर्धारित 4% से नीचे ही रही है, इस कारण अक्टूबर 2018 के बाद नकदी किल्लत में सुधार आया है। नकदी को लेकर वर्तमान में जो हालात हैं, ऐसे में आरबीआई द्वारा रेट में कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचने में वक्त लगेगा।

मॉनसून तथा महंगाई: बाजार इन्फ्लेशनरी एक्सपेक्टेशन पर आरबीआई के दिशा-निर्देशों पर नजर रखता है। भारतीय मौसम विभाग यानी IMD ने अल नीनो के असर के कारण जून-सितंबर दक्षिण-पश्चिम मानसून सीजन पर नकारात्मक असर की बात कही है। इस मॉनसून से देश में 70 फीसदी बारिश होती है। रेट कट इस पर भी निर्भर करता है।

वैश्विक असर: विदेशी निवेशकों ने अप्रैल 2018 से लेकर अक्टूबर 2018 के बीच भारत से भारी मात्रा में पूंजी बाहर निकाली थी। हालांकि, अब हालात बदले हैं और फिर से देश में विदेशी पूंजी का निवेश हो रहा है। रेट कट इस पर भी निर्भर करता है।

विकास दर में गिरावट: दिसंबर की पॉलिसी में आरबीआई ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए विकास दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। हालांकि सीएसओ ने मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए 2018-19 के विकास दर आंकड़े को वित्त वर्ष 2017-18 के 6.7 फीसदी के मुकाबले बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया गया। विकास दर को गति देने के लिए भी रेट कट एक उपाय हो सकता है।

इस बार की मौद्रिक नीति के प्रमुख बिंदु

  • रेपो दर 6.25% से घटाकर 6.00%
  • रिवर्स रेपो दर 6.00% से घटाकर 5.75%
  • बैंक दर 6.50% से घटाकर 6.25%
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फसिलिटी यानी एमएसएफ 6.50% से घटाकर 6.25%
  • नकद आरक्षित अनुपात चार प्रतिशत पर तटस्थ
  • वैधानिक तरलता अनुपात यानी एसएलआर 19.25%

निष्कर्ष

भारतीय रिजर्व बैंक RBI द्वारा रेपो रेट में की गई कटौती से होम, कार और पर्सनल लोन की ईएमआई में कमी के आसार दिख रहे हैं। जल्द ही बैंक इस कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगे।