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Blog / 03 Jun 2019

(आर्थिक मुद्दे) नई सरकार और आर्थिक चुनौतियाँ (New Government and Economic Challenges)

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(आर्थिक मुद्दे) नई सरकार और आर्थिक चुनौतियाँ (New Government and Economic Challenges)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रोफेसर अरुण कुमार (लेखक और प्रोफेसर), हरवीर सिंह (कृषि अर्थव्यवस्था के जानकार)

मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था एक 'चक्रीय मंदी' से गुज़र रही है। ऐसे में नई सरकार के सामने आर्थिक मोर्चे पर कई गंभीर चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों में अर्थव्यवस्था की विकास दर को तेज़ करना, वित्तीय क्षेत्र को दुरुस्त करना, प्रत्यक्ष करों का लक्ष्य हांसिल करना और श्रम सुधार जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं।

हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की ओर से जारी किए गए सुझावों में भी अवसंरचना विकास, परिसम्पत्तियों का मौद्रीकरण और अर्थव्यवस्था में नियमित फंड के लिए राजकोषीय गुंजाइश सुनिश्चित करने की बात कही गई है। 'क्रिसिल' ने नई सरकार को आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों की परिसम्पत्तियों की गुणवत्ता संबंधी समस्या का समाधान और उनके संचालन प्रक्रिया में सुधार लाने जैसे भी सुझाव दिए हैं। इसके अलावा क्रेडिट रेटिंग एजेंसी 'क्रिसिल' ने NBFC क्षेत्र की कंपनियों को दबाव से बाहर निकालने, GST में सुधार करने और 'इंडियनबैंकरप्सी कोड' के कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाने पर ज़ोर दिया है।

दरअसल नई सरकार के सामने अर्थवयवस्था की धीमी हुई रफ़्तार को पटरी पर लाना सबसे प्राथमिक चुनौती है। पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगभग साढ़े छः फीसदी पर रुकी हुई है। ये दर पिछले लगभग पंद्रह सालों के औसतन 7 फीसदी वृद्धि दर से कम है।

कमज़ोर निवेश और कम उपभोग के चलते औद्योगिक प्रदर्शन सूचकांक (IIP) भी अपने 21 महीने के न्यूनतम स्तर 0.1 % पर पहुँच गया है। ग़ौरतलब है कि 2018-19 वित्तीय वर्ष के लिए औद्योगिक प्रदर्शन सूचकांक (IIP) की वृद्धि दर 3.6 % थी। हालाँकि ये भी पिछले वित्त वर्ष (2017_18) 4.4 फीसद से कम ही रही।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी 'क्रिसिल' के मुताबिक़ भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी होने के पीछे उपभोग मांग में आई गिरावट है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर चल रही उठापठक की वजह से भी भारत के निर्यात में कमी आई है। रेटिंग एजेंसी 'क्रिसिल' की ओर से जारी किए गए सुझाव में निर्यात को बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा और निवेश को आकर्षित करने की दिशा में काम करने पर बल दिया गया है। जिससे अमेरिका व चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर के कारण विश्व की आपूर्ति श्रृंखला में होने वाले बदलाव का फायदा उठाया जा सके।

चुनावों में जोर शोर से उठे बेरोज़गारी के मुद्दे पर भी सरकार को ख़ासा ध्यान देना होगा। बेरोज़गारी की सुरत- ए- हाल मौजूदा समय में काफी ख़राब है। नई सरकार के सामने तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों ही तरह के रोज़गार प्रदान करने की चुनौती है। इसके अलावा NPA समस्या भी नई सरकार की आर्थिक चुनौतियों में शुमार रहेगी। पिछले साल बैंको का NPA क़रीब 10 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया था। ग़ौरतलब है कि भारत दुनिया का 5 वां सबसे बड़ा NPA वाला देश है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के मुताबिक इस समय क़रीब 12.4 लाख करोड रुपये की 1424 महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम चल रहा है। जबकि इनमें से लगभग 384 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं क्यूंकि बढ़ते NPA के कारण बैंकों की तरफ से वित्तपोषण में दिक्कतें आ रही हैं। इसके अलावा किसानों की आय को दो गुना करने और कृषि क्षेत्र की समृद्धि दर को बढ़ाना भी सरकार की प्राथमिक चुनौतियों में शामिल है।

जानकारों के मुताबिक़ GST में हुए तमाम संसोधन के बावजूद भी अभी इसमें पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल करना और GST की दरों को लेकर सुधार किए जाने की गुंजाइश है। इसके अलावा दीवालिया संहिता, भूमि और श्रम मामले में भी नई सरकार को सुधार करने जैसे कुछ महत्वपपूर्ण क़दम उठाने होंगे।