होम > Aarthik-mudde

Blog / 17 Jul 2019

(आर्थिक मुद्दे) आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 (Economic Survey 2018-19)

image


(आर्थिक मुद्दे) आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 (Economic Survey 2018-19)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रोफेसर अरुण कुमार (अर्थशास्त्री), अरिहन जैन (वरिष्ठ पत्रकार , बिजनेस स्टैंडर्ड)

परिचय

आम तौर पर बजट से एक दिन पहले वित्त मंत्री द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। आर्थिक सर्वेक्षण भारत सरकार का एक अहम सालाना दस्तावेज होता है, जो चालू वित्त वर्ष के पिछले साल से भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास का मूल्यांकन करता है। ये देश की आर्थिक स्थिति की दशा और दिशा को बताता है। इसमें अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार हालात की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में भी बताया जाता है। आर्थिक समीक्षा मुख्य आर्थिक सलाहकार के साथ वित्त और आर्थिक मामलों की जानकारों की टीम द्वारा तैयार की जाती है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-2019 की प्रमुख बातें

निजी निवेश है अहम: निजी निवेश की मांग, क्षमता, श्रम उत्पादकता, नई प्रौद्योगिकी, रचनात्मक खंडन और रोज़गार सृजन में मुख्य भूमिका।

व्यवहारजन्य अर्थव्यवस्था की सिद्धांतों का उपयोग: इकोनमी में एक थ्योरी नज इकोनोमिक्स कहलाती है। इसे 2017 के अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता और अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर ने प्रतिपादित किया है। नज इकोनोमी में लोगों के वित्तीय व्यवहार को बिना ज़ोर ज़बरदस्ती के निर्देशित किया जाता है। सरकार अब इसे अपनाने की कोशिश में है।

छोटी एमएसएमई: सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यमों की वृद्धि, रोजगार सृजन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये नीतियों में बदलाव की जरूरत। छोटी एमएसएमई फर्मों जो बौनी ही बनी रहतीं हैं, के बजाय बड़ी कंपनी बनने की क्षमता रखने वाली नई कंपनियों के लिये नीतियों को दिशा देने की जरूरत।

डाटा को सार्वजनिक वस्तु के रूप प्रस्तुत करना: सामाजिक रूचि से जुड़े आंकड़ों की बेहतर संभावना को बताया गया। समीक्षा में कहा गया है कि ये डेटा जनता का, जनता द्वारा जनता के लिये होने चाहिये। सरकार को विशेष रूप से गरीबों, सामाजिक क्षेत्रों में सार्वजनिक भलाई के लिहाज़ से डाटा का सृजन करने में हस्तक्षेप करना चाहिए।

निचली अदालतों की क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए: अनुबंध यानी कॉन्ट्रैक्ट का प्रवर्तन कारोबार सुगमता रैंकिंग में सुधार के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा। लगभग 87.5 प्रतिशत वाणिज्यिक विवाद निचली अदालतों में लंबित हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है। निचली अदालतों में 25 प्रतिशत उच्च न्यायालयों में चार प्रतिशत और उच्च न्यायालय में 18 प्रतिशत उत्पादकता सुधार से बैकलॉग समाप्त किया जा सकता है।

नीति की अनिश्चितता निवेश को प्रभावित करती है: कानूनी सुधार, नीतियों में निरंतरता, सक्षम श्रम बाजार और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर।

2040 में भारत की जनसंख्‍या का स्‍वरूप: अगले दो दशकों में जनसंख्‍या की वृद्धि दर में तेजी से कमी आने की संभावनाएं है। उम्रदराज होती आबादी के लिये तैयारी करने की जरूरत है। इसके लिये स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाने और चरणबद्ध तरीके से सेवानिवृति आयु बढ़ाने की ज़रुरत है।

स्‍वस्‍थ भारत के जरिये स्‍वच्‍छ भारत से सुंदर भारत: स्‍वच्‍छ भारत मिशन का विश्‍लेषण-

  • स्‍वच्‍छ भारत मिशन (एसबीएम) के जरिये लाये गये उल्‍लेखनीय स्‍वास्‍थ्‍य लाभ।
  • 93.1 प्रतिशत परिवारों की शौचालयों तक पहुंच।
  • जिन लोगों की शौचालयों तक पहुंच है, उनमें से 96.6 प्रतिशत ग्रामीण भारत में उनका उपयोग कर रहे है।
  • 30 राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्‍यक्तिगत घरेलू शौचालय की कवरेज।

किफायती विश्‍वसनीय और सतत ऊर्जा के माध्‍यम से समावेशी वृद्धि सक्षम बनाना:

  • भारत को उच्‍च मध्‍य आय वर्ग में दाखिल होने के लिए अपनी प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत में 2.5 गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
  • 0.8 मानव विकास सूचकांक अंक प्राप्‍त करने के लिए भारत को प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत में चार गुना वृद्धि किये जाने की जरूरत है।
  • पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अब भारत चौथे, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पांचवें और नवीकरणीय ऊर्जा संस्‍थापित क्षमता के क्षेत्र में पांचवें स्‍थान पर है।

समावेशी वृद्धि के लिए भारत में न्‍यूनतम वेतन प्रणाली पुनर्निर्धारण: बेहतर और प्रभावी न्यूनतम मजदूरी तय करने की प्रक्रिया को मजबूत किया जाएगा। इससे निचले स्तर पर न्यूनतम मजदूरी को बेहतर किया जा सकेगा। भारत में प्रत्‍येक तीन में से एक दिहाड़ी मजदूर न्‍यूनतम वेतन कानून के द्वारा सुरक्षित नहीं है। केन्‍द्र सरकार द्वारा पांच भौगोलिक क्षेत्रों में पृथक ‘नेशनल फ्लोर मिनिमम वेज’ को अधिसूचित किया जाना चाहिए। राज्‍यों द्वारा न्‍यूनतम वेतन ‘फ्लोर वेज’ से कम स्‍तरों पर निर्धारित नहीं होना चाहिए।

2018-19 में अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति

  • 2018-19 में भारत अब भी तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍था है।
  • जीडीपी की वृद्धि दर वर्ष 2017-18 में 7.2 प्रतिशत की जगह वर्ष 2018-19 में 6.8 प्रतिशत हुई।
  • 2018-19 में मुद्रास्‍फीति की दर 3.4 प्रतिशत तक सीमित रही।
  • सकल अग्रिम के प्रतिशत के रूप में फंसे हुए कर्ज दिसम्‍बर, 2018 के अंत में घटकर 10.1 प्रतिशत रह गये, जोकि मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत थे।
  • 2017-18 के बाद से निवेश की वृद्धि में सुधार हो रहा है : स्थिर निवेश में वृद्धि दर 2016-17 में 8.3 प्रतिशत से बढ़कर अगले साल 9.3 प्रतिशत और उससे अगले साल 2018-19 में 10.0 प्रतिशत हो गई।
  • चालू खाता घाटा जीडीपी के 2.1 प्रतिशत पर है।
  • केन्‍द्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2017-18 में जीडीपी के 3.5 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 3.4 प्रतिशत रह गया।
  • निजी निवेश में वृद्धि और खपत में तेजी से 2019-20 में वृद्धि दर में बढ़ोतरी होने की संभावना है।