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Blog / 27 Nov 2019

(आर्थिक मुद्दे) विनिवेश : सवाल और चुनौतियां (Disinvestment: Concerns and Challenges)

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(आर्थिक मुद्दे) विनिवेश : सवाल और चुनौतियां (Disinvestment: Concerns and Challenges)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय शंकर (पूर्व उद्योग सचिव), शिशिर सिन्हा (पत्रकार, बिज़नेस लाइन)

चर्चा में क्यों?

गत 20 नवंबर 2019 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने पांच केंद्रीय सार्वजनिक उद्यमों यानी CPSEs में सरकारी हिस्सेदारी के रणनीतिक विनिवेश को मंजूरी दे दी। इन कंपनियों में भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL), शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (SCI), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (CONCOR), टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (THDCIL) और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) शामिल हैं। गौरतलब है कि सरकार ने हाल में विनिवेश की प्रक्रिया में गति लाने का फैसला लिया है।

विनिवेश और रणनीतिक विनिवेश में अंतर

विनिवेश: सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है। विनिवेश में सरकार अपने हिस्से के शेयर्स को दूसरे निवेशकों को दे देती है। पर तमाम वजहों से संबंधित कंपनी में विनिवेश के बाद भी सरकार का दखल प्रबंधन में बना रहता है। उदाहरण के लिए टेलीकाम सेक्टर की सरकारी कंपनी एमटीएनएल में सरकार ने अपने हिस्से का सीमित मात्रा में विनिवेश किया, फिर भी सरकार के पास अब भी पचास प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है। इसलिए एमटीएनएल विनिवेश के बावजूद पूरे तौर पर सरकारी दखल में ही चल रही है।

रणनीतिक विनिवेश: रणनीतिक विनिवेश में सरकारी कंपनियों के शेयर्स को, अपनी हिस्सेदारी को इस तरह से हस्तांतरित करती है कि फिर संबंधित कंपनियों के प्रबंधन में दखल का रास्ता नहीं बचता और कंपनी का प्रबंधन पूरे तौर पर निजी हाथों में हस्तांतरित हो जाता है। रणनीतिक विनिवेश का एक उद्देश्य यह भी होता है कि कंपनी के कामकाज में कुशलता लायी जा सके।

इस विनिवेश से क्या लाभ हो सकता है?

सरकार के मुताबिक इस रणनीतिक विनिवेश से प्राप्त होने वाले संसाधन का उपयोग सामाजिक क्षेत्र की विकास योजनाओं के वित्त पोषण के लिए किया जाएगा। विनिवेश से प्राप्त धन बजट का हिस्सा होगा और लोग इसके उपयोग की जांच कर सकेंगे।

विनिवेश के जरिए सरकारी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा के मामले में और सक्षम बनाने में मदद मिलेगी।

विनिवेश की नई प्रक्रिया की जरूरत क्यों पड़ी?

दरअसल बड़ी विनिवेश योजनाओं को लेकर तमाम सरकारी कंपनियों से जुड़े प्रशासनिक मंत्रालयों को निजीकरण का डर सताता रहता था। तमाम मंत्रालय अपने से जुड़ी कंपनियों में विनिवेश को लेकर उत्साहित भी नहीं रहते, क्योंकि विनिवेश के चलते संबंधित मंत्रालय के सत्ता-वृत्त में कमी होती है। इसलिए विनिवेश में रोड़ा अटकाने वाले प्रशासनिक मंत्रालयों की भूमिका को कम करने के लिहाज से नई प्रक्रिया को मंजूरी दी गई।

सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष 2019-20 में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है।

क्या है नई प्रक्रिया?

मौजूदा वक्त में रणनीतिक विनिवेश के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) की पहचान नीति आयोग द्वारा की जाती है। वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग यानी DIPAM को रणनीतिक विनिवेश के लिये नोडल विभाग बनाया गया है। इसे डिपार्टमेंट आफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट यानी डीपाम के नाम से भी जाना जाता है।

अब DIPAM और नीति आयोग संयुक्त रूप से रणनीतिक विनिवेश के लिये सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करेंगे।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

भारत एक कल्याणकारी राज्य है। इसी सिद्धांत के आधार पर सरकारी कंपनियों के अधिकारियों और कर्मचारियों को तमाम प्रकार के अधिकार मिले होते हैं। लेकिन एक निजी कंपनी में इन अधिकारियों और कर्मचारियों को शायद उतने अधिकार संभव ना हो। इसलिए किसी भी प्रकार के विनिवेश से पहले सरकार को निजी कंपनियों को मिलने वाली छूट और कर्मचारियों के हक के बीच एक उचित रेखा खींचना जरूरी होगा।

विनिवेश के तहत सरकारी कंपनियों में कुछ रणनीतिक साझेदार बनाए जाएंगे। ये रणनीतिक साझेदार कौशल लाने के नाम पर विशुद्ध मुनाफाखोरी पर ना उतर आयें, यह देखना भी सरकार का जिम्मा है। साथ में यह भी देखना जरुरी है कि श्रमिकों के हकों की अवहेलना ना हो।