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Blog / 24 Sep 2019

(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (America-China Trade War)

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(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (America-China Trade War)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अशोक सज्जनहार (पूर्व राजनयिक), निमिश कुमार (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीनी सामानों पर आयात कर बढ़ाने के अपने फैसले को अगले 15 दिनों के लिए टाल दिया है। ग़ौरतलब है कि अमेरिका ने 250 अरब डॉलर की मूल्य वाले चीनी सामानों पर आगामी 1 अक्टूबर से आयात कर लगाने का एलान किया था। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के इस ऐलान के बाद अब यह आयात कर 15 अक्टूबर से लगाए जा सकते हैं। वहीं चीन ने भी कई अमेरिकी सामानों पर से आयात कर हटाने का ऐलान किया है।

दोनों देशों की तरफ से हुए इस सकारात्मक घोषणा के बाद ट्रेड वॉर में कुछ नरमी देखी जा रही है। साथ ही अमेरिका और चीन के बीच आगामी अक्टूबर में सुनियोजित वार्ता से पहले इन फ़ैसलों को सद्भावना के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

व्यापार युद्ध यानी ट्रेड वॉर क्या है?

जब एक देश किसी दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर बदले की भावना से टैक्स या टैरिफ बढ़ा देता है तो इसे ट्रेड वॉर कहा जाता है। ट्रेड वॉर संरक्षणवाद का नतीज़ा होता है जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधित होता है।

  • आमतौर पर संरक्षणवाद के तहत घरेलू व्यापार और नौकरियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने और व्यापार घाटे को सही करने के लिहाज़ से कदम उठाये जाते हैं।
  • इसके लिए एक देश दूसरे देश से आने वाले समान पर टैरिफ या टैक्स लगा देता है या उसे बढ़ा देता है। इससे आयात होने वाली चीजों की कीमत बढ़ जाती हैं, जिससे वे घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाती। इससे उनकी बिक्री घट जाती है।
  • मौजूदा वक़्त में, अमेरिका और चीन के बीच यही स्थिति देखी जा रही है।

मौजूदा ट्रेड वॉर के प्रभाव

आईएमएफ के मुताबिक ट्रेड वार के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है। आईएमएफ के प्रवक्ता गेरी राइस ने बताया कि इस ट्रेड वार से अगले साल ग्लोबल जीडीपी को 0.8 फीसदी नुकसान पहुंच सकता है। साथ ही,यह प्रभाव आगे आने वाले समय में भी दिखता रहेगा। ट्रेड वॉर के कारण..

  • वैश्विक स्लोडाउनकी की स्थिति देखी जा रही है।
  • वैश्विक आर्थिक विवादों के निपटारे में बहुपक्षवाद (Multilateralism) और विश्वास का स्तर कम होता जा रहा है।
  • डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं की अहमियत दिन-ब-दिन कम होती जा रही है।
  • चीन में अर्थव्यवस्था और रोज़गार दोनों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है।
  • अमेरिका और चीन के बीच की ये लड़ाई दूसरे क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है, मसलन लोकतंत्र बनाम तानाशाही और हांगकांग में अमेरिकी धमक।

कहाँ तक सही है ट्रेड वॉर?

ट्रेड वॉर को लेकर विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रेड वॉर घरेलू व्यापार के लिहाज़ से ठीक होता और इसका लाभ मिलता है। वहीँ इसके आलोचकों का दावा है कि लॉन्ग टर्म में, ट्रेड वॉर घरेलू कंपनियों और उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुंचाता है।

लाभ

  • घरेलू कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाता है।
  • घरेलू सामानों की मांग में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • घरेलू नौकरी में बढ़ोत्तरी होती है।
  • व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलती है।
  • ऐसे देश जो अनैतिक व्यापार करते हैं उनको जवाब देने का एक अच्छा तरीका है।

नुकसान

  • लागत और मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलता है।
  • उपभोक्ताओं के सामने विकल्पों की कमी हो जाती है।
  • अंतराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक वृद्धि को धीमा कर देता है।
  • दो देशों के बीच राजनयिक और सांस्कृतिक संबंध को रोकता है।
  • जब दो देशों में ट्रेड वॉर छिड़ता है तो उसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ता है।

ट्रेड वॉर के लिए टैरिफ और नॉन टैरिफ दोनों तरीके अपनाते हैं देश

ट्रेड वार में देश एक दूसरे के खिलाफ कई रास्ते अपनाते हैं। मसलन, आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने और कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने जैसे कदम शामिल होते हैं। इसके अलावा उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे कदम भी उठाये जाते हैं। मौजूदा वक़्त में चीन पर कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने का आरोप लग रहा है।

कितना असर पडेगा भारत पर?

वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1.6 फीसदी की है, इसलिए भारत पर ट्रेड वॉर के असर का अनुमान लगा पाना थोड़ा मुश्किल है। कुछ सेक्टरों पर इसका जरूर असर पड़ सकता है।

  • अगर ग्लोबल ट्रेड वॉर बढ़ता है तो विदेशी निवेशक भारी बिकवाली शुरू कर सकते हैं। और अपना पैसा भारतीय बाज़ारों से निकाल सकते हैं।
  • अगर अमेरिका चीन के सामान पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाता है तो चीन शॉर्ट टर्म उपाय के तौर पर अपनी करंसी की वैल्यू कम कर सकता है। इससे एशियाई करंसी में कमजोरी का एक सिलसिला शुरू होगा। इसकी ज़द में रुपया भी आ सकता है।
  • चीनी युआन की वैल्यू कम होने से चीन से होने वाला आयात सस्ता हो सकता है जिसके कारण रुपये पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है।
  • अमेरिका की देखा-देखी यूरोपियन यूनियन भी संरक्षणवादी क़दम उठा सकता है, और इस कारण भारतीय निर्यात पर असर पड़ सकता है।
  • अस्थिरता के चलते अंतर्राष्ट्रीय बांड्स बाज़ार पर उलटा असर पड़ने के आसार नज़र आ रहे हैं। इसका असर भारतीय बैंकों की कमाई पर भी पड़ सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता के कारण क्रूड के महंगा होने की आशंका है, जिससे भारत में लागत पर असर पड़ सकता है।

यूएन की एक स्टडी के मुताबिक, चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के कारण भारत को कुछ फायदा भी होगा। दरअसल अमेरिका-चीन तनाव से उन देशों को फायदा मिलने की उम्मीद है, जो अधिक प्रतिस्पर्धी हैं और अमेरिकी और चीनी कंपनियों का जगह लेने की आर्थिक क्षमता रखते हैं।

ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए?

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा विकास विशेषकर बिजली, बंदरगाहों तक आसान पहुंच और अन्य बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाना चाहिए।

  • तटीय आर्थिक क्षेत्रों का विकास।
  • वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (Global value chains) के साथ बेहतर समन्वय।
  • आईएमएफ और डब्ल्यूटीओ जैसी वैश्विक संस्थाओं को हर नजरिए से लगातार बेहतर बनाने और उसमें लोकतंत्र की व्यवस्था मजबूत करने की मांग करते रहना चाहिए।
  • पूंजी को लेकर किसी भी वैश्विक समस्या से निपटने के लिए आरबीआई जैसे संस्थानों को सशक्त बनाना और कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देना।
  • चूँकि भारत का अमेरिका आसियान यूरोपियन यूनियन चीन और रूस समेत इन तमाम देशों और संगठनों के साथ अच्छे संबंध है, ऐसे में भारत इनके बीच एक पुल का काम कर सकता है।