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Blog / 27 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) शहरी बाढ़ का शिकार हैदराबाद (Cause of Urban Flooding in Hyderabad)

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(इनफोकस - InFocus) शहरी बाढ़ का शिकार हैदराबाद (Cause of Urban Flooding in Hyderabad)


चर्चा में क्यों?

तेलंगाना में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से कम से कम 50 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि हजारों करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है. कई इलाकों में 150 मिमी से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है. अकेले हैदराबाद में लगभग 31 लोगों की जानें जा चुकी हैं।

बाढ़ है क्या?

भारत विश्व का दूसरा बाढ़ प्रभावित देश है। आमतौर पर एक बड़े जल स्रोत के जरिए ऐसे जगह पानी भर जाना जहां अमूमन जलभराव नहीं होता, इसे ही बाढ़ कहा जाता है।

  • जब तेज और लंबी बारिश के चलते शहरी क्षेत्रों में जलभराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है और यह जलभराव यहां की जल निकासी तंत्र की क्षमता को पार कर जाता है तो इसे शहरी बाढ़ कहते हैं।
  • गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग ने फरवरी 2006 में बताया था कि देश के तकरीबन 39 जिले बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में आते हैं।

बाढ़ के कारण और प्रभाव

मौजूदा वक्त में बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण ही नहीं आती, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है।

  • बेहतर बाढ़ प्रबंधन का ना होना, मौसमी बदलाव और नदियों के रास्ते में गाद का इकट्ठा होना तमाम ऐसी वज़हें हैं जिसके चलते बाढ़ की दिक्कत पैदा होती है।
  • इसके अलावा बादल फटना, मानवीय दख़लअंदाज़ी और जंगलों की बेतहाशा कटाई भी बाढ़ के लिए जिम्मेदार हैं।
  • ग़ौरतलब है कि अगर एक दिन में करीब 15 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा की बारिश होती है, तो नदियों का जल-स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
  • केंद्रीय जल आयोग द्वारा जारी एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 64 साल में बाढ़ के चलते करीब एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर और घरों को जो नुकसान हुआ है उसकी कीमत 3,65,860 करोड़ों रुपए आंकी गई है।
  • बाढ़ग्रस्त इलाकों में कई तरह की बीमारियाँ मसलन कालरा, एंट्राइटिस और हेपेटाईटिस फैल जाती हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों में से 20 फीसदी मौत अकेले भारत में ही होती है।
  • वैसे तो बाढ़ के नुकसान ज्यादा है लेकिन इसके कुछ फायदे भी हैं। बाढ़ के कारण हर साल खेतों में उपजाऊ मिट्टी जमा होती है जो खेती के लिहाज से काफी फ़ायदेमंद साबित होता है। साथ ही, बाढ़ की वजह से जैव-विविधता पर भी आंशिक रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बाढ़ के संबंध में सरकार द्वारा किए गए पहल

बाढ़ से निपटने के लिए नीतिगत कदमों के अलावा सरकार जरूरत के हिसाब से अन्य उपाय भी करती रहती है। इनमें तटबंदी, राहत और बचाव कार्य और चेतावनी जारी करने जैसे कदम शामिल हैं।

  • बाढ़ से निपटने के लिए एक व्यापक फ्रेमवर्क के लिए सरकार ने साल 1980 में एक राष्ट्रीय बाढ़ आयोग का गठन किया था. इसके अलावा अब तक तीन बार राष्ट्रीय जल नीति जारी की जा चुकी है।
  • 18 मार्च, 2015 को जापान के सेंदाई शहर में आयोजित आपदा जोखिम में कमी को लेकर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान सेंदाई फ्रेमवर्क को अपनाया गया। इस फ्रेमवर्क में यह स्वीकार किया गया कि आपदा जोखिम को कम करने के लिए प्राथमिक भूमिका सरकार की होती है लेकिन इसमें स्थानीय सरकार, निजी क्षेत्र और अन्य हितधारकों की भी जिम्मेदारी होती है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

जिस तरह से बाढ़ की स्थिति दिन-ब-दिन भयावह होती जा रही है। ऐसे में, सरकार की तरफ से एकतरफ़ा किये जाने वाले प्रयास से वाजिब नतीजे नहीं आएँगे। इसके लिए राज्य और स्थानीय स्तर पर बाढ़ की चुनौतियों से निपटने के लिए बाक़ायदा लोगों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही, जरूरी मूलभूत व्यवस्थाएं भी उपलब्ध करानी होंगी।

  • हमें एक बेहतर सूचना तंत्र का निर्माण करना होगा, जो बाढ़ के दौरान भी काम करने में सक्षम हो, ताकि समय रहते जनता के बीच आवश्यक सूचना पहुंचाया जा सके और बाढ़ का पूर्वानुमान लगाया जा सके।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सुधार मसलन तटबंध, कटाव रोकने के उपाय और जल निकास तंत्र को मजबूत करने होंगे।
  • साथ ही, अलग-अलग क्षेत्रों में बाढ़ का कारण और प्रकृति अलग अलग होती है। इसलिए हर क्षेत्र के अनुसार हमें उपाय भी उसी हिसाब से करने होंगे।
  • बाढ़ राज्य सूची का विषय है ऐसे में कई बार नीतियों का व्यापक स्तर पर समन्वयन नहीं हो पाता। इसलिए नीतियों का समन्वयन बहुत जरूरी है।
  • हमें अवैध निर्माण और अतिक्रमण को भी रोकना होगा।