(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) येलोस्टोन ज्वालामुखी (Yellowstone Volcano)
हाल ही में, पिछले करीब एक महीने के दौरान अमेरिका में स्थित दुनिया के सबसे खतरनाक ज्वालामुखी में शुमार येलोस्टोन (Yellowstone) में भूकंप के 105 झटके महसूस किए गए हैं। भूकंप के इन झटकों से भू वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है। इनमें से तीन बार तो बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी से पानी निकला है।
डीएनएस में आज हम आपको येलोस्टोन ज्वालामुखी के बारे में बताएंगे और साथ ही समझेंगे से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को भी
अमेरिका के व्योमिंग राज्य में स्थित महाविनाशक ज्वालामुखी येलोस्टोन पिछले 6 लाख साल से शांत है, लेकिन यह जमीन के अंदर से धधक रहा है. चिंता की बात यह है कि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस ज्वालामुखी में कभी भी विस्फोट हो सकता है और अगर इसमें विस्फोट हुआ तो भारी तबाही हो सकती है। हालांकि इससे अलग वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि अभी हाल फिलहाल में येलोस्टोन में विस्फोट नहीं होने वाला है. लेकिन साथ ही उन्होंने यलोस्टोन ज्वालामुखी में हाइड्रोथर्मल विस्फोट से इनकार नहीं किया है। कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यलोस्टोन ज्वालामुखी के नीचे लाखों साल से दबाव बन रहा है और अगर ज्वालामुखी के नीचे गर्मी बढ़ती रही तो यह उबलना शुरू हो जाएगा और जमीन के अंदर चट्टानें पिघलना शुरू हो जाएंगी। ऐसे में संभावना है कि इसमें विस्फोट हो सकता है. इसीलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इस महाविनाशक ज्वालामुखी के विस्फोट से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। ग़ौरतलब है कि लगभग 13 हजार साल पहले ऐसा ही एक धमाका इस ज्वालामुखी के पास हुआ था जिस वजह से यहां 2.5 किलोमीटर चौड़ी खाई बन गई थी।
नासा की योजना है कि अगर इस ज्वालामुखी में जब भी तापमान बढ़े उसे ठंडा कर दिया जाए। दरअसल, किसी भी ज्वालामुखी में विस्फोट के लिए सबसे पहले यह पृथ्वी के कोर में गरम होता है और फिर एक दिन यह महाविस्फोट में बदल जाता है। यह ज्वालामुखी हर साल करीब 6 औद्योगिक पावर प्लांट के बराबर गर्मी पैदा करता है। इनमें से करीब 30 फीसदी गर्मी इसके अंदर ही रह जाती है। नासा के वैज्ञानिकों ने इसी गर्मी को शीतल करने की योजना बनाई है। इस योजना के तहत यलोस्टोन के आसपास पृथ्वी की सतह से तकरीबन 10 किलोमीटर नीचे तक के कई कुएं खोदे जाएंगे। इन कुओं के जरिए ठंडा पानी अंदर डाला जाएगा ताकि मैग्मा के चेंबर के पास मौजूद चट्टानों को ठंडा किया जा सके। यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे कार की इंजन को ठंडा करने के लिए हम उसमें पानी या कूलेंट डालते हैं। इससे एक और फायदा यह होगा कि जो पानी अंदर डाला जाएगा वह 340 डिग्री सेल्सियस तक गरम हो जाएगा और इससे इलेक्ट्रिक जेनेरेटर चलाया जा सकेगा और इस तरह बिजली का भी निर्माण संभव हो सकता है।
ज्वालामुखी के बारे में आपको बताएं तो यह पृथ्वी में एक ऐसा छेद होता है जिससे लावा,राख,गैस तथा जलवाष्प आदि बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी की क्रिया में पृथ्वी के भीतर मैग्मा तथा गैस के निर्माण से पृथ्वी की सतह पर आने वाले लावा तथा इससे हुए स्थलाकृतियों के निर्माण तक की प्रक्रिया शामिल है। मैग्मा में सिलिका की मात्रा के आधार पर ज्वालामुखी की विस्फोटकता तय होती है। जब सिलिका की मात्रा कम रहती है तब आमतौर पर विस्फोट कम होता है वहीँ सिलिका की अधिक मात्रा में विस्फोट अधिक होता है।