(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) अफ्रीकी स्वाइन फीवर (African Swine Fever)
हाल ही में, दक्षिण मिजोरम के लुंग्लेइ जिले में पिछले दो हफ्ते के दौरान 80 से ज्यादा सूअरों की मौत की बात सामने आई है। इस घटना की वजह से बांग्लादेश सीमा पर स्थित इस क्षेत्र में घबराहट फैल गई है। सूअरों की मौत अभी भी जारी है और अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक, इससे करीब 40 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। हालांकि, सूअरों की मौत के कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है, लेकिन ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है कि यह मौतें अफ्रीकन स्वाइन फीवर के कारण हुई होंगी। मिजोरम से भेजे गए इन सैंपल को भोपाल के राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान यानी (NIHSAD) द्वारा जांच किया जाएगा।
DNS में आज हम आपको अफ्रीकी स्वाइन फीवर के बारे में बताएंगे और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में भी
अफ्रीकी स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली पशुओं में होने वाला एक बेहद ही संक्रामक रक्तस्रावी वायरल रोग है। यह एसफेरविरिडे (Asfarviridae) परिवार के एक बड़े DNA वाले वायरस की वजह से होता है। इस रोग में पशुओं की केवल उत्पादकता ही नहीं प्रभावित होती है, बल्कि इससे इनकी मृत्यु भी हो जाती है। सूअर को तेज बुखार, लड़खड़ा कर चलना, सफेद सूअर के शरीर पर नीले चकते होना, सुस्ती, खाना-पीना छोड़ देना - यह सभी अफ्रीकी स्वाइन फीवर के लक्षणों में शामिल है। फार्म वाले सूअर इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि जंगली सूअर या देसी सूअर की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी होती है।
अफ्रीकी स्वाइन फीवर, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में पता चलने पर तुरंत इस संगठन को सूचित करना जरूरी होता है। पशुओं में यह बीमारी संक्रमित घरेलू या जंगली सूअरों के संक्रमण से सामने आता है। इसके साथ ही यह बीमारी अप्रत्यक्ष संपर्क जैसे खाद्य पदार्थ, अवशिष्ट या कचरे आदि से भी फैलता है। इसके अलावा, ये वायरस सुअर के मांस, सलाइवा, खून और टिशू से भी फैलता है। इस बीमारी में संक्रमित पशुओं के हताहत होने की दर 100% है।
वैसे तो अफ्रीकन स्वाइन फीवर और सामान्य स्वाइन फीवर के लक्षण एक ही जैसे होते हैं, लेकिन यह स्वाइन फीवर से अलग है। राहत की बात यह है कि यह बीमारी कोई जूनोटिक बीमारी नहीं है यानी यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है। मौजूदा वक्त में इस रोग का कोई भी सिद्ध टीका या इलाज उपलब्ध नहीं है। इसके रोकथाम के लिए तमाम देशों के द्वारा स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग तरह की रणनीतियां अपनाई जाती हैं। इसमें संक्रमित देशों से आने जाने वाले पशु आहार, पशुधन आयात और वाहनों आदि पर रोक लगा दी जाती है। साथ ही, संक्रमित सूअरों की ट्रेसिंग कर उन्हें मार दिया जाता है। रोग के प्रसार को रोकने के लिए पशुओं की गतिविधियों पर नियंत्रण लगाया जाता है। इसके अलावा, पशुधन के प्रयोग में लाए जाने वाले अवशिष्ट, भोजन समेत अन्य कचरों का उचित तरीके से निस्तारण किया जाता है।
गौरतलब है कि अभी हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत को अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) से प्रभावित देशों की सूची में शामिल कर दिया गया है। इसकी वजह से अब भारत से पोर्क और पोर्क उत्पादों के आयात पर अमेरिका में प्रतिबंध लग गया है। बता दें कि साल 2020 में भारत से पोर्क और संबंधित उत्पादों का अमेरिका में निर्यात 5,00,000 अमेरिकी डॉलर का था।