पेपर-III: सामान्य अध्ययन-II (शासन, संविधान, राजनीति, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
क्रम संख्या |
केस |
संबंधित अनुच्छेद |
उच्चतम न्यायालय का निर्णय |
1 |
ए.के. गोपालन बनाम. मद्रास राज्य |
21 एवं 22-
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1. निवारक निरोध अधिनियम की धारा 14 को अमान्य कर दिया जबकि शेष अधिनियम को वैध एवं प्रभावी घोषित कर दिया गया । 2. अनुच्छेद 21 के तहत "व्यक्तिगत स्वतंत्रता" की व्याख्या भौतिक शरीर की स्वतंत्रता (शारीरिक संयम से मुक्ति) से की गई ।
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2 |
. सज्जन सिंह बनाम. राजस्थान राज्य (1964) |
13 एवं 368
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1.अनुच्छेद 368 के तहत बनाया गया एक संवैधानिक संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 13(2) के अर्थ में एक कानून नहीं है।
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3 |
गोलक नाथ बनाम. पंजाब राज्य (1967) |
13 और 368
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1. इस वाद के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने शंकरी प्रसाद केस (1951) और सज्जन सिंह केस (1964) में दिए गए अपने पहले के निर्णयों को खारिज कर दिया। 2. यह निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन की शक्ति का उपयोग संविधान के भाग III में गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को कम करने या छीनने के लिए नहीं किया जा सकता है।
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4 |
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) |
13 और 368
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मौलिक अधिकार मामले के नाम से प्रसिद्ध इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि संसद, अनुच्छेद 368 के तहत अपनी संवैधानिक शक्ति का प्रयोग करके, संविधान के किसी भी या सभी प्रावधानों में संशोधन कर सकती है, जिसमें मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं, लेकिन संसद संविधान की "बुनियादी संरचना" को छोड़कर को संशोधित नहीं कर सकती । |
5 |
मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) |
21
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ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामला (1950) में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया। । इस मामलें में निम्नलिखित का अभिनिर्धारण किया गया - अनुच्छेद 14, 19 और 21 परस्पर अनन्य नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' से वंचित करने की प्रक्रिया निर्धारित करने वाले कानून को अनुच्छेद 19 की आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। साथ ही, अनुच्छेद 21 में कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को अनुच्छेद 14 की आवश्यकताओं का भी पालन करना चाहिए |
6 |
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) |
31C और 368
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42वें संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 31C (मौलिक अधिकारों पर राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत को प्राथमिकता देने के लिए) में किया गया संशोधन असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। न्ययालय ने फैसला सुनाया कि संसद खुद को असीमित शक्ति प्रदान करने के लिए इस सीमित शक्ति (अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने के लिए) का प्रयोग नहीं कर सकती है। इसलिए संसद स्वतंत्रता और समानता के अधिकार सहित व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को अल्पीकृत नहीं कर सकती। |