सन्दर्भ:
22 अप्रैल 2025 को (जो कि पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया गया) हरियाणा के पिंजौर स्थित जटायू संरक्षण प्रजनन केंद्र (JCBC) से 34 अति संकटग्रस्त गिद्धों को सफलतापूर्वक महाराष्ट्र स्थानांतरित किया गया। इनमें 20 लॉन्ग-बिल्ड गिद्ध और 14 व्हाइट-रम्प्ड गिद्ध शामिल थे। यह पहल भारत में गिद्ध संरक्षण के प्रयासों को नई दिशा देने वाली है, क्योंकि इसका उद्देश्य इन विलुप्तप्राय पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में पुनः स्थापित करना और जैव विविधता को संतुलित बनाए रखना है।
मुख्य बिंदु
शामिल प्रजातियाँ:
- लॉन्ग-बिल्ड गिद्ध (Gyps indicus)
- व्हाइट-रम्प्ड गिद्ध (Gyps bengalensis)
ये दोनों गिद्ध प्रजातियाँ IUCN रेड लिस्ट में अति संकटग्रस्त (Critically Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध हैं।
जहाँ गिद्धों को पुनः छोड़ा गया:
इन गिद्धों को महाराष्ट्र के तीन प्रमुख टाइगर रिज़र्व में प्राकृतिक वातावरण में पुनः बसाया गया, ताकि वे सुरक्षित रूप से प्राकृतिक जीवन जी सकें और प्रजनन में सफल हो सकें:
1. मेलघाट टाइगर रिज़र्व
2. पेंच टाइगर रिज़र्व
3. ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व
संरक्षण प्रयास:
इस पुनर्वास अभियान का नेतृत्व बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (BNHS) ने किया, जिसने गिद्धों की यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा, आराम और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा। 2 से 6 वर्ष आयु के इन गिद्धों का विस्तृत स्वास्थ्य परीक्षण किया गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे जंगल में जीवन के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। इसके बाद, गिद्धों को तीनों टाइगर रिज़र्व में संतुलित रूप से इस प्रकार वितरित किया गया कि पारिस्थितिक संतुलन बना रहे और प्रजनन की संभावनाएँ अधिकतम हो सकें।
संरक्षण का महत्व
1. गिद्धों की आबादी में पुनरुद्धार: 1990 के दशक से भारत में गिद्धों की संख्या में 90% से अधिक गिरावट दर्ज की गई है, जिसका प्रमुख कारण डाइक्लोफेनाक नामक दर्द निवारक दवा से हुई विषाक्तता है। ऐसे में संरक्षण प्रजनन केंद्र और पुनर्वास कार्यक्रम इस संकटग्रस्त प्रजाति को बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
2. जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना: गिद्ध मृत जानवरों को खाकर पर्यावरण की स्वाभाविक सफाई करते हैं, जिससे गंभीर बीमारियाँ फैलने से रुकती हैं। इस तरह वे पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक अनिवार्य "प्राकृतिक सफाईकर्मी" की भूमिका निभाते हैं।
3. सॉफ्ट रिलीज़ प्रोटोकॉल (Soft Release Protocol): गिद्धों को जंगल में पूरी तरह छोड़ने से पहले उन्हें सीमित और संरक्षित क्षेत्र में कुछ समय तक रखा जाता है, जिससे वे नए वातावरण के प्रति अभ्यस्त हो सकें। यह प्रक्रिया उनके जीवित रहने और जंगल में सफलतापूर्वक बसने की संभावना को काफी बढ़ा देती है।
प्रशासनिक और नीतिगत पहलू
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह पूरी परियोजना भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत संचालित की जा रही है, जो देश में वन्यजीवों की रक्षा और उनके आवासों के संरक्षण के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
- गिद्ध संरक्षण हेतु कार्य योजना (APVC) 2020-2025: गिद्धों का यह अंतर-राज्यीय स्थानांतरण गिद्ध संरक्षण कार्य योजना 2020-2025 के अनुरूप है। इस योजना में प्रजनन केंद्रों की स्थापना, प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और डाइक्लोफेनाक जैसी हानिकारक NSAIDs से मुक्त सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान और निगरानी को प्राथमिकता दी गई है।
- राज्यों और एजेंसियों के बीच समन्वय: इस परियोजना में विभिन्न राज्य वन विभागों, राज्य वन्यजीव बोर्डों और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (BNHS) जैसे गैर-सरकारी संगठनों के बीच सफल समन्वय देखने को मिला है।
भारत में गिद्ध
- गिद्ध सामाजिक और मांसाहारी पक्षी होते हैं, जो मरे हुए जानवरों को खाकर सफाई करते हैं।
- दुनिया भर में 23 प्रजातियों में से 9 भारत में पाई जाती हैं।
भारत में गिद्धों की संरक्षण स्थिति
प्रजाति |
IUCN स्थिति |
व्हाइट-रम्प्ड गिद्ध |
अति संकटग्रस्त |
स्लेंडर-बिल्ड गिद्ध |
अति संकटग्रस्त |
लॉन्ग-बिल्ड गिद्ध |
अति संकटग्रस्त |
रेड-हेडेड गिद्ध |
अति संकटग्रस्त |
इजिप्शियन गिद्ध |
संकटग्रस्त |
हिमालयन ग्रिफन |
संभावित संकटग्रस्त |
सिनेरियस गिद्ध |
संभावित संकटग्रस्त |
बीर्डेड गिद्ध |
संभावित संकटग्रस्त |
ग्रिफन गिद्ध |
संकटमुक्त (Least Concern) |
- CITES: परिशिष्ट II
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
गिद्धों की विशेषताएँ
- गिद्ध आकार में बड़े और भारी होते हैं, जिनके चौड़े पंख, गंजे सिर और झबरे (फुलके हुए गर्दन वाले पंख होते हैं।
- ये गर्म हवा की ऊर्ध्वगामी धाराओं (thermal currents) का उपयोग करके ऊँचाई पर लंबी उड़ान भरते हैं और मुख्य रूप से मृत जानवरों का मांस खाते हैं।
- व्यवहार संबंधी विशेषताएँ: ये प्रायः ऊँचाई पर चक्कर लगाकर उड़ते हैं, मृत जानवरों की खोज में रहते हैं, और कभी-कभी कचरा या मल जैसे सड़ने वाले अवशेष भी खा लेते हैं।
मुख्य खतरे
- मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली डाइक्लोफेनाक दवा गिद्धों के लिए अत्यंत जहरीली है और यही इनके तेजी से घटते संख्या का प्रमुख कारण रही है।
- शिकार किए गए जानवरों के शवों में मौजूद सीसे (lead) के अंश गिद्धों को गंभीर रूप से विषाक्त कर सकते हैं।
- बिजली के तारों से टकराने पर झटके लगना, वाहनों से टकराव, भोजन की कमी के कारण भूख से मौत, और प्राकृतिक आवास का नष्ट होना भी इनकी संख्या घटने के प्रमुख कारण हैं।
- कभी-कभी गिद्धों को जानबूझकर ज़हर दिया जाता है या उन्हें नुकसान पहुँचाया जाता है, जो इनकी सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।
निष्कर्ष
34 अति संकटग्रस्त गिद्धों का महाराष्ट्र में सफलतापूर्वक स्थानांतरण, भारत के गिद्ध संरक्षण प्रयासों की दिशा में एक अहम मील का पत्थर है। इन गिद्धों को जंगल में पुनः बसाकर, संरक्षणकर्ता न केवल पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं, बल्कि सफल प्रजनन को भी बढ़ावा दे रहे हैं। यह पहल विशेष रूप से लॉन्ग-बिल्ड और व्हाइट-रम्प्ड गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने की कोशिश है।