संदर्भ:
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पहली बार प्लास्टिक प्रदूषण, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, और स्वच्छ, स्वस्थ व टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को आपस में स्पष्ट रूप से जोड़ा गया है।
प्रस्ताव की मुख्य बातें:
· यह प्रस्ताव UNHRC के 58वें सत्र (24 फरवरी – 4 अप्रैल 2025) के अंतिम दिन सर्वसम्मति से पारित किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र के पहले के प्रयासों पर आधारित है जो पर्यावरण संरक्षण को मानवाधिकारों से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
· प्रस्ताव में इस बात को रेखांकित किया गया है कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण सीधे मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ा है। महासागरों की रक्षा को मानव गरिमा और कल्याण की रक्षा के लिए आवश्यक माना गया है। इसका तात्पर्य है कि महासागरों का संरक्षण सीधे मानव जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ा है, विशेष रूप से उन समुदायों के लिए जो समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
· प्रस्ताव में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तटीय समुदायों और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) जैसे कमजोर वर्गों पर समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का असमान प्रभाव पड़ता है। ये समुदाय पर्यावरणीय संकटों का सबसे अधिक सामना करते हैं।
प्रस्ताव का महत्व:
यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब दो बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजन निकट हैं:
• संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन, जो 9 से 13 जून 2025 तक नाइस, फ्रांस में आयोजित होगा।
• प्लास्टिक प्रदूषण पर वैश्विक संधि की अंतिम वार्ता, जो अगस्त 2025 में जिनेवा में होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव इन आगामी बैठकों के लिए एक मजबूत नींव प्रदान करता है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि महासागरों की रक्षा और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए बनने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय समझौतों में मानवाधिकारों को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए।
प्रमुख सिफारिशें और सुझाव:
• सभी सदस्य देशों से आग्रह किया गया है कि वे प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र “उत्पादन, उपभोग और निपटान” के हर चरण पर मिलकर ठोस और समन्वित कार्यवाही करें।
• प्रस्ताव यह भी रेखांकित करता है कि प्लास्टिक प्रदूषण किसी एक सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ विभिन्न जल स्रोतों को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे वैश्विक जल सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
• प्रस्ताव में "सावधानी सिद्धांत" (Precautionary Principle) अपनाने पर ज़ोर दिया गया है, ताकि संभावित गंभीर नुकसान से पहले ही आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
• इसके साथ ही प्रस्ताव में आदिवासी समुदायों और स्थानीय निवासियों की पारंपरिक जानकारी और प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को भी मान्यता दी गई है। साथ ही यह सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है कि पर्यावरणीय नीतियों और निर्णयों के निर्माण में इन समुदायों की सक्रिय और सार्थक भागीदारी हो।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के बारे में:
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) संयुक्त राष्ट्र की एक अंतर-सरकारी संस्था है, जिसका दायित्व विश्व स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा करना और उनके संवर्धन को सुनिश्चित करना है।
इस परिषद की स्थापना 15 मार्च 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी।
निष्कर्ष:
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का यह प्रस्ताव पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकारों के बीच संबंध को सशक्त रूप से रेखांकित करता है। महासागरों के क्षरण और प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले गंभीर प्रभावों को स्वच्छ, स्वस्थ और सतत पर्यावरण के मानवाधिकार से जोड़ते हुए यह प्रस्ताव पर्यावरणीय नीति-निर्माण में न्याय, समावेशिता और मानव गरिमा को प्राथमिकता देने का आह्वान करता है।