संदर्भ:
23 अप्रैल 2025 को भारत ने पहलगाम (जम्मू और कश्मीर) में हुए एक आतंकी हमले के बाद इंडस जल संधि (IWT) को निलंबित कर दिया। यह हमला पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा किया गया था। यह पहला मौका है जब इस संधि को निलंबित किया गया है। भारत का यह कदम क्षेत्रीय राजनीति और जल संबंधों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
इस फैसले के साथ उठाए गए प्रमुख कूटनीतिक कदम है:
• अटारी सीमा चौकी को बंद करना
• पाकिस्तानी नागरिकों को दिए गए वीज़ा रद्द करना
• भारत में कार्यरत पाकिस्तानी अधिकारियों को निष्कासित करना
सिन्धु जल संधि क्या है?
सिन्धु जल संधि 19 सितंबर 1960 को कराची में नौ वर्षों की बातचीत के बाद हस्ताक्षरित हुई थी। इसमें कुल 12 अनुच्छेद और 8 परिशिष्ट (A से H) हैं। यह भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के जल का बंटवारा तय करती है:
• पूर्वी नदियाँ – सतलुज, ब्यास और रावी: इनका जल भारत को पूरी तरह इस्तेमाल करने की अनुमति है।
• पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब: इनका पानी मुख्यतः पाकिस्तान को मिलता है, लेकिन भारत को सीमित रूप से जलविद्युत, नौवहन और सिंचाई के लिए उपयोग की इजाज़त है – वो भी सख्त शर्तों और तकनीकी नियमों के तहत।
संधि निलंबन के रणनीतिक असर:
• जल प्रवाह से जुड़ा डेटा अब पाकिस्तान के साथ साझा नहीं किया जाएगा।
• पश्चिमी नदियों पर भारत अब अपने प्रोजेक्ट्स के डिजाइन और संचालन से जुड़े उन प्रतिबंधों को हटा सकता है जो उसने खुद लगाए थे।
• भारत अब झेलम और चिनाब जैसी नदियों पर जलाशय बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकता है, जो संधि के तहत सीमित रूप से पहले से ही संभव है।
• किशनगंगा जैसे जलविद्युत प्रोजेक्ट्स में भारत जलाशय की सफाई (reservoir flushing) कर सकता है, जिससे उनकी उम्र और कार्यक्षमता बेहतर होगी।
कानूनी पहलू:
IWT में संधि से बाहर निकलने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए भारत का एकतरफा तरीके से इसे छोड़ना कानूनी रूप से संभव नहीं है। हालांकि, अनुच्छेद IX और परिशिष्ट F व G के तहत विवाद समाधान की प्रक्रिया मौजूद है:
1. स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission – PIC): दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत का मंच।
2. न्यूट्रल एक्सपर्ट: तकनीकी विवादों में विश्व बैंक द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ।
3. मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration): अधिक गंभीर और राजनीतिक विवादों के लिए।
हालांकि, इन प्रक्रियाओं की सफलता दोनों देशों की भागीदारी पर निर्भर करती है। 2016 में कानूनी विशेषज्ञ अहमर बिलाल सूफी ने कहा था कि अगर भारत इस संधि को पूरी तरह ठुकरा देता है, तो विवाद समाधान की ये प्रक्रिया निष्क्रिय हो जाएंगी। साथ ही, भारत ने ICJ (अंतरराष्ट्रीय न्यायालय) के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई है, इसलिए पाकिस्तान वहां मामला नहीं ले जा सकता।
IWT से जुड़े हाल के घटनाक्रम:
- जम्मू और कश्मीर में भारत की दो जलविद्युत परियोजनाएं – किशनगंगा (झेलम की सहायक नदी पर) और रैटल (चिनाब पर) – को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद चल रहा है। पाकिस्तान का आरोप है कि इन प्रोजेक्ट्स के डिजाइन IWT के प्रावधानों के खिलाफ हैं, जबकि भारत का कहना है कि ये परियोजनाएं ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ हैं और संधि के दायरे में आती हैं।
- जनवरी 2023 में भारत ने पाकिस्तान को पहला औपचारिक नोटिस भेजा, जिसमें इस्लामाबाद के अड़ियल रवैये को आधार बनाकर अनुच्छेद XII(3) के तहत संधि की समीक्षा का प्रस्ताव रखा गया। सितंबर 2024 में दूसरा नोटिस भेजा गया, जिससे यह संकेत मिला कि भारत इसे पुनः बातचीत के लिए तैयार है।
- जनवरी 2025 में विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट मिशेल लिनो ने खुद को इन डिजाइन विवादों को सुलझाने में सक्षम बताया। भारत ने कहा कि ये विवाद परिशिष्ट F के पहले भाग के तहत आते हैं, जबकि पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई।