होम > Blog

Blog / 26 Feb 2025

अपशिष्ट पृथक्करण की अनिवार्यता

संदर्भ:

हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण के एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में स्रोत स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण की अनिवार्यता पर जोर दिया है। न्यायालय ने 2016 के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) नियमों के पालन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित किया है।

न्यायालय के दिशा निर्देश :

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि SWM नियमों का पालन करने से शहरों में प्रदूषण बढ़ा है। सूखा, गीला और खतरनाक कचरा (dry, wet, hazardous waste) अलग-अलग करने से पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है। 

    न्यायालय ने कहा बिना पृथक्करण किए मिश्रित कचरे के कारण अपशिष्ट से ऊर्जा (WTE) परियोजनाओं में बाधा आती है। ये संयंत्र छांटे गए कचरे पर निर्भर होते हैं ताकि कुशल प्रसंस्करण हो सके।मिश्रित कचरे को जलाने से हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है।

    न्यायालय ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को मार्च 2025 तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। इन रिपोर्टों में निम्नलिखित बिंदु शामिल होने चाहिए: अपशिष्ट पृथक्करण की प्रगति,कार्रवाई योग्य समयसीमा,कार्यान्वयन एजेंसियों की पहचान,सर्वोत्तम प्रथाओं का दस्तावेजीकरण

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने का आदेश दिया।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 :

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 2016 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) नियम लागू किए, जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2000 का स्थान लेते हैं। इन नियमों का उद्देश्य भारत में अपशिष्ट प्रबंधन को बेहतर बनाना और इसे शहरी समूहों, जनगणना कस्बों, औद्योगिक टाउनशिप, भारतीय रेलवे क्षेत्रों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, रक्षा प्रतिष्ठानों आदि तक विस्तारित करना है।

1. स्रोत स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण:

2016 के SWM नियमों का प्रमुख उद्देश्य स्रोत स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण (waste segregation at source) को बढ़ावा देना है। इसके तहत कचरे को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जाना आवश्यक है:

1. गीला कचरा (बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट) – जैविक कचरा, खाद्य अवशेष आदि।

2. सूखा कचरा (पुनर्नवीनीकरण योग्य सामग्री) – प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच आदि।

3. घरेलू खतरनाक कचराडायपर, सैनिटरी नैपकिन, सफाई एजेंट कंटेनर, बैटरियां आदि।

Uttar Pradesh: Soon, waste segregation to be must for households | Lucknow  News - Times of India

अनिवार्यता:

    कचरा उत्पादकों (घरेलू, वाणिज्यिक, औद्योगिक) को कचरे को अलग-अलग कर अधिकृत ख़रीदारों या स्थानीय निकायों को सौंपना होगा।

वाणिज्यिक और संस्थागत क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन:

    वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, होटलों, रेस्तराओं और कार्यक्रम आयोजकों को अपशिष्ट पृथक्करण अनिवार्य रूप से करना होगा और खाद या बायो-मीथेनेशन (bio-methanation) जैसी प्रक्रियाओं से जैविक कचरे का निपटान सुनिश्चित करना होगा।

बायोडिग्रेडेबल कचरे का प्रसंस्करण:

    जैविक कचरे को स्थानीय स्तर पर खाद या बायो-मीथेनेशन के माध्यम से संसाधित करने की सिफारिश की गई है।अवशिष्ट कचरा (residual waste) स्थानीय निकायों या कचरा संग्रहकर्ताओं को सौंपा जाना चाहिए।

विशेष प्रावधान:

1. औद्योगिक और विशेष क्षेत्रों को रीसाइक्लिंग और पुनर्प्राप्ति सुविधाओं (recycling & recovery facilities) के लिए स्थान आवंटित करना होगा।

2. उत्पादकों को अपने उत्पादों के पैकेजिंग अपशिष्ट को पुनः एकत्रित करना होगा।

3. निर्माण आधारित कचरे को अलग से प्रबंधित करना अनिवार्य होगा।

4. पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष उपायलैंडफिल की अनुपलब्धता को देखते हुए स्थानांतरण स्टेशन और क्षेत्रीय लैंडफिल स्थापित करने होंगे।

इसके अतिरिक्त, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने का आदेश दिया गया है।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पर्यावरणीय स्थिरता (environmental sustainability) और प्रदूषण नियंत्रण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का प्रभावी क्रियान्वयन रीसाइक्लिंग , पुनः उपयोग और अपशिष्ट प्रसंस्करण को बढ़ावा देगा। NCR राज्यों द्वारा इन नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है ताकि शहरी प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके और भारत के स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।