संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर नहीं रखा जा सकता। यह निर्णय भारत में विकलांग व्यक्तियों के लिए समानता और समावेशिता की दिशा में एक ऐतिहासिक विकास है।
पृष्ठभूमि:
· यह मामला मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा नियम, 1994 के नियम 6A की वैधता को चुनौती देने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा।
· इस नियम के तहत दृष्टिबाधित तथा कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में नियुक्ति से बाहर रखा गया था।
· न्यायालय ने पिछले वर्ष एक दृष्टिबाधित न्यायिक अभ्यर्थी आलोक सिंह की मां की याचिका के बाद मामले का संज्ञान लिया था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
· सर्वोच्च न्यायालय ने नियम 6A को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया और कहा कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार भी न्यायिक सेवाओं की चयन प्रक्रिया में समान रूप से भाग लेने के पात्र हैं।
· न्यायालय ने यह भी कहा कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) में उल्लिखित उचित सुविधा (Reasonable Accommodation) का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए, ताकि दृष्टिबाधित और अन्य दिव्यांग अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया में समान अवसर मिल सके।
· न्यायालय ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा नियम के नियम 7 को भी आंशिक रूप से खारिज कर दिया, जिसमें विकलांग उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त आवश्यकताएं निर्धारित की गई थीं।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 के बारे में:
· यह अधिनियम, भारत में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक व्यापक कानून है। यह अधिनियम, संयुक्त राष्ट्र विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर सम्मेलन (UNCRPD), 2007 के अनुरूप तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य भारत में दिव्यांगजनों के लिए एक समावेशी, समान और सम्मानजनक समाज का निर्माण करना है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान:
1. दिव्यांगजन की परिभाषा: अधिनियम दिव्यांगजन को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी विकलांगता होती है, जो समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालती है।
2. मान्यता प्राप्त विकलांगताएँ: अधिनियम 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, जिनमें एसिड अटैक पीड़ित, बौद्धिक विकलांगता, मानसिक बीमारी और अन्य शामिल हैं।
3. दिव्यांगजनों के अधिकार: अधिनियम दिव्यांगजनों के अधिकारों को सूचीबद्ध करता है, जिसमें समानता का अधिकार, सम्मान और सम्मान के साथ जीवन, दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा, और घर और परिवार का अधिकार, प्रजनन अधिकार, मतदान में सुलभता और संपत्ति के स्वामित्व या उत्तराधिकार का अधिकार शामिल है।
4. विकलांगता हेतु मानदंड : वे व्यक्ति जिनकी विकलांगता 40% या उससे अधिक है (प्रमाणित प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित), उन्हें बेंचमार्क दिव्यांग (Benchmark Disability) कहा गया है।
5. संरक्षकता: अधिनियम के तहत ऐसे दिव्यांगजनों के लिए सीमित संरक्षक नियुक्त करने की व्यवस्था है, जो खुद पूरी तरह से कानूनी निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते, भले ही उन्हें सलाह या सहायता मिल रही हो।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विकलांग व्यक्तियों के लिए अधिक समावेशी और समतापूर्ण समाज बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जैसा कि कोर्ट ने कहा, अब समय आ गया है कि हम विकलांगता-आधारित भेदभाव के विरुद्ध अधिकार को, जिसे RPwD अधिनियम 2016 में मान्यता दी गई है, मौलिक अधिकार के समान दर्जा दें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उसकी विकलांगता के कारण विचार से वंचित न किया जाए।