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Blog / 20 Mar 2025

विकास और पर्यावरण संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

संदर्भ:

हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने औद्योगीकरण के माध्यम से विकास के अधिकार और स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार के मध्य एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

इस सन्दर्भ में न्यायालय ने दो अलग-अलग आदेशों को रद्द कर दिया - एक राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का और दूसरा मद्रास उच्च न्यायालय का - जिसने पर्यावरणीय मंज़ूरी होने के कारण ऑरोविले, एक टाउनशिप परियोजना में विकास गतिविधियों को रोक दिया था।

निर्णय से मुख्य बिंदु:

1. मौलिक अधिकारों को संतुलित करना:

·        सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। साथ ही, औद्योगीकरण के माध्यम से विकास का अधिकार भी मौलिक अधिकार ढांचे में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अंतर्गत।

यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण अधिकार हैं और इन्हें संतुलित तरीके से अपनाया जाना चाहिए।

2. सतत विकास:

·        न्यायालय ने सतत विकास की आवश्यकता पर जोर दिया जोकि औद्योगीकरण को बढ़ावा देने और पर्यावरण की रक्षा के मध्य एक "सुनहरा संतुलन" बनाता है। इस निर्णय में स्पष्ट किया गया कि आर्थिक विकास को पर्यावरणीय क्षति की कीमत पर नहीं किया जा सकता। बल्कि, सुनियोजित और जिम्मेदार विकास के माध्यम से दोनों का संतुलित और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

3. न्यायिक समीक्षा:

·        निर्णय में न्यायिक संयम (judicial restraint) के महत्व पर जोर दिया गया है तथा न्यायिक अतिक्रमण (judicial overreach) के विरुद्ध चेतावनी दी गई है।

·        न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्वीकृत विकास योजनाओंजैसे ऑरोविले के लिए मास्टर प्लानके कार्यान्वयन में न्यायपालिका को अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि ऐसी असाधारण परिस्थितियाँ हों जो इस हस्तक्षेप को उचित ठहराती हों।

·        यह निर्णय न्यायिक प्रणाली द्वारा स्थापित योजनाओं और प्रक्रियाओं के सम्मान की आवश्यकता को पुष्ट करता है, जब तक कि कोई स्पष्ट कानूनी मुद्दा हो।

 

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला तमिलनाडु में ऑरोविले टाउनशिप परियोजना से संबंधित विकास गतिविधियों पर केंद्रित था।

·        2022 में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने ऑरोविले फाउंडेशन को पर्यावरणीय मंज़ूरी (environmental clearance) की कमी के कारण निर्माण गतिविधियाँ रोकने का निर्देश दिया था। इसी तरह, मद्रास उच्च न्यायालय ने ऑरोविले टाउन डेवलपमेंट काउंसिल के पुनर्गठन से संबंधित फाउंडेशन द्वारा जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया।

इन न्यायिक आदेशों के खिलाफ ऑरोविले फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया।

फैसले के निहितार्थ:

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का भारत में विकास और पर्यावरण संरक्षण की नीतियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। न्यायालय ने विकास और स्वच्छ पर्यावरण, दोनों को मौलिक अधिकार मानते हुए आर्थिक प्रगति और पारिस्थितिक स्थिरता के बीच संतुलन की स्पष्ट मिसाल पेश की है। यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि औद्योगिकीकरण और आर्थिक वृद्धि को सावधानी, जिम्मेदारी और स्थिरता के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए। यह भारत के विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।