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Blog / 21 Mar 2025

आर्थिक असमानता और खाद्य सुरक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी

संदर्भ:

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक असमानता, खाद्य सुरक्षा और कल्याणकारी नीतियों की प्रभावशीलता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के संदर्भ में। न्यायालय ने इस विरोधाभास की ओर संकेत किया कि कुछ राज्य उच्च प्रति व्यक्ति आय का दावा करते हैं, फिर भी उनकी 70% आबादी गरीबी रेखा (BPL) से नीचे जीवनयापन कर रही है।

  • अदालत प्रवासी श्रमिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राशन कार्ड की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि असमानता के बढ़ते स्तर से विरोधाभास पैदा हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ:

आर्थिक प्रगति और गरीबी के बीच विरोधाभास:

·        न्यायालय ने व्यापक गरीबी के साथ-साथ आर्थिक प्रगति के दावों में अंतर्निहित विरोधाभास को रेखांकित किया।

·        न्यायालय ने  संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और धन आवंटन की विस्तृत समीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि समावेशी और संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सके, जिससे समाज के सभी वर्ग लाभान्वित हों।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की प्रभावशीलता:

·        न्यायालय ने इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न वितरण प्रणाली (PDS) वास्तव में उन जरूरतमंदों तक पहुंच रही है या नहीं। इसने PDS की दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने पर जोर दिया, ताकि यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहे और अपने वास्तविक लक्षित लाभार्थियोंसमाज के सबसे गरीब एवं कमजोर वर्गोंतक प्रभावी रूप से पहुंच सके।

राशन कार्ड वितरण पर राजनीतिक प्रभाव:

·        न्यायालय ने इस पर भी चिंता जताई की सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिए राशन कार्ड आवंटन में राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहा है। यह अवलोकन एक गंभीर प्रणालीगत समस्या को उजागर करता है, जहां कल्याणकारी नीतियों का उपयोग पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए किया जा सकता है। इससे नीतियों की निष्पक्षता और पारदर्शिता प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक जरूरतमंदों तक राहत पहुँचने में बाधा उत्पन्न होती है।

प्रवासी श्रमिकों की खाद्य सुरक्षा:

कोविड-19 महामारी के बाद प्रवासी श्रमिकों की स्थिति और भी खराब हो गई, क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और खाद्य संकट पैदा हुआ। कई प्रवासी मजदूर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के लाभों से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनकी स्थिति और ज्यादा असुरक्षित हो जाती है।

·        इस समस्या के समाधान के लिए, न्यायालय ने राज्यों से प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड उपलब्ध कराने पर जोर दिया और कहा कि -श्रम पोर्टल में 28 करोड़ से अधिक श्रमिक पंजीकृत हैं। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भोजन को मौलिक अधिकार मानते हुए, न्यायालय ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इन श्रमिकों को समय पर और पर्याप्त खाद्य आपूर्ति मिले। इससे मानवीय गरिमा बनाए रखने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार की जिम्मेदारी को बल मिला।

निष्कर्ष:

न्यायालय की टिप्पणी भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता को उजागर करती है, जहां आर्थिक विकास अक्सर समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच पाता। न्यायालय ने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार की आवश्यकता बताई। इससे कल्याणकारी नीतियों को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जा सकता है, ताकि वे जरूरतमंदों तक बेहतर ढंग से पहुंच सकें।