होम > Blog

Blog / 05 Feb 2025

वन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

संदर्भ:
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि तो केंद्र सरकार और ही राज्य सरकारें वन भूमि को कम कर सकती हैं, जब तक कि वनीकरण के लिए समकक्ष भूमि प्रदान नहीं की जाती। यह निर्देश वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान जारी किया गया। यह निर्णय वन क्षेत्रों की सुरक्षा और विकासात्मक परियोजनाओं के कारण होने वाली हानि को नए हरे-भरे क्षेत्रों से संतुलित करने के महत्व को रेखांकित करता है।

मुद्दा:
यह विवाद 2023 में किए गए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के संशोधन से उत्पन्न हुआ था, जिसका उद्देश्य यह परिभाषित करना था कि किस भूमि को वन के रूप में माना जाएगा।

o   संशोधनों में धारा 1A जोड़ी गई, जिसके तहत वन की परिभाषा को 1980 के बाद घोषित या दर्ज की गई भूमि तक सीमित कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इससे पारिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण भूमि का बड़ा हिस्सा बाहर हो सकता है, जिससे संरक्षण के प्रयासों में कमी सकती है।

o   वनकी परिभाषा एक प्रमुख विवाद का विषय बन गई। सरकार ने प्रस्तावित किया कि राज्य या स्थानीय प्राधिकृत निकायों द्वारा पहचानी गई भूमि भी वन के रूप में मानी जा सकती है, जिससे असंगति की चिंता उत्पन्न हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हस्तक्षेप किया और यह स्पष्ट किया कि वन को कानूनी रूप से कैसे परिभाषित और संरक्षित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1996 के TN गोदावर्मन थिरुमुलपद मामले के निर्णय को फिर से पुष्ट करते हुए वनकी व्यापक और समावेशी परिभाषा को बनाए रखने का समर्थन किया, ताकि सभी हरे-भरे क्षेत्रों की रक्षा की जा सके, चाहे वह वर्गीकृत हो, स्वामित्व में हो या सरकारी रिकॉर्ड में हो।

कोर्ट ने सरकार को "शब्दकोश में दिए गए अर्थ" के अनुसार 'वन' की परिभाषा को अपनाने का निर्देश दिया, ताकि अधिनियम का मूल उद्देश्य बनाए रखा जा सके। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वन में केवल दर्ज की गई भूमि ही नहीं, बल्कि निम्नलिखित भी शामिल होना चाहिए:

o   वन जैसे क्षेत्र

o   अवर्गीकृत वन

o   समुदाय वन भूमि

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह व्यापक व्याख्या तब तक लागू रहेगी, जब तक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सभी वन भूमि का एक समेकित रिकॉर्ड तैयार नहीं कर लेते, जिसमें वे भूमि भी शामिल हैं जो आधिकारिक रूप से पहचानी नहीं गई हैं।

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के बारे में:
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 को वन उन्मूलन को रोकने और भारत में पारिस्थितिकीय संतुलन की रक्षा करने के लिए लागू किया गया था।
यह वन भूमि के गैर-वन प्रयोजनों के लिए स्थानांतरण को नियंत्रित करता है और वनीकरण को प्राथमिकता देता है।
हाल ही में किए गए संशोधनों ने वनकी परिभाषा को फिर से परिभाषित करने और यह निर्धारित करने का प्रयास किया कि कौन सी भूमि वन संरक्षण कानून के तहत मानी जा सकती है।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारत के वन संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। वनीकरण के लिए समकक्ष भूमि की अनिवार्यता और वन की व्यापक परिभाषा को फिर से पुष्ट करते हुए, कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि सभी हरे-भरे क्षेत्र सुरक्षित रहें, चाहे वे आधिकारिक रूप से दर्ज हों या नहीं। यह निर्णय संरक्षण प्रयासों को मजबूत करता है, जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन की रक्षा करता है, भले ही विकासात्मक दबाव हों।