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Blog / 01 Mar 2025

कस्टम और जीएसटी अधिकारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस

संदर्भ:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा कि कस्टम अधिकारी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिकारी मनमाने ढंग से गिरफ़्तारियाँ नहीं कर सकते। फ़ैसले में कहा गया है कि इन अधिकारियों को किसी भी गिरफ़्तारी से पहले कस्टम अधिनियम की धारा 104 और जीएसटी अधिनियमों की धारा 69 के तहत निर्धारित पूर्व-शर्तों का पालन करना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का पालन करते हैं।

कस्टम और जीएसटी कानूनों के तहत गिरफ़्तारी के लिए अनिवार्य पूर्व-शर्तें:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया विस्तृत फैसले में यह स्पष्ट किया कि कस्टम अधिनियम की धारा 104 और जीएसटी अधिनियम की धारा 69 के तहत, किसी भी गिरफ्तारी से पहले कुछ आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है। इन प्रक्रियात्मक शर्तों में शामिल हैं:

1. गिरफ़्तारी का आधार बताना: गिरफ़्तार व्यक्ति को लिखित रूप में उसकी गिरफ़्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि व्यक्ति को अपने खिलाफ लगे आरोपों के बारे में पता है और उसे उन्हें चुनौती देने का अवसर मिलता है।

2. गिरफ्तार करने वाले अधिकारियों की पहचान: गिरफ्तारी करने वाले अधिकारियों की सही पहचान उपलब्ध कराना, ताकि प्रक्रिया में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।

3.परिजनों को सूचना: गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार या दोस्तों को गिरफ्तारी के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।

4. कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार: गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के कानूनी प्रतिनिधि तक पहुँचने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो पूछताछ के दौरान मौजूद होना चाहिए।

5. विवरणों की रिकॉर्डिंग: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सीमा शुल्क अधिकारियों को अपनी कार्रवाइयों का विस्तृत रिकॉर्ड बनाए रखना चाहिए। इन अभिलेखों में मुखबिर का नाम, कानून का उल्लंघन करने का आरोपी व्यक्ति, प्राप्त सूचना की प्रकृति, गिरफ्तारी का समय, जब्ती का विवरण और अपराध का पता लगाने के दौरान दर्ज किए गए बयान शामिल होने चाहिए।

अग्रिम जमानत देने का न्यायालय का अधिकार:

सर्वोच्च न्यायालय ने सीमा शुल्क और जीएसटी अधिकारियों को गिरफ्तारी करने की वैधानिक शक्ति को बरकरार रखा, लेकिन इसके साथ ही व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा में न्यायालयों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि न्यायालयों के पास अग्रिम जमानत देने की शक्ति है, जो व्यक्तियों को अनावश्यक गिरफ्तारी और हिरासत से बचाती है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करने में यह न्यायिक शक्ति महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानून के दायरे में रहकर कार्रवाई सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आदेश मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और यह स्पष्ट करता है कि उचित प्रक्रिया (Due Process) का पालन करना अनिवार्य है, विशेष रूप से जब अधिकारियों को गिरफ्तारी जैसी शक्तियों का प्रयोग करना हो। इस फैसले ने यह भी दोहराया कि कस्टम और जीएसटी अधिकारियों की गिरफ्तारी की शक्ति वैध है, लेकिन यह शक्ति मनमाने ढंग से नहीं बल्कि कानूनी शर्तों और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के पालन के साथ ही प्रयोग की जा सकती है।