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Blog / 19 Mar 2025

पिछले 10 वर्षों में 16.35 लाख करोड़ के एनपीए राइट-ऑफ

संदर्भ: हाल ही में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जानकारी दी कि भारत के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) ने पिछले एक दशक में 16.35 लाख करोड़ के खराब ऋणों (Bad Loans) को माफ (Write-Off) किया है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (एनपीए) :

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets - NPAs) वे ऋण या अग्रिम होते हैं जिनके लिए मूलधन (Principal) या ब्याज (Interest) का भुगतान 90 दिनों या उससे अधिक समय तक लंबित रहता है। जब कोई ग्राहक, चाहे खुदरा (Retail) हो या कॉर्पोरेट (Corporate), निर्धारित शर्तों के अनुसार ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो वह बैंक के लिए आय (Revenue) उत्पन्न करना बंद कर देता है और एनपीए की श्रेणी में जाता है।

एनपीए बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, क्योंकि वे ब्याज अर्जित करना बंद कर देते हैं, जिससे बैंकिंग प्रणाली पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों के अनुसार, एनपीए को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:

1.   संदिग्ध परिसंपत्तियां (Substandard Assets): वे ऋण जो 12 महीने या उससे कम समय से एनपीए हैं।

2.   संदेहास्पद परिसंपत्तियां (Doubtful Assets): वे ऋण जो 12 महीने से अधिक समय तक संदिग्ध श्रेणी में रहे हैं।

3.   घाटे वाली परिसंपत्तियां (Loss Assets): ऐसे ऋण जिनकी वसूली की संभावना बहुत कम होती है, हालांकि कुछ मामलों में आंशिक रूप से धन वापस सकता है।

खराब ऋणों की माफी (Write-Off) के विषय में:

·        जब कोई बैंक किसी ऋण को राइट-ऑफ़ करता है, तो इसका अर्थ यह होता है कि बैंक उस ऋण को अपनी संपत्तियों (Assets) की सूची से हटा देता है, क्योंकि उसकी वसूली की संभावना बेहद कम होती है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि उधारकर्ता की देनदारी समाप्त हो जाती है। बैंक अब भी कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से ऋण की वसूली जारी रख सकते हैं।

क्षेत्रों का हिस्सा:

·        संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, बट्टे खाते में डाले गए (Write-Off) ऋणों का बड़ा हिस्सा बड़े उद्योगों और सेवा क्षेत्रों में केंद्रित था। इस अवधि के दौरान, कुल खराब ऋणों में से लगभग 9.26 लाख करोड़ अकेले इन क्षेत्रों से संबंधित थे।

·        यह प्रक्रिया पिछले एक दशक से जारी है, जिसमें हर वर्ष बड़ी मात्रा में ऋणों को हटाने (Write-Off) की प्रवृत्ति दिखाई देती है। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र लगातार बढ़ते गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के प्रमुख योगदानकर्ता रहे हैं।

ख़राब ऋणों के राइट-ऑफ का निहितार्थ :

·        खराब ऋणों को राइट-ऑफ (Write-Off) करने का मतलब यह नहीं है कि उधारकर्ता की देनदारी खत्म हो जाती है। यह एक प्रक्रिया है, जिसे तब अपनाया जाता है जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के अनुसार किसी ऋण का पूरा प्रावधान (Full Provisioning) किया जा चुका हो। RBI के दिशा-निर्देश बताते हैं कि जो ऋण काफी समय (आमतौर पर चार साल) से गैर-निष्पादित हैं और जिनका पूरा प्रावधान किया गया है, उन्हें राइट-ऑफ किया जा सकता है।

हालांकि, बैंक कानूनी माध्यमों से वसूली के प्रयास जारी रखते हैं। इसके लिए वे दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) और राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) जैसे तंत्रों के जरिए बकाया राशि की वसूली करते हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इन प्रयासों के बावजूद वसूली की दर बहुत कम रही है।

आलोचना और चिंताएँ:

·        16.35 लाख करोड़ के खराब ऋणों को राइट-ऑफ किए जाने से विपक्ष और विशेषज्ञों में चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों के अनुसार बट्टे खाते में डाले गए ऋणों का आकार खराब शासन, अक्षमता और कॉर्पोरेट डिफॉल्टरों को ज़िम्मेदार ठहराने में जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।

·        इसके अलावा, वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बिना प्रभावी वसूली तंत्र के इतना बड़ा कर्ज माफ किया जाता है, तो इससे बड़ी कंपनियों के बीच वित्तीय अनुशासनहीनता (Financial Indiscipline) को बढ़ावा मिल सकता है।

आगे की राह:

बट्टे खाते में डाले गए ऋण भारत के बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता और दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए, कॉर्पोरेट प्रशासन को मजबूत करना और ऋण वितरण प्रक्रिया में कड़ी निगरानी एवं सख्त मूल्यांकन प्रणाली अपनाना आवश्यक है।