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Blog / 23 Apr 2025

चावल में बढ़ती विषाक्तता

संदर्भ:

हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ शोध पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO) की बढ़ती मात्रा और तापमान में वृद्धि, चावल के दानों में आर्सेनिक (arsenic) की मात्रा को बढ़ा रहा है। इससे दीर्घकालीन स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो रहे हैं, जैसे कि कैंसर, हृदय रोग और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियाँ। यह खतरा खासतौर पर उन क्षेत्रों में अधिक है जहाँ चावल मुख्य भोजन है।

चावल में आर्सेनिक की समस्या:

आर्सेनिक दो रूपों में पाया जाता है: जैविक (organic) और अजैविक (inorganic)। इसमें से अजैविक आर्सेनिक ज्यादा जहरीला होता है और अक्सर औद्योगिक प्रदूषण से जुड़ा होता है।
चावल खासतौर पर इसलिए अधिक प्रभावित होता है क्योंकि इसे धान के खेतों में पानी में डुबोकर उगाया जाता है। ऐसे गीले और कम ऑक्सीजन वाले माहौल में मिट्टी और पानी से आर्सेनिक चावल में आसानी से चला जाता है। यह खासतौर पर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए चिंता की बात है।

अध्ययन से नई खोजें:

यह अध्ययन कोलंबिया यूनिवर्सिटी, जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और चीन की संस्थाओं के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। यह पहला अध्ययन है जो बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड और तापमान के संयुक्त असर को चावल में आर्सेनिक के स्तर पर परखता है।
छह साल तक वैज्ञानिकों ने चावल की विभिन्न किस्मों को भविष्य के जलवायु परिस्थितियों जैसे माहौल में उगाया।

मुख्य निष्कर्ष:

·         जब कार्बन डाइऑक्साइड और तापमान दोनों बढ़े, तब चावल में आर्सेनिक का स्तर अकेले किसी एक कारक की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ा।

·         जलवायु बदलाव की वजह से मिट्टी की रासायनिक संरचना में बदलाव हुआ, जिससे आर्सेनिक की हानिकारक किस्में अधिक सक्रिय हो गईं और चावल के पौधों में उनका अवशोषण बढ़ गया।

स्वास्थ्य जोखिम और क्षेत्रीय असर:

शोधकर्ताओं ने प्रति व्यक्ति चावल की खपत के आंकड़ों के आधार पर सात देशों भारत, बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया, म्यांमार और फिलीपींस में भविष्य में होने वाले रोगों का अनुमान लगाया है।

संभावित स्वास्थ्य समस्याएं:

·         मूत्राशय, फेफड़े और त्वचा का कैंसर।

·         मधुमेह, गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं, मस्तिष्क विकास में बाधा, कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र और हृदय रोग जैसी समस्याओं का खतरा।

अध्ययन का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यदि चावल की खपत इसी तरह चलती रही तो एशिया में आर्सेनिक से जुड़ी बीमारियाँ तेजी से बढ़ सकती हैं। इसके बावजूद, अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानक इस विषय में अभी भी पर्याप्त नहीं हैं।

सुझाव और समाधान:

1.        कृषि में नवाचार: ऐसी चावल की किस्में विकसित करना जो आर्सेनिक को कम अवशोषित करें।

2.      खेती की तकनीकों में सुधार:ऑल्टरनेट वेटिंग एंड ड्राइंग” (AWD) जैसी सिंचाई विधियाँ अपनाना जिससे मिट्टी में आर्सेनिक की सक्रियता घटे।

3.      जन जागरूकता और भोजन में विविधता: चावल पकाने के सुरक्षित तरीकों (जैसे अधिक पानी से धोना) को बढ़ावा देना और बाजरा, क्विनोआ जैसे अनाजों को भोजन में शामिल करना।

4.     नीतियाँ और नियम: वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर चावल और उससे बने उत्पादों में आर्सेनिक की अधिकतम सीमा तय करना और सख्ती से लागू करना।

निष्कर्ष:

यह अध्ययन प्रदर्शित करता है कि जलवायु परिवर्तन हमारे भोजन को कैसे अधिक विषाक्त बना सकते है। बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड और तापमान की वजह से चावल जैसे जरूरी खाद्य पदार्थ भी हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। इस खतरे को कम करने के लिए खेती, नीति और व्यक्ति के व्यवहार में तुरंत बदलाव लाने की जरूरत है ताकि स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखा जा सके।