संदर्भ: हाल के वर्षों में आर्कटिक क्षेत्र में तापमान में असामान्य वृद्धि देखी गई है और फरवरी 2025 में एक विशेष रूप से चिंताजनक घटना सामने आई। 2 फरवरी 2025 को, उत्तर ध्रुव पर तापमान औसत से 20°C से अधिक बढ़ गया, जो सामान्य ठंडे मौसम से एक गंभीर विचलन था। यह असामान्य गर्मी की घटना जलवायु संकट की गंभीरता को प्रदर्शित करती है, 1979 के बाद से आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक औसत तापमान से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है।
आर्कटिक इतना जल्दी क्यों गर्म हो रहा है?
- आर्कटिक क्षेत्र में तेजी से गर्मी का मुख्य कारण अल्बेडो प्रभाव (Albedo effect) है। समुद्री बर्फ, जिसकी सतह सफेद होती है, सूरज की रोशनी का एक बड़ा हिस्सा वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती है, जिससे तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। हालांकि, जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, गहरा पानी या भूमि दिखाई देने लगती है, जो ज्यादा गर्मी सोखती है और गर्मी बढ़ने की प्रक्रिया को तेज करती है। इस चक्र को "सकारात्मक प्रतिक्रिया चक्र" (positive feedback loop) कहा जाता है, जो क्षेत्र में तापमान वृद्धि को बढ़ा देता है।
- इसके अतिरिक्त, आर्कटिक में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (tropical regions) के मुकाबले कम कंवेक्शन (convection) होता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, सूरज की रोशनी सीधे सतह को गर्म करती है, जिसके कारण गर्म हवा ऊपर उठती है और गर्मी का पुनर्वितरण (redistribution of heat) होता है। इसके विपरीत, आर्कटिक में कंवेक्शन की कमी (lack of convection) के कारण गर्मी सतह के पास ही संकेंद्रित रहती है, जिससे तापमान में और वृद्धि होती है।
आर्कटिक गर्म होने के वैश्विक परिणाम:
आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे ग्रह का "फ्रिज" भी कहा जाता है। जैसे-जैसे यह क्षेत्र गर्म हो रहा है, यह अपनी शीतलन क्षमता खोता जा रहा है, जिसके वैश्विक परिणाम दूरगामी हो सकते हैं:
1. समुद्र स्तर में वृद्धि: आर्कटिक बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है, जो दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों के लिए खतरा बन रही है। इससे बाढ़ का खतरा बढ़ता है और निचले क्षेत्रों की अवसंरचना को नुकसान पहुँचता है।
2. मौसम पैटर्न में व्यवधान: समुद्री बर्फ की हानि और आर्कटिक के बाद में गर्म होने से वायुमंडलीय परिसंचरण में व्यवधान आ सकता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में अधिक चरम मौसम घटनाएँ हो सकती हैं। इनमें भीषण सर्दियाँ, तेज गर्मी की लहरें और अप्रत्याशित तूफान शामिल हो सकते हैं।
3. सामुद्रिक जीवन पर प्रभाव: आर्कटिक बर्फ के पिघलने से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है, जो बर्फ से ढकी जलधाराओं की स्थिरता पर निर्भर करता है। इसका जैव विविधता और वैश्विक मत्स्य पालन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष :
फरवरी 2025 में उत्तर ध्रुव पर जो तापमान में असामान्यता देखी गई, वह जलवायु परिवर्तन की तेज़ गति को दिखाती है, विशेषकर आर्कटिक क्षेत्र में। अल्बेडो प्रभाव, कंवेक्शन की कमी और महासागरीय बदलावों का मिलाजुला असर गर्मी को बहुत तेजी से बढ़ा रहा है। अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो आर्कटिक क्षेत्र की शीतलन क्षमता घट सकती है, जिससे वैश्विक मौसम, समुद्र स्तर और पारिस्थितिकी तंत्र पर बड़े प्रभाव पड़ सकते हैं।