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Blog / 24 Apr 2025

RBI ने लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) के नियमों में दी राहत

संदर्भ:

बैंकों पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना तरलता जोखिम प्रबंधन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) के तहत प्रस्तावित नियमों में ढील दी है। केंद्रीय बैंक ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनके अनुसार डिजिटल खुदरा जमा पर 2.5% का अतिरिक्त रन-ऑफ फैक्टर लागू होगा, जबकि पहले यह दर 5% प्रस्तावित थी। ये नए नियम 1 अप्रैल 2026 से लागू होंगे और सभी वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होंगे। हालांकि, पेमेंट बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और लोकल एरिया बैंक इन नियमों के दायरे में नहीं आएंगे।

रन-ऑफ फैक्टर क्या होता है?

रन-ऑफ फैक्टर वह प्रतिशत होता है, जो यह दर्शाता है कि किसी वित्तीय संकट की स्थिति में जमा राशि का कितना हिस्सा निकाला जा सकता है। नए नियम इस बात को स्वीकार करते हैं कि इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग और UPI जैसी डिजिटल सुविधाओं के माध्यम से ग्राहक अपनी जमा राशि को बहुत तेजी से ट्रांसफर या निकाल सकते हैं, जिससे बैंकों पर तरलता (Liquidity) का दबाव बढ़ जाता है।

लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) क्या है?

लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) एक वैश्विक नियामक मानक है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक कम से कम 30 दिनों के वित्तीय संकट की स्थिति में अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियाँ (High-Quality Liquid Assets - HQLA) अपने पास रखें।

यह मानक 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति द्वारा विकसित किया गया था। भारत में यह नियम 2019 से पूर्ण रूप से लागू है जो मुख्य रूप से बड़े वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होता है।

बैंकों के लिए राहत:

RBI के नरम रुख से बैंकों को बड़ी राहत मिली है। पहले प्रस्तावित 5% अतिरिक्त रन-ऑफ फैक्टर से बैंकों पर तरलता का दबाव बढ़ सकता था, लेकिन अब संशोधित नियमों ने स्थिति को संतुलित कर दिया है। नए दिशा-निर्देशों के अनुसार:

  • स्थिर IMB (Internet/Mobile Banking)-सक्षम जमा पर अब 7.5% रन-ऑफ फैक्टर लागू होगा, जो पहले 5% था।
  • कम स्थिर IMB-सक्षम जमा पर अब 12.5% रन-ऑफ फैक्टर लागू होगा, जो पहले 10% था।

ये बदलाव RBI की उस सोच को दर्शाते हैं, जिसमें वह वित्तीय स्थिरता और प्राकृतिक बैंकिंग व्यवहार के बीच संतुलन बनाए रखना चाहता है।

RBI दिशा-निर्देशों के अन्य प्रमुख बिंदु:

  • गैर-वित्तीय संस्थाएं जैसे ट्रस्ट, पार्टनरशिप फर्म, LLP और अन्य संस्थागत निकायों से प्राप्त फंड पर अब 40% रन-ऑफ फैक्टर लागू होगा, जो पहले 100% था। यह बदलाव इस आधार पर किया गया है कि इन स्रोतों से निकासी का जोखिम मध्यम माना गया है।
  • छोटे व्यवसायिक ग्राहक (Small Business Customers - SBCs) से प्राप्त बिना गारंटी वाला फंड अब खुदरा जमा की श्रेणी में माना जाएगा, और उन पर भी 2.5% का अतिरिक्त रन-ऑफ फैक्टर लागू होगा।
  • लेवल 1 उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियाँ (HQLA), जो मुख्यतः सरकारी प्रतिभूतियाँ होती हैं, अब उनके बाजार मूल्य पर मूल्यांकित की जाएंगी, जिसमें नियत "हेरकट (Haircuts)" घटाया जाएगा। यह बदलाव उन्हें LAF (Liquidity Adjustment Facility) और MSF (Marginal Standing Facility) के मूल्यांकन ढांचे के अनुरूप बनाएगा।

प्रभाव:

भारत में अनुमानित रूप से ₹45–50 लाख करोड़ की उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियाँ (HQLA) उपलब्ध हैं। नए LCR नियमों के चलते, बैंकों को लगभग ₹2.7–3 लाख करोड़ की अतिरिक्त ऋण योग्य राशि उपलब्ध हो सकती है। इससे 1.4–1.5% तक की अतिरिक्त क्रेडिट ग्रोथ संभव है, जो ऋण वितरण में वृद्धि और आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने में सहायक हो सकती है।

निष्कर्ष:

आरबीआई का यह संतुलित संशोधन इस बात का संकेत है कि वह तेजी से डिजिटल हो रहे बैंकिंग परिदृश्य की चुनौतियों को समझते हुए तरलता प्रबंधन को अधिक व्यावहारिक और समकालीन बनाना चाहता है। डिजिटल जमा से जुड़े जोखिमों को नियामक ढांचे में शामिल करते हुए, और बैंकों की व्यावसायिक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बैंक एक मजबूत, लचीली और विकासोन्मुख वित्तीय प्रणाली की ओर कदम बढ़ा रहा है।