संदर्भ:
हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री, प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में कहा कि राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति के तहत 63 पहचाने गए दुर्लभ रोगों से पीड़ित रोगियों को उपचार के लिए 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। यह राशि ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ (CoE) को दी जाएगी, जो इन रोगों के लिए उन्नत उपचार में विशेषज्ञता रखते हैं।
यह नीति क्यों महत्वपूर्ण है?
दुर्लभ रोग (जो 100 में से 6 से कम व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं) भारत में लगभग 7-8 करोड़ लोगों को प्रभावित करते हैं, जिनमें जानलेवा स्थितियाँ जैसे GSD, सिस्टिक फाइब्रोसिस और हेमोफिलिया शामिल हैं। उपचार अक्सर लंबा और महंगा होता है, जिससे गरीब परिवारों पर वित्तीय बोझ पड़ता है। यह वित्तीय सहायता ऐसे परिवारों को राहत प्रदान करेगी।
दुर्लभ रोगों के बारे में:
दुर्लभ रोग वे चिकित्सा स्थितियाँ होती हैं जो एक बहुत छोटे जनसंख्या समूह को प्रभावित करती हैं। ये रोग अक्सर दीर्घकालिक और जानलेवा होते हैं। इन रोगों का निदान और उपचार सीमित शोध, विशेषज्ञता और संसाधनों के कारण चुनौतीपूर्ण होता है।
दुर्लभ रोगों से उत्पन्न चुनौतियाँ:
· निदान में कठिनाई: कम प्रचलन के कारण, डॉक्टर दुर्लभ रोगों को पहचानने में अनुभव की कमी के कारण गलत निदान या देर से निदान कर सकते हैं।
· उच्च उपचार लागत: अक्सर दुर्लभ रोगों के उपचार महंगे होते हैं और कई स्वास्थ्य प्रणालियों में आसानी से उपलब्ध नहीं होते।
· शोध की कमी: दुर्लभ रोगों पर सीमित शोध होने के कारण उपचार विकल्प कम होते हैं और रोग की प्रगति के बारे में समझ कम होती है।
· मानसिक प्रभाव: दुर्लभ रोगों का बोझ रोगी और उनके परिवारों के जीवन की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
दुर्लभ रोगों के उदाहरण:
सिस्टिक फाइब्रोसिस, हेमोफिलिया, मस्कुलर डिस्ट्रोफी, सीवियर कंबाइंड इम्यूनोडेफिशियेंसी (SCID), और गॉशे रोग।
दुर्लभ रोगों के खिलाफ सरकारी प्रयास:
सरकार ने दुर्लभ रोगों से निपटने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोगों के लिए चिकित्सीय गठबंधन (National Consortium for Therapeutics for Rare Diseases) स्थापित किया है, जिसका उद्देश्य उपचार को सुलभ बनाना और शोध को बढ़ावा देना है। इस गठबंधन का उद्देश्य देश में दुर्लभ रोगों के उपचार से संबंधित शोध गतिविधियों को सुव्यवस्थित करना है। इसके अतिरिक्त, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने 'दुर्लभ रोगों के लिए बाहरी कार्यक्रम कार्यबल' का गठन किया है, जो इन रोगों के निदान, उपचार और औषधि विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
देश में स्वदेशी चिकित्सा का विकास:
ICMR ने 'दुर्लभ रोगों के लिए स्वदेशी उपचार' पहल के तहत 19 शोध परियोजनाओं की शुरुआत की है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य स्थानीय चिकित्सा विधियों को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करके सस्ती दवाओं का विकास करना है। इस पहल को देश को चिकित्सा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।