संदर्भ:
हाल ही में पंचायती राज संस्थाओं(PRI)में छद्म नेतृत्व (Proxy Leadership) की समस्या को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनायी गयी सलाहकार समिति ने सिफारिश की है कि पंचायतों में निर्वाचित महिलाओं की जगह उनके पुरुष रिश्तेदारों द्वारा काम संभालने की प्रवृत्ति को समाप्त करने के लिए अनुकरणीय दंड (Exemplary Punishment) दिया जाए।
पृष्ठभूमि:
- 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण अनिवार्य किया। बाद में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इसे बढ़ाकर लगभग 50% कर दिया।
- इस सुधार का उद्देश्य जमीनी स्तर के लोकतंत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना और उन्हें स्थानीय शासन में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाना था।
- हालाँकि, महिलाओं की भागीदारी में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद, भारत के कई हिस्सों में छद्म नेतृत्व एक चुनौती बना हुआ है, जहाँ परिवार के पुरुष सदस्य महिलाओं की ओर से नेता के रूप में कार्य करते हैं, जिससे वे नाममात्र की मुखिया रह जाती हैं।
- वर्तमान में, देश की पंचायतों में 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 46.6% महिलाएँ हैं। हालांकि, कई क्षेत्रों में निर्वाचित महिलाओं की भूमिका उनके पुरुष रिश्तेदार निभा रहे हैं, जिससे महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का वास्तविक उद्देश्य कमजोर हो रहा है।
- इस समस्या के समाधान हेतु , भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2023 में पंचायती राज मंत्रालय को महिला प्रधानों के अपने पुरुष परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित किए जाने के मुद्दे को संबोधित करने के लिए एक समिति नियुक्त करने का निर्देश दिया था।
मुख्य सिफारिशें:
सलाहकार समिति ने पंचायतों में प्रॉक्सी नेतृत्व की समस्या से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति का प्रस्ताव दिया है:
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- नीतिगत और संरचनात्मक सुधार: पंचायतों में लिंग-विशिष्ट कोटा लागू करने और महिलाओं की निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है। इसमें केरल मॉडल को एक सफल उदाहरण माना गया है।
- तकनीकी समाधान: पंचायतों की निगरानी मजबूत करने, छद्म नेतृत्व की पहचान करने और दोषियों को जवाबदेह ठहराने के लिए तकनीक के उपयोग पर जोर दिया गया है।
- सहकर्मी समर्थन और नेटवर्किंग: महिला प्रतिनिधियों को सहकारी समूहों (peer networks) से जोड़ा जाए, ताकि वे एक-दूसरे को समर्थन दें और पुरुष हस्तक्षेप का सामना करने के लिए सक्षम बनें।
- जवाबदेही तंत्र: शिकायतों के निवारण के लिए हेल्पलाइन और महिला निगरानी समितियों की स्थापना का सुझाव दिया गया है। साथ ही, छद्म नेतृत्व (Proxy Leadership) की सूचना देने वालों को इनाम (whistleblower reward) देने की सिफारिश की गई है।
- अनुकरणीय दंड: जिन मामलों में प्रॉक्सी नेतृत्व सिद्ध हो, वहाँ कड़ा दंड दिया जाए, ताकि यह दूसरों के लिए निवारक उदाहरण बने।
- शैक्षिक योग्यता (सुझाव स्वरूप): पंचायत प्रमुख पद के लिए दोनों लिंगों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने का सुझाव भी दिया गया था। हालांकि, इसे अंतिम सिफारिशों में शामिल नहीं किया गया।
- नीतिगत और संरचनात्मक सुधार: पंचायतों में लिंग-विशिष्ट कोटा लागू करने और महिलाओं की निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है। इसमें केरल मॉडल को एक सफल उदाहरण माना गया है।
निष्कर्ष:
सलाहकार समिति की सिफारिशें पंचायती राज संस्थाओं में प्रॉक्सी नेतृत्व की समस्या को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। स्थानीय शासन में महिलाओं को सशक्त बनाना और लैंगिक समानता सुनिश्चित करना तभी संभव होगा, जब इन सुधारों को प्रभावी रूप से लागू किया जाएगा। अब यह नीति निर्माताओं और स्थानीय प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि आरक्षण के मूल उद्देश्य का पालन हो और महिलाओं को सम्मान, स्वायत्तता और नेतृत्व के लिए आवश्यक समर्थन व संसाधन मिलें।