सन्दर्भ:
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) भारत की पहली कोयला क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनी बनने जा रही है जो कोयला खनन में पेस्ट फिल तकनीक को अपनाएगी। यह कदम सतत और पर्यावरण के अनुकूल खनन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इस आधुनिक भूमिगत खनन तकनीक को लागू करने के लिए साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड ने टीएमसी मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड के साथ ₹7040 करोड़ का समझौता किया है।
समझौते के बारे में:
- इस समझौते के अंतर्गत, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोरबा क्षेत्र में स्थित सिंघाली भूमिगत कोयला खदान में पेस्ट फिल तकनीक का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर कोयले का उत्पादन किया जाएगा। इस परियोजना से 25 वर्षों की अवधि में लगभग 84.5 लाख टन (8.4 मिलियन टन) कोयले का उत्पादन करने की संभावना है।
- सिंघाली खदान (जो 1993 से संचालित है) को पहले बोर्ड एंड पिलर पद्धति से विकसित किया गया था। हालांकि, पारंपरिक खनन विधियों के सामने कई चुनौतियाँ थीं क्योंकि खदान की सतह पर गाँव, हाई टेंशन विद्युत् लाइनें और पीडब्ल्यूडी द्वारा निर्मित सड़कें जैसी घनी संरचनाएँ मौजूद थीं। ऐसे में पेस्ट फिल तकनीक एक आदर्श समाधान के रूप में सामने आई है, क्योंकि यह सतह पर मौजूद जीवन और संरचनाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कोयला निकालने की सुविधा प्रदान करती है।
पेस्ट फिल तकनीक के बारे में:
पेस्ट फिल तकनीक एक आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल भूमिगत खनन विधि है, जिसमें कोयला निकालने के बाद खदान में बची खाली जगहों को एक विशेष पेस्ट से भरा जाता है।
यह पेस्ट मुख्य रूप से फ्लाई ऐश (थर्मल पावर प्लांट की राख), खदान से निकला ओवरबर्डन (पत्थर और मिट्टी), सीमेंट, पानी और विशेष बाइंडिंग एजेंट्स से तैयार किया जाता है। इन घटकों में से कई अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थ होते हैं।
यह तकनीक खदान की संरचनात्मक मजबूती बनाए रखने में मदद करती है, जो भूमि के धंसने की आशंका को दूर करती है और औद्योगिक कचरे के पुनः उपयोग के ज़रिए पर्यावरणीय प्रभाव को भी कम करती है।
पेस्ट फिल तकनीक की विशेषताएं:
• पर्यावरण के अनुकूल: इस तकनीक से सतह की ज़मीन अधिग्रहण की आवश्यकता नहीं होती, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम पड़ता है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
• संरचनात्मक मजबूती: कोयला निकालने के बाद जो खाली स्थान बचता है, उसे पेस्ट से भरने से भूमि धंसने की संभावना समाप्त हो जाती है और खदान की संरचना सुरक्षित रहती है।
• औद्योगिक अपशिष्ट का पुनः उपयोग: पेस्ट बनाने में उपयोग होने वाले प्रमुख तत्व जैसे फ्लाई ऐश और ओवरबर्डन जो औद्योगिक कचरे से प्राप्त होते हैं, यह अपशिष्ट के पुनः उपयोग को बढ़ावा देते हैं।
निष्कर्ष:
सिंघाली खदान में पेस्ट फिल तकनीक को अपनाना केवल एक तकनीकी उन्नति नहीं है, बल्कि यह भारत में हरित खनन की दिशा में एक अहम कदम है। यह परियोजना अन्य भूमिगत खदानों को पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी, जहां पारंपरिक खनन विधियाँ प्रभावी नहीं हो सकतीं। इससे यह प्रमाणित होता है कि सतत तकनीकों के माध्यम से आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को एक साथ सुनिश्चित किया जा सकता है।