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Blog / 25 Mar 2025

आइसलैंड का ओकजोकुल ग्लेशियर पूरी तरह विलुप्त

सन्दर्भ:

हाल ही में प्राप्त सैटेलाइट चित्रों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि आइसलैंड का ओकजोकुल ग्लेशियर पूरी तरह विलुप्त हो चुका है। वर्ष 2014 में इसे आधिकारिक रूप से मृत ग्लेशियरघोषित किया गया था, जिसका प्रमुख कारण मानव-जनित जलवायु परिवर्तन माना गया।

ओकजोकुल ग्लेशियर के बारे में:

आइसलैंड में ओक ज्वालामुखी पर स्थित ओकजोकुल एक गुंबदाकार ग्लेशियर था, जो 1901 में लगभग 15 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था। हालांकि, 1986 तक इसका आकार घटकर 1 वर्ग मील से भी कम रह गया। अंततः, वर्ष 2014 में, इसे मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के कारण आधिकारिक रूप से 'मृत ग्लेशियर' घोषित किया गया, जिससे यह इस श्रेणी में आने वाला पहला ग्लेशियर बन गया। 2019 तक यह संकुचित होकर मात्र 0.4 वर्ग मील तक सीमित हो गया था।

ग्लेशियर:

ग्लेशियर बर्फ के बड़े और स्थायी भंडार होते हैं, जो अपने भारी वजन और गुरुत्वाकर्षण के कारण धीरे-धीरे भूमि पर बहते हैं। ये उन्हीं स्थानों पर बनते हैं जहाँ पूरे वर्ष औसत तापमान शून्य के आसपास रहता है, जिससे बर्फ के पिघलने की दर अत्यंत धीमी होती है। सर्दियों में अत्यधिक बर्फबारी के कारण समय के साथ बर्फ का संचय बढ़ता रहता है, जिससे ग्लेशियर का निर्माण और विस्तार होता है।

ग्लेशियरों का महत्व:

1. जल भंडार: ग्लेशियर पृथ्वी के लगभग 75% मीठे पानी का भंडार रखते हैं, जो कई क्षेत्रों के लिए जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हैं।

2. खाद्य प्रणाली: पिघले हुए ग्लेशियरों का पानी सिंचाई में मदद करता है और मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, जिससे कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।

3. जैव विविधता: ग्लेशियरों का पानी झीलों, नदियों और समुद्रों तक पहुँचता है, जिससे फाइटोप्लांकटन के विकास में मदद मिलती है, जो पूरे जलीय खाद्य तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।

ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव:

1. बाधित जल चक्र: जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलते हैं, जल स्रोत अनियमित हो जाते हैं, जिससे खेती, पारिस्थितिकी तंत्र और पीने के पानी की उपलब्धता प्रभावित होती है।

2. प्राकृतिक आपदाएँ: ग्लेशियरों के पिघलने से झीलें टूट सकती हैं, जिससे बाढ़ (GLOF - Glacial Lake Outburst Flood) और हिमस्खलन जैसी आपदाएँ बढ़ सकती हैं।

3. समुद्र के स्तर में वृद्धि: पिघले हुए ग्लेशियर समुद्र में मिलते हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ता है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़, भूमि कटाव और जैव विविधता को नुकसान होता है।

4. ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा: बर्फ सूरज की रोशनी को परावर्तित करती है (अल्बेडो प्रभाव), लेकिन जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो यह प्रभाव कम हो जाता है। इससे पृथ्वी ज्यादा गर्म होती है और ग्लोबल वॉर्मिंग की गति तेज हो जाती है।

ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए पहल:

1.   वैश्विक पहल:

·        संयुक्त राष्ट्र ने जागरूकता बढ़ाने के लिए 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है।

·        यूनेस्को का अंतर-सरकारी जल विज्ञान कार्यक्रम और अन्य वैश्विक संगठन भी ग्लेशियर के नुकसान को कम करने के उपायों पर काम कर रहे हैं।

2.   भारत के प्रयास:

·        भारत हिमालयी क्रायोस्फीयर नेटवर्क कार्यक्रम, क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र और हिमांश अनुसंधान स्टेशन जैसे अनुसंधान कार्यक्रमों के माध्यम से हिमालयी क्रायोस्फीयर पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO) की सांद्रता बढ़ रही हैजो मार्च 2025 तक 428 भाग प्रति मिलियन (ppm) तक पहुँचने का अनुमान हैतत्काल कार्रवाई की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो जाती है। ओकजोकुल ग्लेशियर का लुप्त होना जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का प्रत्यक्ष प्रमाण है, जो इसके प्रभावों को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता है।