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Blog / 18 Mar 2025

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक 2024

संदर्भ:

हाल ही में लोकसभा ने तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024 पारित किया, जो भारत के तेल और गैस क्षेत्र में व्यापक सुधार का संकेत देता है। यह विधेयक तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1948 में संशोधन करता है, जिससे इस क्षेत्र को अधिक निवेश-अनुकूल और प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके।

विधेयक के मुख्य उद्देश्य:

इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य भारत में तेल और गैस की खोज एवं उत्पादन को आधुनिक बनाना है। इसके प्रमुख लक्ष्य हैं:

      कानूनी ढांचे का आधुनिकीकरण ताकि यह  क्षेत्र अधिक व्यावसायिक और सुगम हो।

      निवेश बढ़ाने के लिए पारदर्शी और स्थिर नीतिगत ढांचा तैयार करना।

      2047 तक "विकसित भारत" के सरकार के दृष्टिकोण के साथ संरेखित करते हुए ऊर्जा की उपलब्धता, सामर्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करना।

विधेयक द्वारा पेश किए गए मुख्य सुधार:

1.     लाइसेंसिंग प्रणाली का सरलीकरण:

विधेयक विभिन्न हाइड्रोकार्बन के लिए अलग-अलग लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करता है। इसके बजाय, यह "पेट्रोलियम लीज़" के रूप में एकल लाइसेंस प्रणाली लागू करता है, जिससे अन्वेषण और उत्पादन प्रक्रिया सरल होगी।

2.     खनन और पेट्रोलियम संचालन का पृथक्करण: पारंपरिक व्यवस्था में खनन और पेट्रोलियम अन्वेषण को एक ही नियामकीय ढांचे के तहत रखा जाता था। नया विधेयक इन दोनों को अलग-अलग मान्यता देता है, जिससे तेल और गैस क्षेत्र का अधिक प्रभावी नियमन संभव होगा।

3.     निवेश को प्रोत्साहित करना और व्यापार करने में आसानी: विधेयक स्थिर और पूर्वानुमानित कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। तीव्र विवाद समाधान प्रणाली लागू की गई है, जिससे विनियामक जटिलताओं को कम किया जा सके और सरकार तथा ठेकेदारों के बीच सहयोग बढ़े।

4.     प्रौद्योगिकी और ऊर्जा नवाचार: यह कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और सीक्वेस्ट्रेशन (CCUS) तथा ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं को बढ़ावा देता है। ये प्रावधान ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) और दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करेंगे।

5.     छोटे तेल ऑपरेटरों को समर्थन: कम उपयोग वाले क्षेत्रों में संसाधन-साझाकरण की अनुमति दी गई है, जिससे परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता बढ़ेगी। यह 2015 की खोजी गई छोटी फील्ड्स नीति के अनुरूप है, जिसने छोटे ऑपरेटरों को अप्रयुक्त क्षेत्रों में कार्य करने का अधिकार दिया था।

6.     कठोर दंड और प्रवर्तन: उल्लंघन करने वालों के लिए ₹25 लाख तक का जुर्माना और क्रियाशील उल्लंघन पर ₹10 लाख प्रति दिन तक का दंड लगाया जाएगा। एक नया न्यायनिर्णयन प्राधिकरण और अपीलीय तंत्र स्थापित किया जाएगा, जिससे कानूनी प्रक्रियाएँ अधिक प्रभावी बनेंगी।

7.     राज्यों के अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं: यह विधेयक सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को बनाए रखने हेतु राज्यों को पहले की तरह पेट्रोलियम पट्टे जारी करने और रॉयल्टी एकत्र करने का अधिकार रहेगा।

तुलना: ऑयलफील्ड्स अधिनियम 1948 और ऑयलफील्ड्स संशोधन विधेयक

पहलू

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1948

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक

उद्देश्य

यह प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम की खोज और निष्कर्षण को विनियमित करता है।

आधुनिक ऊर्जा आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिए रुपरेखा प्रदान करता है।

 

पट्टे की शर्तें

खनन पट्टे का प्रावधान करती हैं।

खनन पट्टे को पेट्रोलियम पट्टे में बदलाव करता हैं।

खनिज तेल

 यह पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस तक सीमित है।

 यह विधेयक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन, कोल बेड मीथेन और शेल गैस/तेल को शामिल करता है।

अपराधीकरण

 

नियम उल्लंघन के लिए ₹1,000 या दोनों के जुर्माने का प्रावधान।

उल्लंघन के लिए ₹25 लाख का जुर्माना,क्रियाशील उल्लंघन के लिए ₹10 लाख प्रतिदिन का जुर्माना।

जुर्माना

उल्लंघन के लिए सीमित जुर्माना।

उल्लंघन के लिए दैनिक जुर्माने सहित कठोर दंड।

 

निष्कर्ष:

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक विनियमनों को सुव्यवस्थित , निवेश को प्रोत्साहित और तकनीकी नवाचार का समर्थन करके भारत के तेल और गैस क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में अग्रसर है। विधेयक में व्यापार के अनुकूल माहौल और इसके विनियामक समायोजन पर जोर दिया गया है, जोकि आशाजनक है, लेकिन आने वाले दशकों में भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए इसे और अधिक अनुकूल बनाने की आवश्यकता होगी।