संदर्भ:
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) और बौद्धिक विकलांगता (ID) के इलाज के लिए एक नई और आशाजनक थेरेपी की पहचान की गई है। यह नवीन पद्धति एपिजेनेटिक संशोधनों (Epigenetic Modifications) पर आधारित है, जिसका उद्देश्य पीड़ित व्यक्तियों की क्षमताओं को पुनः सक्रिय करना और उनकी आत्मनिर्भरता को बढ़ाना है।
थेरेपी के पीछे का विज्ञान-
• इस शोध में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) में एपिजेनेटिक संशोधनों की भूमिका का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने Syngap1 जीन में उत्परिवर्तन वाले चूहों (Syngap1+/- माइस) का अध्ययन किया, जो ऑटिज्म से ग्रसित मनुष्यों में देखे गए आनुवंशिक बदलावों के समान माने जाते हैं।
• शोध में यह पाया गया कि इन चूहों में डीएनए-संबंधी प्रोटीनों की एसीटाइलेशन प्रक्रिया प्रभावित हो रही थी, जो मस्तिष्क के विकास और उसके सुचारु कार्य के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।
• इस प्रक्रिया के लिए ज़िम्मेदार KAT3B (p300) नामक एंजाइम की पहचान की गई। इस कमी को सुधारने के लिए वैज्ञानिकों ने TTK21 नामक एक विशेष सक्रियणकर्ता (Activator) तैयार किया, जो इस एंजाइम की गतिविधि को बढ़ाकर मस्तिष्क की संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार कर सकता है और ASD/ID से जुड़ी दिक्कतों को कम करने में मददगार हो सकता है।
ऑटिज्म में Syngap1 जीन की भूमिका-
Syngap1 जीन मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, विशेष रूप से सीखने, स्मृति और सामाजिक व्यवहार से जुड़ी प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाता है।
इस जीन में होने वाले उत्परिवर्तन (mutations) को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) और बौद्धिक विकलांगता (ID) से जोड़ा गया है। ऐसे उत्परिवर्तन मस्तिष्क में संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी गंभीर चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं।
थेरेपी कैसे काम करती है?
• इस नई थेरेपी में TTK21 नामक एक अणु का उपयोग किया जाता है, जिसे KAT3B (p300) एंजाइम को सक्रिय करने के लिए विकसित किया गया है।
• यह एंजाइम हिस्टोन प्रोटीनों को एसीटाइलेट करता है। ये प्रोटीन डीएनए से जुड़े होते हैं और जीनों की अभिव्यक्ति (gene expression) को नियंत्रित करने के साथ-साथ गुणसूत्रों को संरचना प्रदान करते हैं।
• प्रभावी डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए TTK21 को ग्लूकोज़-व्युत्पन्न नैनोकणों (CSP-TTK21) से संयुग्मित किया गया, जिससे यह दवा मस्तिष्क तक प्रभावी रूप से पहुँच सके।
• जब इसे उत्परिवर्तित चूहों को दिया गया, तो मस्तिष्क में एसीटाइलेशन की मात्रा बढ़ी, जिससे न्यूरॉनल कार्यप्रणाली, सीखने, स्मृति, और यहां तक कि न्यूरॉनल पुनर्व्यवस्था (neuronal rearrangement) में सुधार देखा गया — जो संज्ञानात्मक क्षमताओं के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के बारे में:
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक जटिल विकास संबंधी स्थिति है, जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, संवाद (communication) और भाषा कौशल को प्रभावित करती है। यह विकार अक्सर सीमित रुचियों और दोहराव वाले व्यवहारों से जुड़ा होता है, जो हर व्यक्ति में अलग-अलग रूपों में दिखाई दे सकते हैं।
इसके लक्षण आमतौर पर पहले तीन वर्षों में नजर आने लगते हैं, हालांकि हर बच्चे में इनकी तीव्रता और स्वरूप अलग हो सकता है।
ASD के कारण-
हालाँकि ASD (ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर) का सटीक कारण अब तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह आनुवंशिक (genetic) और पर्यावरणीय (environmental) कारणों के संयोजन से हो सकता है। वर्तमान में कई शोध और अध्ययन यह समझने में लगे हैं कि कौन-से विशेष कारक ASD के विकास में योगदान देते हैं और किन परिस्थितियों में यह जोखिम बढ़ जाता है।
ASD के सामान्य लक्षण और संकेत-
• सामाजिक संचार और बातचीत में कठिनाइयाँ
• सीमित या अत्यधिक विशिष्ट रुचियाँ
• दोहराव वाले व्यवहार (जैसे किसी काम को बार-बार दोहराना, एक निश्चित क्रम या दिनचर्या पर ज़ोर देना)
निष्कर्ष-
यह उन्नत शोध ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) और बौद्धिक विकलांगता (ID) के उपचार में एक महत्वपूर्ण प्रगति का संकेत देता है, जो एपिजेनेटिक संशोधनों पर आधारित एक नवीन दृष्टिकोण अपनाता है। अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि CSP-TTK21 एक संभावित थेरेपी के रूप में संज्ञानात्मक क्षमताओं को बहाल करने और प्रभावित व्यक्तियों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सहायक हो सकता है। हालांकि, इस उपचार की दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए आगे और गहन शोध तथा मानव परीक्षण आवश्यक होंगे।