संदर्भ:
कन्नडिप्पाया, केरल का एक अनोखा जनजातीय हस्तशिल्प है, जिसे हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ है। इस टैग से इसे बाज़ार में सुरक्षा और वैश्विक पहचान मिलेगी। GI टैग इडुक्की जिले की दो संस्थाओं को दिया गया है:
• उनर्वु पत्तिकावर्ग विविधोदेश सहकारण संगम, वेनमणि
• वनस्री बांस शिल्प एवं वनविभव शेखरना इकाई, मूलक्कड़, उप्पुकुन्नु
कन्नडिप्पाया की विशेषता-
कन्नडिप्पाया का नाम इसके चमकदार (प्रतिबिंबित) सतह के कारण पड़ा है। (कन्नडी = दर्पण, पाया = चटाई)। इसे बनाने के लिए रीड बांस की नरम अंदरूनी परतों का उपयोग किया जाता है, जिससे यह गर्मी में ठंडी और सर्दी में गर्म रहती है।
उच्चतम गुणवत्ता वाला कन्नडिप्पाया ईख बांस (टीनोस्टैचियम वाइटी) से बुना जाता है, जिसे स्थानीय रूप से नजूनजिलीट्टा, नजूजूरा, पोन्नीटा, मीइता और नेथीटा के नाम से जाना जाता है।
बाँस की अन्य प्रजातियाँ, जैसे ओचलैंड्रा एसपी। (करीट्टा, पेरिट्टा, वेल्लीटा, चितौरा और कंजूरा) का भी उपयोग किया जाता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
कन्नडिप्पाया मुख्य रूप से केरल की जनजातीय (आदिवासी) समुदायों द्वारा बनाई जाती है, जिनमें शामिल हैं:
• ऊराली, मन्नान, मुथुवा, मालयन, और कदर
• उल्लादन, मालयारायण, और हिल पुलाया
ये कारीगर इडुक्की, त्रिशूर, एर्नाकुलम और पलक्कड़ जिलों में बसे हुए हैं।
इतिहास में, जनजातीय समुदाय इसे राजाओं को सम्मान के प्रतीक के रूप में भेंट करते थे।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
1. बाज़ार की चुनौतियाँ: GI टैग मिलने के बावजूद, कन्नडिप्पाया कारीगरों को अपनी चटाइयों के लिए एक स्थायी और संगठित बाज़ार नहीं मिल रहा है। विपणन (मार्केटिंग) की कमी के कारण आर्थिक विकास बाधित हो रहा है।
2. सरकारी सहायता और प्रचार की ज़रूरत: कारीगरों ने राज्य और केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि –
• कन्नडिप्पाया को व्यापार मेलों, प्रदर्शनियों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाए।
• आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान की जाए ताकि इस हस्तशिल्प को वैश्विक स्तर तक पहुँचाया जा सके।
3. वैश्विक मांग और संभावनाएँ: आजकल इको-फ्रेंडली (पर्यावरण अनुकूल) उत्पादों की मांग बढ़ रही है। कन्नडिप्पाया को अंतरराष्ट्रीय खरीदारों तक पहुँचाने के लिए GI टैग एक महत्वपूर्ण प्रमाणपत्र साबित हो सकता है।
जीआई टैग का कारीगरों पर प्रभाव
• जीआई टैग से आदिवासी कारीगर सशक्त बन पाएंगे।
• युवा पीढ़ी को इस कला को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकेगी जिससे यह कला विलुप्त होने से बचेगी।
• ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे क्योंकि इसकी मांग बढ़ने पर अधिक लोग इस काम से जुड़ेंगे।