सन्दर्भ:
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने हैदराबाद के कांचा गाचीबौली क्षेत्र में वनों की कटाई और विकास कार्यों को लेकर एक गंभीर और विवादास्पद मामले में हस्तक्षेप किया। न्यायालय ने तेलंगाना सरकार को इस क्षेत्र में भूमि की सफ़ाई और निर्माण संबंधी सभी गतिविधियाँ तुरंत रोकने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि:
यह आदेश उस समय आया जब सरकार ने यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद (UoH) के पास स्थित 400 एकड़ वन क्षेत्र की नीलामी कर वहां सूचना प्रौद्योगिकी (IT) पार्क विकसित करने की योजना बनाई। इस फैसले से पर्यावरण पर संभावित नकारात्मक प्रभाव को लेकर व्यापक चिंता जताई जा रही थी।
कांचा गाचीबौली का महत्व:
· कांचा गाचीबौली हैदराबाद के कुछ बचे हुए शहरी वनों में से एक है, जो अपनी समृद्ध जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। यहां पक्षियों, स्तनधारियों और सरीसृपों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस क्षेत्र की अनोखी चट्टानी संरचनाएँ “जैसे मशरूम रॉक” इसके प्राकृतिक सौंदर्य को और भी खास बनाती हैं।
· ऐसे शहरी वन स्थानीय जलवायु को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये न केवल छाया और ठंडक प्रदान करते हैं, बल्कि वातावरण की नमी भी बनाए रखते हैं, जो तेजी से फैलते शहरों में पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद ज़रूरी है।
तेलंगाना सरकार की योजना और उसका पक्ष:
· तेलंगाना सरकार का कहना है कि इस भूमि का विकास दो बड़े उद्देश्यों की पूर्ति करेगा, जिसमें लगभग 50,000 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति करना और IT पार्क के निर्माण से करीब 5 लाख रोजगार के अवसर सृजित होना शामिल है।
· चूंकि गाचीबौली रणनीतिक रूप से हैदराबाद का महत्वपूर्ण क्षेत्र है, सरकार इस ज़मीन को आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी मानती है। इस परियोजना की जिम्मेदारी तेलंगाना इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन (TGIIC) को दी गई है, जिसने जो प्रस्तावित नक्शा तैयार किया है उसमें कुछ हरित क्षेत्र और मशरूम रॉक जैसी प्रमुख चट्टानी संरचनाओं को संरक्षित रखने की बात कही गई है।
कानूनी विवाद:
· यह 400 एकड़ भूमि दरअसल उस 2,300 एकड़ ज़मीन का हिस्सा है, जो 1974 में यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद (UoH) को आवंटित की गई थी। विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षों में इस भूमि के एक हिस्से का उपयोग अपने शैक्षणिक और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया है, लेकिन कानूनी रूप से पूरी ज़मीन का स्वामित्व राज्य सरकार के पास ही है।
· हालांकि, इन 400 एकड़ में से किसी भी हिस्से को अब तक आधिकारिक रूप से ‘वन भूमि’ या ‘संरक्षित वन क्षेत्र’ घोषित नहीं किया गया है। यही इस विवाद का मूल कारण है।
· पर्यावरण कार्यकर्ता और छात्र संगठन यह तर्क दे रहे हैं कि यह क्षेत्र 1996 में आये सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले “टी. एन. गोडावर्मन तिरुमूलपाद बनाम भारत संघ” के अनुसार "वन" की श्रेणी में आता है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक वन क्षेत्र मौजूद है, भले ही इसे सरकार ने औपचारिक रूप से अधिसूचित न किया हो।
भविष्य की संभावित दिशा:
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने एक मंत्रीमंडलीय समिति गठित करने की घोषणा की है, जो इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों से बातचीत करेगी। यह समिति यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद की कार्यकारिणी परिषद, सामाजिक संगठनों और छात्र प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श कर समाधान के रास्ते तलाशेगी।