संदर्भ:
हाल ही में तमिलनाडु में कानूम पोंगल के दिन आयोजित किए गए जल्लिकट्टू और मंजुवीरट्टू कार्यक्रमों में सात लोगों की मृत्यु हो गई। पोंगल फसल उत्सव का हिस्सा होने वाले इन पारंपरिक बैल कार्यक्रमों ने सुरक्षा और पशु कल्याण के संबंध में गंभीर चिंताएं पैदा की हैं।
जल्लिकट्टू के बारे में:
- जल्लिकट्टू: जल्लिकट्टू एक पारंपरिक तमिलनाडु खेल है जिसमें प्रतिभागी एक परिभाषित क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से दौड़ते हुए बैलों को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।
- स्थान: यह खेल आमतौर पर पोंगल उत्सव के दौरान, विशेषकर मदुरै, पुदुकोट्टै और करूर जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित किया जाता है।
- उद्देश्य और प्रक्रिया: वशकर्ता बैल के कूबड़ को पकड़ने और उसे वश में करने का प्रयास करते हैं, जबकि बैल भागने की कोशिश करता है। सफल होने पर वशकर्ता को पुरस्कार मिलता है।
- सांस्कृतिक संबंध: यह खेल मनुष्यों और जानवरों के बीच के बंधन का जश्न मनाता है और कृषि में उनके योगदान का सम्मान करता है, इस प्रकार तमिल संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है।
ऐतिहासिक महत्व:
- प्राचीन जड़ें: मोहनजोदड़ो सभ्यता (2500-1800 ईसा पूर्व) के समय से ही भारत में बैल वश में करने की परंपरा रही है।
- तमिल साहित्य: संगम युग के तमिल महाकाव्य 'शिल्लापदिकारम' में जल्लिकट्टू का उल्लेख है, जोकि इसके लंबे सांस्कृतिक इतिहास का संकेत देता है।
पशु और सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 48A: राज्य को पशु कल्याण में सुधार करने और वन्य जीवन की रक्षा करने के लिए काम करना चाहिए।
- अनुच्छेद 51A(g): नागरिकों को पशुओं के प्रति करुणा दिखानी चाहिए और वन्य जीवन की रक्षा करनी चाहिए।
- अनुच्छेद 21: जीवन का अधिकार जानवरों पर भी लागू होता है, जोकि उनकी गरिमा और निष्पक्ष उपचार पर जोर देता है।
- अनुच्छेद 29(1): सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें जल्लिकट्टू जैसी पारंपरिक प्रथाएं भी शामिल हैं।
- सूची III की प्रविष्टि 17: केंद्र और राज्य सरकारों को पशु कल्याण के संबंध में कानून बनाने की अनुमति देता है।
हालिया कानूनी विकास
- 2017 संशोधन: तमिलनाडु सरकार ने 2014 से 2016 तक प्रतिबंधित किए जाने के बाद पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन करके जल्लिकट्टू को बहाल किया।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (2023): सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लिकट्टू की अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा, इसकी सांस्कृतिक महत्व को मान्यता दी।
जल्लिकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क:
पक्ष में तर्क
- सांस्कृतिक विरासत: जल्लिकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे पोंगल के दौरान मनाया जाता है।
- समुदाय की भागीदारी: यह आयोजन ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है और स्थानीय परंपराओं को मजबूत करता है।
- आर्थिक लाभ: यह खेल पुलिकुलम जैसी देशी पशु प्रजातियों का समर्थन करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
- नस्ल संरक्षण: यह देशी पशु प्रजातियों के संरक्षण में मदद करता है जोकि कृषि और ग्रामीण आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।
विपक्ष में तर्क:
- पशु क्रूरता: आलोचकों का तर्क है कि इस खेल में बैलों को अनावश्यक दर्द, पीड़ा और तनाव का सामना करना पड़ता है, जोकि पशु कल्याण कानूनों का उल्लंघन करता है।
- सुरक्षा जोखिम: इस आयोजन में मानव प्रतिभागियों और दर्शकों के लिए सुरक्षा की चिंता।
· नैतिक चिंताएं: पशु अधिकार कार्यकर्ता मनोरंजन और खेल के लिए बैलों के शोषण का विरोध करते हैं, गरिमा और अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हैं।
जानवरों को शामिल करने वाले अन्य पारंपरिक त्योहार:
- कांबला (कर्नाटक): फसल उत्सवों के दौरान पानी से भरे खेतों में आयोजित भैंस की दौड़।
- बैलगाड़ी दौड़ (महाराष्ट्र, पंजाब): ग्रामीण मेलों के दौरान बैलगाड़ी की पारंपरिक दौड़।
- मुर्गा लड़ाई (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु): संक्रांति त्योहारों के दौरान आयोजित मुर्गा लड़ाई।
- ऊंट दौड़ (राजस्थान): पुष्कर मेले में अक्सर आयोजित की जाने वाली ऊंट दौड़, जिसमें गति का प्रदर्शन किया जाता है।
- धीरियो (गोवा): ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित पारंपरिक बैलगाड़ी खेल।