संदर्भ: हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिष्ठित जहान-ए-ख़ुसरो सूफ़ी संगीत समारोह में भाग लिया। यह भव्य अंतरराष्ट्रीय उत्सव सूफ़ी संगीत, कविता और नृत्य की समृद्ध परंपरा का उत्सव मनाता है। यह समारोह हिंदुस्तानी संगीत और काव्य परंपरा के महान सितारे अमीर ख़ुसरो को समर्पित है, जिनकी रचनात्मक विरासत ने दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक और संगीत धारा को गहराई से प्रभावित किया है।
अमीर ख़ुसरो के बारे में:
तुती-ए-हिंद (भारत का तोता) के रूप में जाने वाले अमीर ख़ुसरो एक कवि, संगीतकार और विद्वान थे, जिन्होंने इंडो-फ़ारसी सांस्कृतिक परंपरा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि संगीतकार, भाषाविद, इतिहासकार और सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के शिष्य भी थे। उनके साहित्य, संगीत और भाषाई योगदान ने भारतीय उपमहाद्वीप की बहुलतावादी सांस्कृतिक पहचान को गहराई से प्रभावित किया।
अमीर खुसरो का योगदान:
• प्रारंभिक कार्य और मान्यता: उनके दूसरे संग्रह, वस्त-उल-हयात ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई, जबकि घुर्रत-उल-कमाल (1293 ई.) ने काव्य सिद्धांतों की खोज की, जिससे उन्हें कवि, रहस्यवादी और नैतिकतावादी के रूप में पहचाना गया। अमीर खुसरो की कविता में फारसी परंपराओं को भारतीय विषयों के साथ सहजता से मिश्रित किया गया, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली, जिसमें फारसी कवि सादी की प्रशंसा भी शामिल है।
• दरबारी कवि के रूप में उदय: 36 वर्ष की आयु में, खुसरो ने केवल छह महीनों में मथनवी (कथात्मक कविता) किरान-उस-सादैन लिखी, जिसके लिए उन्हें सुल्तान कैकुबाद ने पुरस्कार से नवाज़ा। यह मथनवी दर सिफत-ए-दिल्ली के नाम से भी जानी जाती है, जिसमें दिल्ली का वैभव चित्रित किया गया है।
• खिलजी के अधीन उत्कर्ष: खिलजी शासनकाल के दौरान, उनके नूह-ए-सिपिहार (1318 ई.) ने भारत के परिदृश्य, भाषाओं और संस्कृति को बताया। सूफी विचारों से प्रभावित होकर, उन्होंने धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से हश्त-बिहिश्त में, जहाँ एक मुस्लिम हाजी और एक ब्राह्मण तीर्थयात्री आस्था पर चर्चा करते हैं।
• अंतिम वर्ष : अमीर खुसरो ने अपने अंतिम वर्षों में मजनूं-ओ-लेयला की रचना की, जिसमें प्रेम और वेदना का सूफियाना चित्रण किया। 1325 ई. में उनके गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के निधन के बाद, खुसरो ने गहरे शोक में अपने वस्त्र फाड़े और चेहरा काला किया। उसी वर्ष उनका भी निधन हुआ और उन्हें अपने गुरु के पास ही दफनाया गया। आज उनकी मज़ार सांस्कृतिक समन्वय और सूफी परंपरा का महत्वपूर्ण प्रतीक है।
हिंदुस्तानी संगीत में योगदान:
ख़ुसरो को भारतीय शास्त्रीय संगीत में क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। उनके योगदान में शामिल हैं:
• सितार और कई अन्य वाद्ययंत्रों का आविष्कार।
• तराना, कव्वाली और ख्याल जैसे संगीत रूपों का विकास।
• फ़ारसी और भारतीय मधुर संरचनाओं का संश्लेषण, जिसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को गहराई से प्रभावित किया।
कव्वाली:
उनके सबसे स्थायी योगदानों में से एक कव्वाली है, जो समा (आध्यात्मिक श्रवण) से जुड़ा सूफी भक्ति संगीत का एक रूप है। उनकी रचनाएँ, जैसे "छाप तिलक सब छीनी" और "मन कुंतो मौला", कव्वाली परंपरा के लिए आज भी केंद्र में बनी हुई हैं।
खयाल :
खयाल, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक प्रमुख शैली है, जो ध्रुपद और कव्वाली जैसी पुरानी शैलियों से विकसित हुई है। इसे बाद में नियामत खान (सदारंग) और बड़े मोहम्मद खान जैसे संगीतकारों ने और विकसित किया, जिससे शास्त्रीय संगीत परंपराओं में इसकी जगह और मजबूत हुई।
निष्कर्ष:
अमीर खुसरो का प्रभाव धर्म, संस्कृति और भौगोलिक सीमाओं से परे है। कव्वाली, ख्याल और हिंदुस्तानी संगीत में उनके योगदान ने भक्ति और शास्त्रीय परंपराओं के बीच सेतु का कार्य किया। उनकी रचनात्मक दृष्टि और सांस्कृतिक समन्वय की क्षमता ने उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक बना दिया है। आज भी उनकी विरासत सूफी और हिंदुस्तानी संगीत की मूलधारा में बनी हुई है, जो वैश्विक स्तर पर कलाकारों और विद्वानों को प्रेरित करती है।