संदर्भ:
हाल ही में यू.एस.-आधारित थिंक टैंक द फ्यूचर ऑफ़ फ्री स्पीच द्वारा किए गए सर्वेक्षण "दुनिया में कौन फ्री स्पीच का समर्थन करता है?" (Who In The World Supports Free Speech?) में भारत को 33 देशों में 24वाँ स्थान प्राप्त हुआ। 62.6 के स्कोर के साथ भारत दक्षिण अफ्रीका (66.9) और लेबनान (61.8) के बीच स्थित है। नॉर्वे और डेनमार्क 87.9 और 87.0 के स्कोर के साथ फ्री स्पीच इंडेक्स के भविष्य के शीर्ष पर रहे।
सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष:
1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन:
· अधिकांश भारतीय बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत का समर्थन करते हैं। यह लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति जनता की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। विचारों को खुलकर व्यक्त करने के महत्व को समाज में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, जो लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है।
2. आलोचना पर सरकारी प्रतिबंधों के लिए व्यापक समर्थन:
· 37% भारतीयों का मानना है कि सरकार को अपनी नीतियों की आलोचना पर रोक लगाने का अधिकार होना चाहिए। यह सर्वेक्षण किए गए देशों में सबसे अधिक प्रतिशत है, जो राजनीतिक भाषण पर सरकारी नियंत्रण के प्रति बढ़ते समर्थन को दर्शाता है। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है क्योंकि यह संकेत देती है कि सार्वजनिक चर्चा और विशेषतौर पर सत्ता में बैठे लोगों की आलोचना पर प्रतिबंध लगाने की स्वीकार्यता बढ़ रही है।
तुलनात्मक विश्लेषण :
इसके विपरीत, यू.के. (5%) और डेनमार्क (3%) जैसे अन्य लोकतांत्रिक राष्ट्र आलोचना पर सरकारी प्रतिबंधों के लिए बहुत कम समर्थन दर्शाते हैं। यह स्पष्ट अंतर भारत में बढ़ती प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है, जहाँ आबादी का एक हिस्सा राजनीतिक भाषण को प्रतिबंधित करने में विश्वास करता है। यह प्रवृत्ति सार्वजनिक चर्चा पर सरकारी नियंत्रण का समर्थन करने की ओर बदलाव को दर्शाती है, जिसका भारत के लोकतंत्र और सार्वजनिक बहस के स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कई कानूनी और राजनीतिक प्रतिबंधों के कारण सीमित हो रही है। सरकारी नीतियों, कानूनों और सामाजिक दबावों के कारण खुलकर बोलने की आज़ादी पर असर पड़ रहा है, जिससे लोकतांत्रिक चर्चा प्रभावित हो सकती है।
• गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए):
· इस कानून की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि इसका उपयोग पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया जाता है। इससे उनकी स्वतंत्र रूप से बोलने और राजनीतिक चर्चा में भाग लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
• आईटी नियम 2021:
· ये नियम सरकार को सोशल मीडिया और ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने के व्यापक अधिकार देते हैं। इसके कारण नागरिकों और मीडिया संगठनों में सेंसरशिप (Censorship) और स्व-सेंसरशिप (Self-Censorship) की चिंताएँ बढ़ी हैं। कानूनी परिणामों के डर से लोग सरकार की आलोचना करने या खुलकर राय व्यक्त करने से बचने लगे हैं।
इन कानूनी प्रावधानों के अधिक उपयोग से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर पड़ रहा है, जिससे लोकतांत्रिक बहस और निष्पक्ष संवाद पर भी दबाव बढ़ रहा है।
निष्कर्ष:
ये निष्कर्ष मुक्त भाषण पर भारत के रुख में विरोधाभास का सुझाव देते हैं: जबकि जनता व्यापक रूप से मुक्त अभिव्यक्ति के विचार का समर्थन करती है, वहीं आलोचनात्मक राजनीतिक भाषण को सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण समर्थन है। मुक्त अभिव्यक्ति के लिए जनता के समर्थन और सरकार की आलोचना को प्रतिबंधित करने की इच्छा के बीच विरोधाभास व्यवहार में मुक्त भाषण की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बढ़ती चुनौती को इंगित करता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो इससे असहमति जताने वालों पर अधिक सरकारी निगरानी और प्रतिबंध लग सकते हैं, जो खुली बहस और जवाबदेही के लिए आवश्यक लोकतांत्रिक स्थान को कमजोर कर देगा।
एक संपन्न लोकतंत्र के लिए, भारत के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मुक्त भाषण न केवल सिद्धांत रूप में बल्कि व्यवहार में भी संरक्षित हो - इसके लिए—कानूनी सुरक्षा उपायों को मजबूत करना, संवैधानिक और नीतिगत सुधारों को लागू करना, और ऐसे सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण होगा।