संदर्भ:
हाल ही में इंटरटाइडल बायोब्लिट्ज नामक एक राष्ट्रव्यापी अभियान आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य भारत के तटीय क्षेत्रों में समुद्री जीवन का व्यापक दस्तावेजीकरण करना था। इस पहल का आयोजन तटीय संरक्षण फाउंडेशन और ईस्ट कोस्ट कंजर्वेशन टीम द्वारा किया गया। इसमें मुंबई, अंडमान, गोवा और विशाखापत्तनम के शोधकर्ता, नागरिक वैज्ञानिक और संरक्षणवादी शामिल हुए। इस अभियान ने इंटरटाइडल पारिस्थितिकी तंत्रों—जो जैव विविधता से समृद्ध होने के बावजूद अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं—की महत्ता को उजागर किया।
प्रमुख खोजें और निष्कर्ष:
इंटरटाइडल प्रजातियों पर केंद्रित यह पहली राष्ट्रव्यापी पहल दस दिनों तक चली। iNaturalist, जो एक वैश्विक नागरिक विज्ञान मंच है, के माध्यम से 3,600 से अधिक अवलोकन दर्ज किए गए और 514 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया। इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के तटीय क्षेत्रों की समृद्ध समुद्री जैव विविधता को उजागर करते हैं और भविष्य में अधिक शोध एवं संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
1. भारत में स्यूडोसेरोस बिफासिया का पहला रिकॉर्ड:
· बायोब्लिट्ज के दौरान एक महत्वपूर्ण खोज स्यूडोसेरोस बिफासिया की पहचान थी, जो मुख्य भूमि भारत से दर्ज की जाने वाली पहली फ्लैटवर्म प्रजाति है। इससे पहले, इस प्रजाति का अस्तित्व केवल लक्षद्वीप में दर्ज किया गया था। विशाखापत्तनम में इसकी उपस्थिति दर्ज होने से इसकी सीमा का विस्तार हुआ है और देश के पूर्वी तट पर समुद्री अनुसंधान को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
2. विशाखापत्तनम में मिली दुर्लभ प्रजातियाँ:
विशाखापत्तनम में 1,533 से अधिक अवलोकन किए गए, जिनमें 227 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया। इस अध्ययन के दौरान पहले से अवर्णित दो प्रजातियों को दर्ज किया गया, साथ ही इस क्षेत्र में दस से अधिक प्रजातियों का पहली बार अवलोकन हुआ। रात के टाइडपूलिंग सत्र के दौरान समुद्री जीवन की उच्च विविधता देखी गई, जिसमें तितली मछली, साही मछली, सर्जनफ़िश, मोरे ईल और एक किशोर एंजेल मछली जैसी प्रजातियाँ शामिल थीं।
3. मुंबई और गोवा से जैव विविधता :
महानगरीय क्षेत्र में तटीय संरक्षण फाउंडेशन के नेतृत्व में 120 प्रजातियाँ दर्ज की गईं वही मुंबई के उपनगरीय क्षेत्रों में 80 प्रजातियाँ दर्ज की गईं। उल्लेखनीय प्रजातियों में ओल्ड-वुमन ऑक्टोपस, नारंगी-धारीदार हर्मिट केकड़ा, मैंग्रोव लीफ स्लग, टाइगर मून स्नेल और हाईफिन मोरे ईल शामिल हैं।
4. अंडमान द्वीप समूह में अंतर-ज्वारीय खोजें:
अंडमान के अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में तीन अलग-अलग स्थानों पर 70 से अधिक प्रजातियों को दर्ज किया गया। उल्लेखनीय दृश्यों में बबल स्नेल, फ्लैटवर्म, समुद्री स्लग, मोरे ईल, एक ऑक्टोपस और एक किशोर स्टिंगरे शामिल थे। अंडमान क्षेत्र का अद्वितीय प्रवाल परिदृश्य महाराष्ट्र और गोवा के स्पंज और हाइड्रोइड-समृद्ध तटरेखाओं से काफी अलग है।
कोरल ब्लीचिंग का प्रभाव: 2024 की वैश्विक कोरल ब्लीचिंग घटना ने अंडमान में कोरल को बुरी तरह प्रभावित किया। संरक्षणवादी दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिए पुनर्प्राप्ति प्रयासों की निगरानी कर रहे हैं।
प्रजातियों के वितरण में बदलाव: अंडमान के ज्वार-भाटी क्षेत्रों में पर्ल समुद्री एनीमोन (Pearl Sea Anemone) की जगह दूसरे समुद्री एनीमोन (Carpet Sea Anemone) ले रहे हैं, जो संभावित पर्यावरणीय परिवर्तनों का संकेत देता है।
निष्कर्ष:
इंटरटाइडल बायोब्लिट्ज ने भारत में भविष्य के समुद्री जैव विविधता अनुसंधान की आधारशिला रखी है। नियमित निगरानी से प्रजातियों में होने वाले बदलावों को ट्रैक करने, मानवीय प्रभाव का आकलन करने और संरक्षण प्रयासों को दिशा देने में मदद मिल सकती है। यह उद्घाटन कार्यक्रम एक वार्षिक परंपरा की शुरुआत को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य भारत के समृद्ध समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।