संदर्भ:
हाल ही में जारी "भारत जैव-अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2025" (IBER 2025) के अनुसार, भारत की जैव-अर्थव्यवस्था ने पिछले दशक में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में यह 165.7 बिलियन डॉलर तक पहुँच गई, जो 16 गुना वृद्धि को दर्शाती है। यह प्रगति भारत की वैश्विक जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उभरती हुई स्थिति को रेखांकित करती है, जहाँ अब इस क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में 4.25% योगदान है।
बायोसारथी का शुभारंभ:
· इसी क्रम में, बायोसारथी' नामक एक अभिनव वैश्विक मेंटरशिप पहल शुरू की गई, जिसका उद्देश्य बायोटेक स्टार्टअप्स को समर्थन प्रदान करना है।
· यह पहल उभरते उद्यमियों को दुनिया भर के अनुभवी मेंटर्स से जोड़कर उन्हें मूल्यवान मार्गदर्शन और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में सहायता करेगी, जिससे जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहन मिलेगा।
जैव अर्थव्यवस्था के विषय में:
· जैव-अर्थव्यवस्था उन आर्थिक गतिविधियों को संदर्भित करती है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं और ऊर्जा के उत्पादन के लिए जैव प्रौद्योगिकी और बायोमास का उपयोग किया जाता है। यह वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी प्रगति, विशेष रूप से आनुवंशिकी और जैव प्रौद्योगिकी से गहराई से जुड़ी हुई है।
· इसमें कृषि, स्वास्थ्य, रसायन और ऊर्जा जैसे उद्योग शामिल हैं, जहाँ उत्पादन के लिए फसलों, जंगलों, मछलियों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों जैसे जैविक संसाधनों का उपयोग किया जाता है।
जैव अर्थव्यवस्था के चालक:
अपनी आर्थिक रणनीति के केंद्रीय स्तंभ के रूप में जैव प्रौद्योगिकी के प्रति भारत की प्रतिबद्धता इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण रही है।
· इस क्षेत्र ने पिछले चार वर्षों में 17.9% की प्रभावशाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) हासिल की है, जिसने भारत को वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक उभरते हुए देश के रूप में स्थापित किया है। सरकार की सक्रिय नीतियों, बुनियादी ढांचे में निवेश और अनुसंधान और विकास पर जोर ने इस तीव्र विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया है।
बायो-ई3 नीति:
· बायो-ई3 नीति का पूरा नाम "अर्थव्यवस्था, रोजगार और पर्यावरण के लिए जैव-प्रौद्योगिकी" (Biotechnology for Economy, Employment & Environment - Bio-E3) है। यह नीति भारत सरकार द्वारा जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता को गति देने के लिए शुरू की गई एक व्यापक रणनीति है।
· इस नीति के तहत, बायो-एआई हब, बायो फाउंड्री और बायो-एनेबलर हब जैसी पहलों की स्थापना की जाएगी, ताकि बायोमैन्युफैक्चरिंग के साथ उन्नत तकनीकों को एकीकृत किया जा सके। असम इस नीति को अपनाने वाला पहला राज्य बन चुका है, जो अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
जैव प्रौद्योगिकी क्या है?
· जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) जीव विज्ञान और तकनीक के संयोजन से नए उत्पादों, विधियों और जीवों के विकास की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और समाज में सुधार लाना है। जैव-प्रौद्योगिकी जैव-अर्थव्यवस्था (Bioeconomy) का एक अभिन्न हिस्सा है। भारत में जैव प्रौद्योगिकी ने नेफिथ्रोमाइसिन के विकास जैसे अभूतपूर्व नवाचारों को जन्म दिया है, जो श्वसन रोगों के लिए भारत का पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक है और हीमोफीलिया के लिए जीन थेरेपी के सफल परीक्षण हैं।
इसके अतिरिक्त, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और इसरो (ISRO) के बीच सहयोग से अंतरिक्ष जीव विज्ञान और अंतरिक्ष चिकित्सा की नींव रखी जा रही है। यह पहल अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए चिकित्सा समाधान विकसित करने में सहायक होगी।
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) के बारे में:
BIRAC भारत सरकार द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत पंजीकृत है।
यह जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा संचालित एक इंटरफ़ेस एजेंसी के रूप में कार्य करती है, जिसका उद्देश्य भारत में उभरते जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग को सहायता प्रदान करना है।
BIRAC निम्नलिखित प्रमुख कार्य करता है:
- जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रणनीतिक अनुसंधान, नवाचार और किफायती उत्पाद विकास को बढ़ावा देना।
- जैव-प्रौद्योगिकी नवाचारों को वाणिज्यिक रूप देने के लिए सिंगल-विंडो सुविधा प्रदान करना।
निष्कर्ष:
भारत जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है और नवाचार, अनुसंधान व आर्थिक विकास के क्षेत्र में अग्रणी बनते हुए वैश्विक स्तर पर एक मजबूत शक्ति (Powerhouse) बनने की दिशा में अग्रसर है।