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Blog / 22 Mar 2025

आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण

संदर्भ: हाल ही में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति  समुदाय के विभिन्न उप-समूहों के मध्य सरकारी लाभों के अधिक न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करना है।

उप-वर्गीकरण के मुख्य बिंदु:

नया उप-वर्गीकरण 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा। राज्य सरकार ने अनुसूचित जातियों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुसार तीन अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया है और प्रत्येक समूह के लिए आरक्षण का प्रतिशत अलग-अलग निर्धारित किया है।

1. समूह 1: सबसे पिछड़ी उप-जातियाँ:

·        इस समूह में रेल्ली उप-समूह शामिल है, जिसमें 12 जातियाँ शामिल हैं जो आंध्र प्रदेश में कुल एससी आबादी का लगभग 2.25% हिस्सा बनाती हैं। उन्हें सरकारी नौकरियों में 1% आरक्षण आवंटित किया जाएगा।

2. समूह 2: पिछड़ी उपजातियाँ:

·        इस समूह में मडिगा उप-समूह शामिल है, जिसमें 18 जातियाँ आती हैं। यह समुदाय राज्य की कुल SC जनसंख्या का 41.56% है। इस समूह को 6.5% आरक्षण मिलेगा।

3. समूह 3: तुलनात्मक रूप से कम पिछड़ी उप-जातियाँ

  • इस समूह में माला उप-समूह आता है, जिसमें 29 जातियाँ शामिल हैं। यह समूह राज्य की कुल SC जनसंख्या का 53.97% है। इन्हें 7.5% आरक्षण प्रदान किया जाएगा।

नए उप-वर्गीकरण का उद्देश्य अनुसूचित जाति के उप-समूहों में सरकारी लाभों का निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना है। यह प्रणाली 2026 में प्रभावी होगी और इसे जिला स्तर पर लागू किया जाएगा।

पृष्ठभूमि और कानूनी प्रक्रिया:

आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण की मांग लंबे समय से चली रही है। कार्यकर्ता मंदा कृष्ण मडिगा ने 'मडिगा डंडोरा' आंदोलन के माध्यम से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर समान अवसरों और न्यायसंगत आरक्षण की मांग की गई है।

·        1996 में, जस्टिस रामचंद्र राव आयोग ने पहली बार SC समुदाय को विभिन्न वर्गों में बाँटने की सिफारिश की थी, ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ सही मायनों में सबसे जरूरतमंद जातियों तक पहुँचे।

·        आंध्र प्रदेश सरकार ने सबसे पहले 1997 में इस उप-वर्गीकरण की अनुशंसा को लागू किया था, लेकिन इस कदम को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 2004 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि केवल संसद को इस तरह के वर्गीकरण पर निर्णय लेने का अधिकार है।

·        कानूनी बाधाओं के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार अगस्त 2023 में अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा, जिससे राज्य द्वारा इस नीति को लागू करने का रास्ता साफ हो गया।

उप-वर्गीकरण के लिए तर्क:

·        अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण आरक्षण के समान वितरण को सुनिश्चित करता है, सबसे अधिक हाशिए पर पड़े लोगों को प्राथमिकता देता है और शासन में सुधार करता है। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि यह सामाजिक एकता को कमजोर कर सकता है, ऐतिहासिक न्याय को कमजोर कर सकता है और डेटा सीमाओं का सामना कर सकता है।

हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 341 और 246 के तहत यह कानूनी रूप से संभव है, लेकिन जातिगत भेदभाव, राजनीतिक दुरुपयोग और विश्वसनीय जनगणना डेटा की अनुपलब्धता को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।

निष्कर्ष:

आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण सामाजिक समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहल अनुसूचित जाति उप-समूहों के बीच असमानताओं को दूर करने का प्रयास करती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सरकारी लाभ और अवसर सभी वर्गों तक समान रूप से पहुँचें। इस निर्णय का 2026 में कार्यान्वयन राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा, क्योंकि यह अधिक समावेशी शासन और सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करेगा।