संदर्भ:
हाल ही में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की भारत यात्रा ने भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच गठबंधन सहयोग को एक नई दिशा प्रदान की है। यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों के विकास में एक महत्वपूर्ण विकास है।
सहयोग की आवश्यकता :
· बदलते वैश्विक परिदृश्य, विशेष रूप से ट्रम्प प्रशासन के दौरान अमेरिका और यूरोप के बीच तनावपूर्ण संबंधों ने भारत और यूरोपीय संघ (EU) दोनों को अपनी वैश्विक स्थिति और रणनीतिक प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है।
· इन भू-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और कनेक्टिविटी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग को प्राथमिकता देने पर सहमति व्यक्त की है।
· बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियों को देखते हुए, दोनों पक्ष वैश्विक मामलों की जटिलताओं को प्रभावी ढंग से नेविगेट करने के लिए अपनी साझेदारी को गहरा करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं।
मुक्त व्यापार समझौता:
· भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौता (FTA) एक प्रमुख केंद्रबिंदु है। इस समझौते पर बातचीत 2007 में शुरू हुई थी, लेकिन नौकरशाही अड़चनों और विवादित मुद्दों के कारण यह प्रक्रिया बार-बार बाधित होती रही। अब, दोनों पक्षों ने नए सिरे से प्रतिबद्धता दर्शाई है और इसे शीघ्र अंतिम रूप देने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।
· वैश्विक व्यापार असंतुलन, चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव और अमेरिकी व्यापार नीतियों की अनिश्चितता की पृष्ठभूमि में, यह समझौता विशेष महत्व रखता है। FTA के सफल क्रियान्वयन से न केवल भारत और यूरोपीय संघ के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूती मिलेगी, बल्कि यह दोनों को तेजी से उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी भू-राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ करने का अवसर भी देगा।
भारत-यूरोपीय संघ संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ:
· भारत उन पहले देशों में से एक था, जिसने 1963 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) — जो बाद में यूरोपीय संघ (EU) बना — के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। हालांकि, शुरुआती दशकों में यह संबंध अपेक्षाकृत निष्क्रिय रहा। शीत युद्ध के दौरान, भारत और सोवियत संघ के घनिष्ठ संबंध तथा भारत की आर्थिक नीतियों ने यूरोप के साथ गहरे आर्थिक एवं रणनीतिक सहयोग की संभावनाओं को सीमित कर दिया।
· 1990 के दशक की शुरुआत में, सोवियत संघ के विघटन और भारत के आर्थिक उदारीकरण के बाद दोनों पक्षों के बीच सहयोग में वृद्धि हुई । 2004 में, भारत और EU ने औपचारिक रूप से रणनीतिक साझेदारी स्थापित की और 2007 में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता शुरू हुई।
· हालांकि, व्यापारिक और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के इन प्रयासों को नौकरशाही अड़चनों, मानकों को लेकर मतभेदों और राजनीतिक प्राथमिकताओं के टकराव जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप, भारत-EU रणनीतिक साझेदारी व्यावहारिक होने के बजाय प्रतीकात्मक (Symbolic) बनकर रह गई।
निष्कर्ष :
भारत-यूरोपीय संघ संबंध अब एक नए परिवर्तनकारी चरण में प्रवेश करने के लिए तैयार है, जहां दोनों पक्षों की पूर्व की चुनौतियों को सुलझाने और नए अवसरों का सामूहिक लाभ उठाने की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। व्यापार, सुरक्षा, प्रौद्योगिकी सहित अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में गहन सहयोग के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने के प्रयास, आने वाले वर्षों में अधिक व्यापक, संतुलित और प्रभावशाली साझेदारी की नींव रखेंगे।