संदर्भ:
हाल ही में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) के अध्ययन पर आधारित पंचायत हस्तांतरण सूचकांक (PDI) जारी किया गया, जिसमें भारत की पंचायत प्रणाली पर व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इसे केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया गया हैं।
मुख्य निष्कर्ष:
- कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु पंचायत हस्तांतरण सूचकांक 2024 में शीर्ष तीन राज्यों के रूप में उभरे हैं, जोकि स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने में उनके प्रभावी प्रदर्शन को दर्शाता है।
- उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में हाल के वर्षों में सबसे बड़ा सुधार देखा गया है, पंचायतों को मजबूत करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- ग्रामीण स्थानीय निकायों को समग्र अंतरण वर्ष 2013-14 के 39.9% से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 43.9% हो गया।
- महाराष्ट्र, जो कभी शीर्ष स्कोरर था, में गिरावट देखी गई, हालांकि यह अभी भी सूचकांक में चौथे स्थान पर है।
पंचायतों में प्रतिनिधित्व में वृद्धि:
· वर्ष 2013-14 से भारत में पंचायतों की संख्या 2.48 लाख से बढ़कर 2.62 लाख हो गई है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य पंचायतों की संख्या के मामले में सबसे आगे हैं और स्थानीय स्तर पर शासन के ढांचे में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
महिलाओं का प्रतिनिधित्व:
· अध्ययन के अनुसार पंचायतों में लैंगिक प्रतिनिधित्व में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जबकि अधिकांश राज्य महिलाओं के लिए 50% कोटा का पालन करते हैं, कुछ राज्य न्यूनतम आरक्षण सीमा को पूरा करने में विफल रहते हैं।
· मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और त्रिपुरा उन राज्यों में शामिल हैं जिनका प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर से कम है।
· इसके विपरीत, ओडिशा (61.51%), हिमाचल प्रदेश (57.5%) और तमिलनाडु (57.32%) जैसे राज्य स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी में सबसे आगे हैं।
एससी, एसटी और ओबीसी प्रतिनिधित्व:
आईआईपीए अध्ययन के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए कोई निर्धारित आरक्षण नहीं है। हालांकि, पंजाब में पंचायतों में SC प्रतिनिधियों का अनुपात सबसे अधिक (36.34%) है, छत्तीसगढ़ में ST का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व (41.04%) है और बिहार में OBC का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व (39.02%) है। इन समूहों का राष्ट्रीय औसत प्रतिनिधित्व SC के लिए 18.03%, ST के लिए 16.22% और OBC के लिए 19.15% है।
पंचायतों को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ:
अध्ययन के अनुसार भारत में पंचायतों को प्रभावित करने वाली प्राथमिक चुनौतियों में अपर्याप्त वित्त और बुनियादी ढाँचे की कमी शामिल है।
· केवल सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बताया कि उनके 100% पंचायत कार्यालय पक्के भवन (स्थायी संरचना) वाले हैं। इसके विपरीत, अरुणाचल प्रदेश में यह केवल 5% और ओडिशा में 12% है।
· 12 राज्यों ने पंचायतों में 100% कंप्यूटर पहुंच की सूचना दी, लेकिन अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्य अभी भी
कमी का सामना कर रहे हैं। अरुणाचल में पंचायतों में कोई कंप्यूटर नहीं है, जबकि ओडिशा में केवल 13% पंचायतों में कंप्यूटर उपलब्ध हैं।
· इसी तरह, इंटरनेट कनेक्टिविटी भी सीमित बनी हुई है। 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 100% इंटरनेट पहुंच है, लेकिन हरियाणा ने किसी भी पंचायत में इंटरनेट उपलब्धता की सूचना नहीं दी, जबकि अरुणाचल प्रदेश में केवल 1% पंचायतों में इंटरनेट कनेक्टिविटी है।
पंचायतों में बुनियादी ढांचे की यह कमी उनकी समुदायों की सेवा करने और अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की दक्षता में बाधा डालती है।
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के अध्ययन के विषय में:
IIPA ने भारत भर के 68 जिलों में 172 पंचायतों का विस्तृत अध्ययन किया। इसने छह मापदंडों के आधार पर पंचायत प्रणाली के प्रदर्शन का आकलन किया:
1. रूपरेखा
2. कार्य
3. वित्त
4. पदाधिकारी
5. क्षमता निर्माण
6. जवाबदेही
इस अध्ययन के परिणामस्वरूप पंचायत हस्तांतरण सूचकांक (PDI) का निर्माण हुआ, जो 0 से 100 के पैमाने पर राज्यों को स्कोर देता है।
राष्ट्रीय औसत स्कोर 2014 में 39.92 से बढ़कर 2024 में 43.89 हो गया है। हालांकि, परिणाम राज्यों में महत्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करते हैं।
निष्कर्ष:
पंचायत हस्तांतरण सूचकांक (PDI) पंचायतों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है। यह विकेंद्रीकरण, बुनियादी ढांचे के विकास और क्षमता निर्माण में निरंतर सुधारों की आवश्यकता को भी उजागर करता है। जैसे-जैसे भारत स्थानीय शासन को अधिक प्रभावी और उत्तरदायी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, विकासात्मक असमानताओं को कम करने और प्रशासनिक क्षमता को मजबूत करने के लिए एक अधिक केंद्रित दृष्टिकोण आवश्यक होगा।