संदर्भ:
घड़ियालों का पारिस्थितिक महत्व :
● घड़ियाल मछली खाने वाले सरीसृप हैं, जो अपने बल्बनुमा, घड़ा के आकार के थूथन (घड़ियाल का मुंह आगे की ओर लंबा और पतला होता है, जिसे थूथन कहते हैं।) के कारण पहचाने जाते हैं। वे स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
● घड़ियाल मुख्य रूप से बड़ी नदी प्रणालियों पर निर्भर करते हैं और धूप सेंकने तथा घोंसला बनाने (nesting) के लिए रेत के टीलों का उपयोग करते हैं।
● आकार की दृष्टि से, नर घड़ियाल लगभग 3 से 6 मीटर तक तथा मादा लगभग 2.6 से 4.5 मीटर तक होती है।
घड़ियालों की जनसंख्या की स्थिति:
- मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य ने 2024 में 2,456 घड़ियाल दर्ज किए, जो 1950-60 के दशक में 80% की गिरावट के बाद व्यापक सुधार को दर्शाता है। हालांकि, 1997 से 2006 के बीच, इनकी संख्या में 58% की गिरावट दर्ज की गई थी। वर्तमान में, घड़ियाल केवल पाँच प्रमुख आवासों में पाए जाते हैं:
भारत में:
- राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (मध्य प्रदेश)
- कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य (उत्तर प्रदेश)
- सोन नदी अभयारण्य (मध्य प्रदेश)
- सतकोसिया गॉर्ज अभयारण्य (ओडिशा)
भारत के बाहर:
नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में छोटी आबादी मौजूद है। म्यांमार और भूटान में घड़ियाल लगभग विलुप्त हो चुके हैं।
घड़ियालों के लिए प्रमुख खतरे:
1. आवास विनाश: बांध निर्माण, सिंचाई परियोजनाएँ, गाद जमाव, तटबंध निर्माण और अवैध रेत खनन के कारण घोंसले बनाने और धूप सेंकने के प्राकृतिक स्थल तेजी से घट रहे हैं।
2. मानवीय गतिविधियाँ: प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ना और जाल में फंसने से कई घड़ियालों की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है।
3. शिकार में वृद्धि : खाल, पारंपरिक दवाओं के लिए अत्यधिक शिकार के चलते घड़ियालों की संख्या में ऐतिहासिक रूप से भारी गिरावट आई।
· 1970 के दशक से शुरू हुई इस पहल में 16 प्रजनन केंद्रों ने घड़ियालों को पालकर पुनः नदी में छोड़ा है, जिसमें मध्य प्रदेश का देवरी घड़ियाल केंद्र भी शामिल है।
· वर्ष 2017, 2018 और 2020 में, घड़ियालों को पंजाब की सतलुज और ब्यास नदियों में पुनः बसाया गया।
· वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत घड़ियालों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है। साथ ही, नदी संरक्षण के तहत रेत खनन और प्रदूषण को रोकने के प्रयास भी किए जाते हैं।
3. सामुदायिक भागीदारी और पर्यावास प्रबंधन:
· स्थानीय समुदायों को जागरूक बनाकर और संरक्षण कार्यक्रमों से जोड़कर स्थानीय स्तर पर संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं।
निष्कर्ष: