संदर्भ: हाल ही में देश की राजधानी नई दिल्ली में 4.0 तीव्रता का भूकंप आया, जिसका केंद्र धौला कुआं के पास था। इस घटना ने शहर के भूकंपीय जोखिम को उजागर किया। दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र IV में स्थित है, जिसका अर्थ है कि यह भूकंप के लिए एक उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है। हालाँकि यह सक्रिय टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर नहीं है, फिर भी फॉल्ट लाइनों और भूवैज्ञानिक कारकों के कारण यहां भूकंपीय गतिविधि बनी रहती है।
कारण और प्रभाव:
हिमालय में आने वाले भूकंप मुख्य रूप से टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव और गतिशीलता के परिणामस्वरूप होते हैं। हालांकि, हाल ही में दिल्ली में आया भूकंप एक इंट्रा-प्लेट (Intra-plate) घटना थी, जिसका अर्थ है कि यह भूकंप किसी टेक्टोनिक प्लेट की सीमा (बॉर्डर) पर नहीं, बल्कि उसके आंतरिक क्षेत्र में उत्पन्न हुआ।
इस प्रकार की घटनाएँ आमतौर पर ज़मीन के अंदर चट्टानों की संरचना, घनत्व में भिन्नता और उनमें उपस्थित द्रव के अंतर के कारण होती हैं । इन भौतिक अंतरों की वजह से पृथ्वी की सतह के नीचे तनाव बढ़ता है, जो फॉल्ट ज़ोन (Fault Zone) में दबाव बनाकर स्थानीय स्तर पर भूकंप का कारण बनता है।
फॉल्ट पर इन-सीटू विषमता के प्रभाव:
• भूगर्भीय दबाव में वृद्धि : ज़मीन के अंदर चट्टानों में अंतर (जैसे उनकी बनावट और घनत्व) की वजह से फॉल्ट ज़ोन में दबाव बढ़ जाता है, जिससे भूकंप आने की संभावना बढ़ती है।
• सीमित क्षेत्र में कंपन: ऐसे भूकंप बड़े टेक्टोनिक बदलाव से नहीं जुड़े होते, लेकिन भूकंप के केंद्र के आसपास तेज़ झटके महसूस होते हैं।
दिल्ली को प्रभावित करने वाली फॉल्ट लाइन्स:
हिमालयी भूकंपीय बेल्ट
● हालाँकि दिल्ली हिमालय से काफी दूर है, लेकिन इस क्षेत्र में आने वाले भूकंप अक्सर शहर को प्रभावित करते हैं।
● मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT) प्रमुख फॉल्ट लाइन्स हैं, जो हिमालयी क्षेत्र में आने वाले बड़े भूकंपों के लिए ज़िम्मेदार हैं।
● 1905 का कांगड़ा भूकंप और 2015 का नेपाल भूकंप (दोनों की तीव्रता 7.8) जैसे शक्तिशाली भूकंप दिल्ली में भी स्पष्ट रूप से महसूस किए गए थे।
दिल्ली-हरिद्वार रिज और अरावली फॉल्ट :
● दिल्ली-हरिद्वार रिज शहर के नीचे गहराई तक फैला हुआ है, जिससे यह इंट्रा-प्लेट भूकंप के लिए संवेदनशील बनती है।
● अरावली-दिल्ली फॉल्ट एक गहरी भूमिगत फॉल्ट लाइन है, जो दिल्ली और उसके आसपास के पिछले भूकंपों के लिए ज़िम्मेदार रही है।
भूकंप के प्रभाव में मिट्टी की भूमिका:
दिल्ली की अधिकांश भूमि नरम जलोढ़ मिट्टी से बनी है, जो कठोर चट्टानों की तुलना में भूकंपीय तरंगों को अधिक प्रभावी रूप से बढ़ा देती है। इसके परिणामस्वरूप, झटके अधिक तीव्र महसूस होते हैं और संरचनात्मक क्षति (Structural Damage) का खतरा बढ़ जाता है।
भूकंपीय क्षेत्र :
भूकंपीय क्षेत्र किसी क्षेत्र में भूकंप के जोखिम को दर्शाते हैं, जो पिछली भूकंपीय गतिविधियों और भूवैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
● क्षेत्र II - कम जोखिम
● क्षेत्र III - मध्यम जोखिम
● क्षेत्र IV - उच्च जोखिम (दिल्ली इस श्रेणी में आता है)
● क्षेत्र V - सबसे अधिक जोखिम
जोन IV में होने का अर्थ:
● भूकंप के दौरान दिल्ली में तेज़ झटके आने की संभावना अधिक रहती है।
● अपेक्षित भूकंप की तीव्रता MSK-8 (तीव्रता स्केल का एक स्तर) के आसपास हो सकती है, जिससे महत्वपूर्ण संरचनात्मक क्षति होने की संभावना है।
● दिल्ली में इमारतों को संरचनात्मक मजबूती के साथ डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि वे तीव्र भूकंपीय झटकों का प्रभावी रूप से सामना कर सकें।
उथले भूकंप और उनका प्रभाव:
नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, दिल्ली में आया भूकंप 5 किलोमीटर की गहराई पर केंद्रित था, जिससे यह एक उथला भूकंप (Shallow Earthquake) बन गया।
● उथले भूकंप (0-70 किलोमीटर गहराई): ये अधिक नुकसानदायक होते हैं क्योंकि ये सतह के करीब ही अपनी अधिकांश ऊर्जा छोड़ते हैं।
● मध्यम गहराई के भूकंप (70-300 किलोमीटर): ये सतह तक पहुँचने से पहले अपनी कुछ ऊर्जा गंवा देते हैं, जिससे इनका प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होता है।
● गहरे भूकंप (300-700 किलोमीटर): इनकी ऊर्जा सतह तक पहुँचते-पहुँचते कमज़ोर हो जाती है, जिससे इनका प्रभाव न्यूनतम रहता है।
निष्कर्ष:
दिल्ली की घनी आबादी, पुरानी इमारतें और नरम मिट्टी इसे भूकंप के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं। जोखिम को कम करने के लिए, सख्त भवन नियम, पुरानी संरचनाओं को फिर से बनाना, भूकंप जागरूकता कार्यक्रम और मजबूत आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली आवश्यक हैं। ये सक्रिय उपाय भविष्य में संभावित भूकंपों से जनहानि एवं बुनियादी ढांचे की क्षति को न्यूनतम करने में सहायक होंगे।