संदर्भ: हाल ही में भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2024 (CPI) जारी किया गया है, जो वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार के स्तर को दर्शाता है और देशों को उनके सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की धारणा के आधार पर रैंक करता है।
मुख्य निष्कर्ष:
· भारत की रैंक: भारत 2024 के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) में 96वें स्थान पर है, जिसमें उसे 100 में से 38 अंक प्राप्त हुए हैं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 39 था। पिछले वर्ष के मुकाबले भारत की रैंक में तीन स्थानों की गिरावट आई है, जो यह दर्शाती है कि भ्रष्टाचार की समस्या अभी भी बनी हुई है, हालांकि इस पर नियंत्रण पाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
· वैश्विक रैंकिंग: डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट देश के रूप में पहले स्थान पर है, इसके बाद फिनलैंड, सिंगापुर और न्यूज़ीलैंड का स्थान है। दक्षिण सूडान को सबसे भ्रष्ट देश के रूप में रैंक किया गया है, जिसे केवल 8 अंक प्राप्त हुए हैं।
· पड़ोसी देश: भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 135वें स्थान पर है, श्रीलंका 121वें स्थान पर है, बांग्लादेश 149वें स्थान पर है और चीन 76वें स्थान पर है।
· वैश्विक भ्रष्टाचार: रिपोर्ट में एक चिंताजनक वैश्विक प्रवृत्ति को रेखांकित किया गया है, जिसमें कई देशों, जैसे अमेरिका, फ्रांस और रूस, के अंक घटे हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का मानना है कि यह गिरावट राजनीतिक और आर्थिक कारणों, जैसे निरंकुशता और न्यायिक जवाबदेही की कमी, के कारण है।
भ्रष्टाचार परसेप्शन्स सूचकांक (CPI) के बारे में:
· भ्रष्टाचार परसेप्शन्स सूचकांक (CPI), जो 1995 में लॉन्च किया गया था, सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार का मापने वाला प्रमुख वैश्विक उपकरण बन गया है। यह 180 देशों और क्षेत्रों को उनके सार्वजनिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की धारणा के आधार पर मूल्यांकित और रैंक करता है।
· यह सूचकांक 13 बाहरी स्रोतों से डेटा का उपयोग करता है, जिसमें प्रतिष्ठित संस्थाएं जैसे कि विश्व बैंक, विश्व आर्थिक मंच, निजी जोखिम और परामर्श फर्म, थिंक टैंक और अन्य संगठन शामिल हैं। ये स्रोत विशेषज्ञों और व्यापारियों के दृष्टिकोण को एकत्र करते हैं, जो भ्रष्टाचार के स्तर का व्यापक मूल्यांकन प्रदान करते हैं।
· CPI 0 से 100 तक के पैमाने का उपयोग करता है, जहां 0 अत्यधिक भ्रष्टाचार को और 100 एक बहुत ही साफ और पारदर्शी सार्वजनिक क्षेत्र को दर्शाता है। यह सूचकांक, जिसे ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा संकलित किया जाता है, सार्वजनिक क्षेत्र के कदाचार का वैश्विक संकेतक है और यह विश्वभर में बढ़ते भ्रष्टाचार के बारे में चिंता व्यक्त करता है।
भ्रष्टाचार का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव:
· रिपोर्ट में भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन के बीच के संबंध पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पारदर्शिता की कमी जलवायु कार्रवाई में रुकावट डालती है।
· भ्रष्टाचार जलवायु कोष के गलत प्रबंधन, नीतिगत प्रयासों में अड़चनें और पर्यावरणीय विनाश को बढ़ावा देता है।
· ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का कहना है कि जलवायु से जुड़ा भ्रष्टाचार सिर्फ जलवायु सुधार के प्रयासों में देरी नहीं करता, बल्कि यह कमजोर वर्गों को अधिक प्रभावित करता है।
निष्कर्ष: हालांकि कुछ देशों ने सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए हैं किन्तु वैश्विक भ्रष्टाचार अभी भी चिंताजनक रूप से उच्च स्तर पर बना हुआ है। यह शासन, लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। CPI यह स्पष्ट करता है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों को निरंतर जारी रखना और उन्हें और भी सशक्त बनाना अनिवार्य है, ताकि निष्पक्ष शासन, जलवायु परिवर्तन से प्रभावी निपटान और सतत विकास को सुनिश्चित किया जा सके।