संदर्भ:
हाल ही में फ़्रंटियर्स इन कंज़र्वेशन साइंस में प्रकाशित सेंटर फ़ॉर वाइल्डलाइफ़ स्टडीज़ (CWS) के एक अध्ययन में भारत में अफ्रीकी चीतों के बसाने को लेकर गंभीर चिंताएँ जताई गई हैं। "भारत में प्रायोगिक चीता पुनर्स्थापन परियोजना के पर्यावरणीय न्याय निहितार्थ" नामक इस अध्ययन में परियोजना के पर्यावरण, नैतिकता और पशु कल्याण से जुड़े प्रभावों पर सवाल उठाए गए हैं। अध्ययन के अनुसार, यह परियोजना दीर्घकालिक रूप से कितनी सफल होगी, इस पर संदेह बना हुआ है।
मुख्य निष्कर्ष:
1. उच्च मृत्यु दर:
इस परियोजना में अपेक्षा से कहीं अधिक मृत्यु दर देखी गई है। जबकि लक्ष्यित उत्तरजीविता दर 85% थी, वास्तविक आँकड़े पहले चरण में 40% से 50% मृत्यु दर दिखाते हैं।
2. अनुकूलन का अभाव और तनाव:
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों को नए वातावरण में काफी तनाव का सामना करना पड़ा है। उनकी निरंतर चिकित्सा निगरानी यह संकेत देती है कि वे नए परिवेश में आसानी से अनुकूलित नहीं हो पा रहे हैं, जिससे उनके समग्र कल्याण को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
3. पारिस्थितिकीय अस्थिरता:
जंगल में केवल लगभग 6,500 वयस्क अफ्रीकी चीते बचे हैं, इसलिए दक्षिणी अफ्रीका से उनकी निरंतर आपूर्ति पर निर्भर रहना एक अस्थायी समाधान है। अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि ऐसा करने से पहले से ही संकटग्रस्त चीता आबादी पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है।
4. नैतिक चिंताएँ:
परियोजना के तहत चीतों को उनके प्राकृतिक आवासों से स्थानांतरित किया जा रहा है, जिससे नैतिक प्रश्न उठ रहे हैं। अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि प्रायोगिक पुनर्वास के लिए पहले से ही संकटग्रस्त चीता आबादी को हटाना संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने के बजाय और अधिक जटिल बना सकता है।
अध्ययन एक अधिक समावेशी संरक्षण दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जो विविध ज्ञान प्रणालियों, सांस्कृतिक मूल्यों और स्थानीय समुदायों की वन्यजीवों के प्रति धारणा को शामिल करता है। अध्ययन स्थानांतरण पर निर्भर रहने के बजाय, यह ऐसे साझा स्थानों को बढ़ावा देने का सुझाव देता है, जहाँ मनुष्य और वन्यजीव बिना किसी परेशानी या संघर्ष के सह-अस्तित्व में रह सकें। इसके अलावा, संरक्षण रणनीतियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि टिकाऊ और नैतिक वन्यजीव प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
प्रोजेक्ट चीता के बारे में:
2022 में शुरू हुई इस परियोजना का उद्देश्य अफ्रीका से चीते लाकर, भारत से विलुप्त हो चुके चीतों को पुनः स्थापित करना है।
- इस पहल का लक्ष्य पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना, जैव विविधता को बढ़ावा देना और पर्यटन को प्रोत्साहित करना है।
- चीतों का पहला जत्था 2022 में नामीबिया से कुनो नेशनल पार्क लाया गया, जबकि दूसरा जत्था 2023 में दक्षिण अफ्रीका से लाया गया।
निष्कर्ष:
फ्रीकी चीतों का भारत में स्थानांतरण एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, जिसमें महत्वपूर्ण पारिस्थितिक और नैतिक चिंताएँ शामिल हैं। यह परियोजना एक समग्र संरक्षण दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जो पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के साथ-साथ पशु कल्याण को भी प्राथमिकता दे। आगे की रणनीतियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुनर्मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है, ताकि यह पहल दीर्घकालिक रूप से वन्यजीव संरक्षण और स्थानीय समुदायों, दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध हो।