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Blog / 20 Jan 2025

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के लिए नागरिकता

संदर्भ:

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारतीय गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह 1984 से भारत में शरणार्थी के रूप में रह रही श्रीलंकाई तमिल नागरिक, मैथीन के नागरिकता आवेदन पर पुनर्विचार करे। मैथीन ने 2022 में नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)() के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

·        यह फैसला भारत में रह रहे शरणार्थियों, विशेषकर श्रीलंकाई तमिलों, के नागरिकता अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका शरणार्थियों के मुद्दों को गंभीरता से ले रही है।"

पंजीकरण द्वारा नागरिकता के बारे में:

नागरिकता अधिनियम, 1955 कुछ व्यक्तियों के लिए पंजीकरण द्वारा नागरिकता के प्रावधान प्रदान करता है।

पंजीकरण के लिए पात्र प्रमुख श्रेणियां हैं:

  • भारतीय मूल के व्यक्ति: आवेदन करने से पहले कम से कम सात वर्षों तक भारत में रहे हों।
  • भारतीय नागरिक से विवाहित विदेशी व्यक्ति: आवेदन करने से पहले सात वर्षों तक भारत में रहे हों।
  • वयस्क व्यक्ति: माता-पिता भारतीय नागरिक होने चाहिए, या आवेदक को पांच वर्षों के लिए ओसीआई कार्डधारक के रूप में पंजीकृत होना चाहिए और आवेदन करने से पहले बारह महीने तक भारत में रहना चाहिए।
  • नाबालिग बच्चे: माता-पिता भारतीय नागरिक होने चाहिए।
  • भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया में व्यक्ति को भारत के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी अनिवार्य है। साथ ही, जो व्यक्ति पहले भारतीय नागरिक थे लेकिन किसी कारणवश अपनी नागरिकता खो चुके हैं, वे पुनः नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

1.बागान मजदूरों के रूप में: 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिशों द्वारा भारतीय मूल के तमिलों को श्रमिकों के रूप में श्रीलंका लाया गया था।

o    भेदभावपूर्ण औपनिवेशिक नीतियों के कारण उन्हें मूल श्रीलंकाई समुदायों से सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया था।

2.नागरिकता से वंचित और निराश्रित आबादी: 1948 में श्रीलंका की स्वतंत्रता के बाद, बढ़ते सिंहली राष्ट्रवाद के कारण भारतीय मूल के तमिलों का हाशियाकरण हुआ।

o    1960 तक, लगभग दस लाख तमिल राजनीतिक अधिकारों या मान्यता के बिना निराश्रित हो गए थे।

3.द्विपक्षीय समझौते और नागरिकता का अनुदान: सीरीमावो-शास्त्री समझौता (1964) और सीरीमावो-गांधी समझौता (1974) ने छह लाख भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता प्रदान की।

4.गृहयुद्ध और शरणार्थी संकट: श्रीलंकाई गृहयुद्ध के कारण कई तमिलों ने भारत में शरण ली, जिसके कारण 1983 में सरकार द्वारा उस वर्ष के बाद आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देने पर रोक लगा दी गई।

5.सीएए 2003 के तहत अवैध प्रवासियों के रूप में वर्गीकृत: 1983 के बाद आने वालों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2003 के तहत "अवैध प्रवासी" माना गया, जिससे उनकी निराश्रितता और बढ़ गई।

कानूनी उपाय:

1.निराश्रितता के लिए कानूनी दृष्टिकोण: हालिया न्यायिक फैसलों ने भारतीय मूल के तमिलों की निराश्रितता पर काबू पाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया है।

2.प्रमुख कानूनी निर्णय:

o    पी. उलगनाथन बनाम भारत सरकार (2019): मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लंबे समय तक निराश्रित रहना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

o    अबीरमी एस बनाम भारत संघ (2022): अदालत ने जोर देकर कहा कि निराश्रितता (Deprivation) से बचा जाना चाहिए और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के लिए सीएए 2019 के प्रावधानों का विस्तार करने की सिफारिश की।

o    सुप्रीम कोर्ट का मामला: सी.आर. ऑफ सी..पी. बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (2015): 1964 और 1974 के समझौतों के तहत की गई प्रतिबद्धताओं ने भारतीय मूल के तमिलों में नागरिकता प्राप्त करने की उम्मीद जगाई थी।

3.बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत कानून: अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा मान्यता प्राप्त डी ज्यूरे निराश्रितता, नीतिगत विफलताओं के कारण उत्पन्न निराश्रित आबादी का समाधान करने के लिए देशों को बाध्य करती है, जैसा कि भारतीय मूल के तमिलों के मामले में देखा गया है।