संदर्भ:
हाल ही में भगवद गीता और नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियों को यूनेस्को की प्रतिष्ठित मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड (MoW) रजिस्टर में शामिल किया गया है। ये ग्रंथ सदियों से सभ्यता और चेतना को पोषित करते आ रहे हैं और आज भी दुनियाभर में लोगों को प्रेरणा देते हैं।
यूनेस्को द्वारा मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम के बारे में:
यूनेस्को द्वारा 1992 में शुरू किया गया मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण पुरालेखों, पांडुलिपियों और मौखिक परंपराओं को संरक्षित और प्रचारित करने का उद्देश्य रखता है। इस वर्ष की 74 नई प्रविष्टियों के साथ, मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड (MoW) रजिस्टर में अब विश्वभर से कुल 570 प्रविष्टियाँ शामिल हैं, जिनमें पांडुलिपियाँ, ऐतिहासिक दस्तावेज़, ऑडियो-विजुअल रिकॉर्ड और मौखिक परंपराएँ शामिल हैं।
पूर्व की कुछ प्रमुख प्रविष्टियाँ:
• महावंश – श्रीलंका का ऐतिहासिक इतिहास
• शैव सिद्धांत पांडुलिपियाँ (11,000+ ग्रंथ)
• फ्रैंकफर्ट ऑशविट्ज़ ट्रायल रिकॉर्डिंग्स (430 घंटे)
• शेख मुजीबुर रहमान का 7 मार्च 1971 का भाषण
रजिस्टर में भारत की प्रविष्टियों-
इन नई प्रविष्टियों के साथ भारत की कुल प्रविष्टियों की संख्या अब 13 हो गई है, जिनमें दो संयुक्त प्रविष्टियाँ हैं:
• ऋग्वेद (2005)
• अभिनवगुप्त के ग्रंथ (2023)
• गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन अभिलेख (संयुक्त, 2023)
• डच ईस्ट इंडिया कंपनी के अभिलेख (संयुक्त, 2003)
नई जोड़ी गई प्रविष्टियाँ, भगवद गीता और नाट्यशास्त्र, पुणे के भांडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट में संरक्षित विशेष पांडुलिपियाँ हैं।
नाट्यशास्त्र के बारे में-
भरत मुनि को समर्पित नाट्यशास्त्र नाटक, नृत्य, संगीत और सौंदर्यशास्त्र (aesthetics) पर आधारित एक आधारभूत ग्रंथ है, जिसे 500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी के बीच लिखा गया माना जाता है। इसे 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व में व्यवस्थित रूप से संकलित किया गया था और इसमें 36,000 से अधिक श्लोक हैं।
यह ग्रंथ रस सिद्धांत की अवधारणा को प्रस्तुत करता है जो दर्शकों द्वारा प्रदर्शन के दौरान अनुभूत भावनात्मक सार होता है।
भगवद गीता के बारे में-
भगवद गीता महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है, जिसमें 700 श्लोक और 18 अध्याय शामिल हैं। इसे परंपरागत रूप से वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है और इसकी रचना 1वीं या 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है, हालांकि यह बाद में लिपिबद्ध की गई है।
गीता में अर्जुन और कृष्ण के बीच एक गहन संवाद दर्ज है, जिसमें कर्तव्य, कर्म और धर्म के संकटों पर चर्चा होती है। कृष्ण का दार्शनिक उपदेश वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक परंपराओं का समन्वय करता है और सार्वभौमिक नैतिक एवं आध्यात्मिक विचार प्रस्तुत करता है।
यह ग्रंथ विश्वभर में व्यापक रूप से अनूदित और पढ़ा जाता है तथा अनेक विचारकों को प्रभावित करता रहा है। गीता आज भी वैश्विक दार्शनिक चर्चाओं का एक केंद्रीय आधार बनी हुई है।
निष्कर्ष-
भगवद गीता और नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियों को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना भारत की प्राचीन धरोहर की वैश्विक बौद्धिक और सांस्कृतिक महत्ता की पुष्टि करता है। इन अंतरराष्ट्रीय मान्यताओं के माध्यम से भारत द्वारा अपने ऐतिहासिक दस्तावेजों और पांडुलिपियों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के निरंतर प्रयास सांस्कृतिक कूटनीति और बौद्धिक परंपरा को और अधिक मजबूती प्रदान कर रहे हैं।