संदर्भ:
एयरोसोल उत्सर्जन को कम करना वायु गुणवत्ता के लिए जरूरी है, लेकिन यह एक जलवायु विरोधाभास भी उत्पन्न करता है। एयरोसोल सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर वातावरण को ठंडा रखते हैं। 2024 की जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) में कमी किए बिना एयरोसोल उत्सर्जन तेजी से घटा दिया जाए, तो यह खासकर भारत जैसे प्रदूषित क्षेत्रों में तापमान वृद्धि को तेज कर सकता है।
ग्रीनहाउस गैस बनाम एयरोसोल-
ग्रीनहाउस गैसें (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन) गर्मी को रोककर लंबे समय तक तापमान को गर्म करती हैं। इसके विपरीत, एयरोसोल (जैसे सल्फेट, नाइट्रेट, ब्लैक कार्बन और धूल) सूर्य के प्रकाश को बिखेरकर वातावरण को ठंडा करते हैं।
अवधि: ग्रीनहाउस गैसें दशकों या सदियों तक बनी रहती हैं, जबकि एयरोसोल कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक ही टिकते हैं।
प्रभाव: ग्रीनहाउस गैसें स्थायी गर्मी बढ़ाती हैं, जबकि एयरोसोल अस्थायी ठंडक देते हैं लेकिन वायु प्रदूषण भी बढ़ाते हैं।
तेजी से एयरोसोल में कमी करने पर, यदि GHGs को नियंत्रित नहीं किया गया, तो अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में तापमान अचानक बढ़ सकता है।
भारत का उद्योग और एयरोसोल पर निर्भरता
भारत की 70% बिजली उत्पादन कोयला-आधारित थर्मल पावर प्लांट्स से होती है, जिससे भारी मात्रा में एयरोसोल उत्सर्जित होते हैं।
- 1906 के बाद से, एयरोसोल उत्सर्जन ने लगभग 1.5°C की गर्मी को संतुलित किया है, जिससे वास्तविक तापमान वृद्धि 2°C की बजाय 0.54°C पर बनी हुई है।
- 2020 की पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 1901 से 2018 तक भारत का तापमान 0.7°C बढ़ा, जिसे आंशिक रूप से एयरोसोल और भूमि उपयोग परिवर्तन ने धीमा किया।
अगर एयरोसोल उत्सर्जन तेजी से घटता है, तो यह भारत में तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि कर सकता है।
एयरोसोल और मानसूनी परिवर्तनशीलता-
एयरोसोल वायुमंडलीय तापमान को बदलकर मानसूनी परिसंचरण को कमजोर कर देते हैं।
- आईपीसीसी (IPCC) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर एयरोसोल शीतलन प्रभाव लगभग 0.6°C है, लेकिन यह असमान रूप से वितरित है:
उत्तरी गोलार्ध: 0.9°C शीतलन
दक्षिणी गोलार्ध: 0.3°C शीतलन
चीन में हाल ही में एयरोसोल उत्सर्जन में कमी के कारण प्रशांत महासागर और उत्तरी अमेरिका में गर्म हवाओं (हीटवेव) की तीव्रता बढ़ी।
भारत में यदि एयरोसोल में कमी की जाती है, तो मानसून में अव्यवस्था पैदा हो सकती है, जिससे कृषि और जल संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
स्वास्थ्य बनाम जलवायु संतुलन
एयरोसोल तापमान को नियंत्रित करते हैं, लेकिन वे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनते हैं।
भारत में हर साल 10 लाख से अधिक मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों (फेफड़ों और हृदय रोग) के कारण होती हैं।
एयरोसोल एसिड वर्षा, धुंध (स्मॉग) और जलवायु अस्थिरता में योगदान देते हैं। इसलिए, भारत को वायु प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु अनुकूलन के बीच संतुलन बनाना होगा।
नीतिगत चुनौतियाँ और समाधान-
भारत के सिंधु-गंगा मैदान (Indo-Gangetic Plains) जैसे क्षेत्रों में, एयरोसोल की अधिकता है। यदि इसे अचानक घटा दिया जाए, तो यह गंभीर गर्मी संकट को जन्म दे सकता है।
नीति-संबंधी महत्वपूर्ण कदम:
· वायु प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु अनुकूलन को एक साथ जोड़ा जाए।
· गर्मी से प्रभावित शहरों के लिए बेहतर ‘हीट एक्शन प्लान’ तैयार किया जाए।
· जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बेहतर भविष्यवाणी के लिए वैज्ञानिक मॉडलिंग को मजबूत किया जाए।
· कोयले का धीरे-धीरे निष्कासन कर नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार किया जाए।
निष्कर्ष
एयरोसोल उत्सर्जन में कमी स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, लेकिन यदि यह ग्रीनहाउस गैसों में कमी किए बिना किया जाता है, तो इससे जलवायु संकट बढ़ सकता है और मानसून में बाधा आ सकती है। नीतियाँ इस तरह बनाई जानी चाहिए कि वायु गुणवत्ता में सुधार हो, लेकिन जलवायु स्थिरता भी बनी रहे।