होम > Blog

Blog / 05 Feb 2025

अरुणाचल प्रदेश में 32 वर्षों में 110 ग्लेशियर समाप्त

संदर्भ:
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों के गंभीर क्षरण का पता चला है, जहां 1988 से 2020 के बीच 110 ग्लेशियरों का पूरी तरह समाप्त हो गये। नागालैंड विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन ने हिमालयी ग्लेशियरों के त्वरित रूप से संकुचन (rapid retreat) को उजागर किया है, जो जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान और ग्लेशियर झीलों के फटने (GLOFs) के बढ़ते खतरों को लेकर गहरी चिंता उत्पन्न करता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस" में प्रकाशित, इस अध्ययन ने 32 वर्षों में ग्लेशियरों के पीछे हटने का विश्लेषण करने के लिए रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग किया। शोध ने निम्नलिखित रुझानों की पहचान की:

  • ग्लेशियर क्षेत्र में कमी: अरुणाचल प्रदेश के ग्लेशियरों ने 309.85 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र खो दिया, जो प्रति दशक 16.94 वर्ग किलोमीटर की दर से कम हो गये।
  • ग्लेशियर की संख्या में कमी: ग्लेशियरों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गई, जो ग्लेशियर कवर में 47% की कमी को दर्शाता है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: अध्ययन किए गए अधिकांश ग्लेशियर 4,500 से 4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित थे और उनके ढलान उत्तर दिशा में (15° से 35° तक) थे।
  • पर्यावरणीय परिणाम: इन ग्लेशियरों के पीछे हटने से चट्टानों का खुलासा हुआ और ग्लेशियर झीलों का निर्माण हुआ, जिससे GLOFs (ग्लेशियर झील फटने से उत्पन्न बाढ़) का खतरा बढ़ गया है, जो निचले क्षेत्रों में गंभीर बाढ़ और विनाश का कारण बन सकता है।

 

पूर्वी हिमालय में जलवायु परिवर्तन:

  • तापमान में वृद्धि: हिमालय में पिछले शताब्दी में 1.6°C की तापमान वृद्धि हुई है, और पूर्वी हिमालय में यह दर प्रति दशक 0.1° से 0.8°C तक रही है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
  • भविष्य की अनुमानित स्थिति: सदी के अंत तक, इस क्षेत्र में तापमान में 5-6°C की वृद्धि और वर्षा में 20-30% की वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • छोटे ग्लेशियरों पर प्रभाव: 5 वर्ग किलोमीटर से छोटे ग्लेशियर सबसे तेजी से पीछे हट रहे हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हो गए हैं।

ग्लेशियर झीलें क्या हैं?
ग्लेशियर झीलें वह जलाशय होती हैं जो बर्फ के पिघलने से बनती हैं और सामान्यत: ये ग्लेशियरों की गति द्वारा बनाए गए अवसादों में संचित होती हैं। इन झीलों को उनके निर्माण के आधार पर चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

1.   मोरेन-निर्मित झीलें

2.   आइस-निर्मित झीलें

3.   कटाव झीलें

4.   अन्य प्रकार

ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ (GLOFs) क्या हैं?
GLOFs तब होते हैं जब कोई ग्लेशियर झील अचानक पानी छोड़ देती है, जिसके कारण निचले क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ आती है। इन घटनाओं की तीन प्रमुख विशेषताएँ होती हैं:
पानी का अचानक और कभी-कभी चक्रीय प्रवाह
संक्षिप्त लेकिन अत्यधिक विनाशकारी बाढ़ (जो घंटों से लेकर दिनों तक रह सकती है)
बड़े निचले नदी प्रवाहों के कारण गंभीर क्षति

हाल के GLOFs घटनाएँ :

·        2023 दक्षिण लोनाक GLOF (सिक्किम): चंगथांग में तेज़ा III डेम को नष्ट कर दिया।

·        2013 चोराबारी ग्लेशियर झील GLOF (उत्तराखंड): मंदाकिनी नदी में गंभीर बाढ़ का कारण बना, जिससे केदारनाथ आपदा में योगदान हुआ।

निष्कर्ष:
अरुणाचल प्रदेश में 110 ग्लेशियरों का लोप तीन दशकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को उजागर करता है, जो हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। ग्लेशियरों का तेज़ी से पीछे हटना ताजे पानी की उपलब्धता, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है, साथ ही GLOFs के विनाशकारी जोखिम को भी बढ़ाता है। चूँकि हिमालय विश्व के 1.3 बिलियन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत का कार्य करता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए त्वरित जलवायु कार्रवाई और सतत पर्यावरणीय नीतियाँ लागू करना अत्यंत आवश्यक है।