संदर्भ:
केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह पुणे, महाराष्ट्र में पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद की 27वीं बैठक की अध्यक्षता की। इसका आयोजन गृह मंत्रालय के अंतर्गत अंतर-राज्य परिषद सचिवालय द्वारा राज्य सरकार के सहयोग से किया गया।
बैठक के मुख्य विषय :
• कानून और व्यवस्था: यौन अपराधों से निपटने के लिए कानूनी ढांचे को सशक्त बनाना और फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (FTSCs) के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
• बैंकिंग और डाक सेवाएँ: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग नेटवर्क और इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक की शाखाओं का विस्तार करना, जिससे यह सुनिश्चित हो कि प्रत्येक गाँव 5 किलोमीटर के दायरे में बैंकिंग सेवाओं से जुड़ा हो।
• आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ERSS-112): सार्वजनिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र का विस्तार और प्रभावी क्रियान्वयन।
• बुनियादी ढाँचा, पर्यावरण और खनन: क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे के विकास, पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन से जुड़े मुद्दों का समाधान करना।
• सामाजिक कल्याण और विकास: कुपोषण की समस्या को दूर करना, खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए समावेशी नीतियों का क्रियान्वयन।
• राष्ट्रीय कार्यक्रम: पोषण अभियान (पोषण संबंधी पहल) और आयुष्मान भारत (राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना) जैसी प्रमुख योजनाओं की समीक्षा करना, साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त बनाने के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को सुदृढ़ करना।
क्षेत्रीय परिषद:
क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना 1957 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत राज्यों के बीच सहयोग और संवाद को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई थी। यह एक वैधानिक निकाय हैं। यह अंतर-राज्यीय और केंद्र-राज्य संबंधों से जुड़े मुद्दों के समाधान, राष्ट्रीय एकीकरण को सशक्त बनाने और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
पाँच क्षेत्रीय परिषदें:
भारत को पाँच क्षेत्रीय परिषदों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट राज्यों और क्षेत्रों की सेवा करती है:
1. उत्तरी क्षेत्रीय परिषद
2. मध्य क्षेत्रीय परिषद
3. पूर्वी क्षेत्रीय परिषद
4. पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद
5. दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद
पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद में गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र और दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव (केंद्र शासित प्रदेश) शामिल हैं।
उत्तर-पूर्वी राज्य क्षेत्रीय परिषदों का हिस्सा नहीं हैं। इनके लिए 1972 में स्थापित "उत्तर पूर्वी परिषद" (North Eastern Council) एक समर्पित निकाय के रूप में कार्य करती है।
क्षेत्रीय परिषदों की विकसित होती भूमिका:
• क्षेत्रीय परिषदें अब केवल सलाहकार निकायों तक सीमित न रहकर नीति कार्यान्वयन और प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिए एक क्रियान्वयन मंच के रूप में विकसित हो रही हैं।
• यह परिवर्तन सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद (Cooperative and Competitive Federalism) की व्यापक अवधारणा के अनुरूप है, जो राष्ट्रीय प्रगति के लिए केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को सुदृढ़ करने पर बल देता है।
• अंतर-राज्यीय विवादों के समाधान और केंद्र-राज्य संबंधों को सुदृढ़ करने में क्षेत्रीय परिषदों की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है
• इसके अतिरिक्त, स्थायी समिति की बैठकों की आवृत्ति बढ़ाई गई है, जिससे प्रमुख निर्णयों की नियमित निगरानी और उनके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष:
27वीं पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद की बैठक क्षेत्रीय सहयोग और सुशासन (Good Governance) को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह बैठक महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करते हुए अंतर-राज्यीय संवाद और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देती है।
क्षेत्रीय परिषदें राज्यों के बीच सहयोग सुनिश्चित करने, विवादों के समाधान और राष्ट्रीय प्रगति में उनके योगदान को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।