संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। साथ ही यह दिवस बेहतर बीज, उन्नत सिंचाई विधियों और कुशल कृषि मशीनरी के माध्यम से खाद्य उत्पादन में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को भी रेखांकित करता है। हालांकि, वर्तमान में लगभग 2.33 बिलियन लोग मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जैसा कि खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) रिपोर्ट में बताया गया हैं। इस वर्ष के विश्व खाद्य दिवस का विषय है " बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए भोजन का अधिकार।"
इस संदर्भ में भोजन के अधिकार की अवधारणा ने 2013 में भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के पारित होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका मुख्य उद्देश्य देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को रियायती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है।
वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भारत की भूमिका:
- भारत वर्तमान में खाद्य अधिशेष वाला देश है, यह दूध, दालों, और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अतिरिक्त, भारत खाद्यान्न, फल, सब्जियाँ, कपास, चीनी, चाय, और मछली पालन में भी प्रमुख भूमिका निभाते हुए, इन उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। वैश्विक खाद्य सुरक्षा की चिंता के मद्देनजर, भारत का खाद्य और पोषण सुरक्षा का समाधान प्रदाता बनना वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए लाभकारी है।
- हालांकि, निम्न और मध्यम आय वर्ग में खाद्य सुरक्षा एक चिंताजनक तस्वीर पेश करता है, जिसमें भारत कोई अपवाद नहीं है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भारत 127 देशों में से 105वें स्थान पर है।
- भारत की 55.6% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है, जो लगभग 788.2 मिलियन लोगों के बराबर है—यह एशिया में सबसे अधिक है। खाद्य और पोषण पर भारत का सार्वजनिक व्यय दुनिया में सबसे कम है, जिससे कुपोषित व्यक्तियों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। यह स्थिति महामारी के बाद मध्यम और गंभीर खाद्य असुरक्षा के स्थिर स्तरों से और भी बदतर हो गई है, जो 24.8% पर बनी हुई है।
- एफएओ के नवीनतम अनुमानों से संकेत मिलता है कि भारत में भूख में मामूली गिरावट आई है, जो महामारी के वर्षों (2020-22) के दौरान 14% से घटकर 13.7% (2021-23) हो गई है। फिर भी, ये आंकड़े महामारी से पहले के स्तरों से काफी अधिक हैं, जहां 2014-16 में भूख ने केवल 10.3% आबादी को प्रभावित किया था। चिंताजनक बात यह है कि भारत में भूख से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या 2014-16 और 2021-23 के बीच 5 करोड़ बढ़ गई है।
खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी पहल:
भारत ने खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, विशेष रूप से कई प्रमुख सरकारी पहलों के माध्यम से:
1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): यह अधिनियम ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के माध्यम से सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है, जिसमें लगभग 81 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं। इसमें प्राथमिकता वाले परिवार (PHH) और अंत्योदय अन्न योजना (AAY) दोनों श्रेणियां शामिल हैं, जिसमें महिलाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, क्योंकि लाभार्थियों में 16 करोड़ महिलाएँ शामिल हैं।
2. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई): कोविड-19 महामारी के दौरान गरीबों को होने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए शुरू की गई इस योजना को 1 जनवरी, 2024 से अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाया गया, जिससे लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा।
3. पीएम पोषण (POSHAN शक्ति निर्माण) योजना: सरकारी स्कूलों में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से, इस कार्यक्रम में 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए ₹130,794.90 करोड़ का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है। इसमें वंचित छात्रों के बीच स्कूल में उपस्थिति को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
4. अंत्योदय अन्न योजना (AAY: यह पहल समाज के सबसे कमजोर वर्गों को लक्षित करती है, वर्तमान में 8.92 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को सहायता प्रदान की जा रही है, जिसमें महिलाओं पर विशेष जोर दिया गया है।
5. फोर्टिफाइड चावल का वितरण: वित्तीय वर्ष 2019-20 से, पोषण मूल्य बढ़ाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से लगभग 406 लाख मीट्रिक टन फोर्टिफाइड चावल वितरित किया गया है।
6. मूल्य स्थिरता और सामर्थ्य पर सरकारी कार्रवाई: मूल्य अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए, सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) का उपयोग किया है, जिससे 2020-21 में प्याज के बफर को 1 LMT से बढ़ाकर 2023-24 में 7 LMT कर दिया गया है। सरकार की भारत दाल, भारत आटा और भारत चावल जैसी नई पहले कम आय वाले समूहों के लिए रियायती मूल्य में वस्तु प्रदान कराती हैं।
वर्तमान खाद्य सुरक्षा ढांचे की आलोचना:
1. आर्थिक तर्कसंगतता: बड़े पैमाने पर आबादी को अत्यधिक सब्सिडी वाला भोजन उपलब्ध कराना आर्थिक दृष्टि से उचित नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए अधिक लक्षित दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें सबसे कमजोर समूहों को प्राथमिकता दी गई।
2. गरीबी माप: नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, गरीबी के अनुपात में 2013-14 में 29.13% से 2022-23 में 11.28% तक की महत्वपूर्ण गिरावट आई है। इस गिरावट को देखते हुए, 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन वितरित करने के औचित्य पर सवाल उठता है, जिससे सब्सिडी प्रथाओं में सुधार की मांग उठती है।
3. सब्सिडी वितरण में अक्षमता: आईसीआरआईईआर द्वारा किए गए शोध में कई अक्षमताएँ उजागर हुई हैं, जिसमें लगभग 25-30% खाद्य और उर्वरक सब्सिडी इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाती है। यह रिसाव कुल आवंटित संसाधनों का 40-50% हो सकता है, जोकि खाद्य सुरक्षा पहलों के लक्ष्यों को कमजोर करता है।
आगे की राह:
● कृषि -खाद्य प्रणाली का डिजिटलीकरण : डिजिटल समाधानों के कार्यान्वयन से अधिक कुशल और जवाबदेह वितरण प्रणाली बनाई जा सकती है।
● लक्षित सब्सिडी : एक केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, जहां आबादी के सीमित प्रतिशत को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाए, जबकि अन्य लोगों को भोजन के लिए उचित मूल्य चुकाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
● युक्तिसंगत निवेश: कृषि में बेहतर निवेश किया जा सकता है, जैसे अनुसंधान और विकास, सटीक खेती और शिक्षा, जो 2030 तक टिकाऊ खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष:
विश्व खाद्य दिवस खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को उजागर करता है। इसके साथ ही, यह प्रभावी और आर्थिक रूप से स्थायी नीतियों की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित करता है, जोकि गरीबी और कृषि प्रथाओं के बदलते परिदृश्य के अनुकूल हो सकें। वर्तमान सब्सिडी प्रणालियों में सुधार करके, भारत सरकार कृषि उत्पादकता और लचीलापन बढ़ा सकती है, अंततः सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में उल्लिखित "शून्य भूख" लक्ष्य की दिशा में काम कर सकती है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन के प्रति भारत सरकार का दृष्टिकोण किस प्रकार देश की भूख और कुपोषण से निपटने की क्षमता को प्रभावित करता है? |